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Taj Mahal के कारण टीटीजेड के छह जिलों में घोर निराशा, हो रहा पलायन

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आठ सितम्बर, 2016 से 1400 वर्ग कि.मी क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना पर रोक

आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, हाथरस, एटा, भरतपुर का औद्योगिक विकास थमा

वायु प्रदूषण का कारण है खराब सड़कें, अधिक वाहन और यातायात कुप्रबन्धन

आगरा डवलपमेंट फाउंडेशन के पूरन डाबर और केसी जैन ने की नौ मांगें

Agra, Uttar Pradesh, India ताज ट्रेपैजियम जोन यानी टीटीजेड। इसे हिन्दी में कहते है ताज संरक्षित क्षेत्र। ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने टीटीजेड का निर्माण किया। टीटीजेड में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने पर रोक है। 8 सितम्बर 2016 को 10400 वर्ग किलोमीटर में फैले 6 जनपद- आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, एटा, हाथरस एवं भरतपुर- में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने उद्योगों की स्थापना व विस्तार (व्हाइट कैटेगरी को छोड़कर) पर रोक लगा दी थी। और आज भी उद्योगों की अनुमति 4 वर्ष व्यतीत होने के बाद भी नहीं है। टीटीजेड क्षेत्र में देश की लगभग एक प्रतिशत जनसंख्या रहती है।

पर्यटन नगरी सर्वाधिक प्रभावित

पर्यटन नगरी आगरा में होटल की अनुमति नहीं है, जूता नगरी होने पर भी जूता फैक्ट्री लगाने की अनुमति नहीं है, आलू बेल्ट है लेकिन कोल्ड स्टोरेज को भी ना है। प्रधानमन्त्री आवास योजना में भी आवासीय भवन अनुमति के अभाव में नहीं बन सके हैं। पर्यावरणीय मानकों के अनुसार कार्य करने के उपरान्त भी औद्योगिक इकाईयों को भी स्थापित नहीं किया जा सकता है। परिणाम यह है कि उद्यमियों और श्रमशक्ति के मध्य घोर निराशा व्याप्त है। इस 4 वर्ष तक लगे प्रतिबन्ध से वायु गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ क्योंकि यह वायु प्रदूषण उद्योगों के द्वारा जनित नहीं था। देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजे गये मेल के माध्यम से इस स्थिति के समाधान हेतु तुरन्त हस्तक्षेप करने की मांग आगरा डवलपमेन्ट फाउन्डेशन (एडीएफ) के अध्यक्ष पूरन डाबर एवं सचिव के0सी0 जैन द्वारा की गयी। 

स्थिति अभी तक अस्पष्ट
अध्यक्ष पूरन डाबरने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा टीटीजैड के लिये गये बहुचर्चित 30 दिसम्बर, 1996 के निर्णय में उद्योगों और पर्यावरण दोनो को साथ-साथ चलने की बात कही गयी है। लेकिन निर्णय के विपरीत गैर प्रदूषणकारी उद्योगों पर भी केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय ने व्हाइट कैटेगरी को छोड़कर सभी उद्योगों की स्थापना एवं विस्तार पर रोक लगा दी और यह रोक बिना किसी कार्यालय आदेश या पर्यावरण संरक्षण नियमावली के अनुसार निर्धारित प्रक्रिया पूरे किये लगा दी गयी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभी हाल में 11 दिसम्बर 2019 को गैर प्रदूषणकारी उद्योगों की अनुमति प्रदान कर दी गयी। इसके बाद भी स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है। इस बात की जरूरत है कि केन्द्र सरकार व राज्य सरकार बैठकर इसका समाधान निकालें और अनावश्यक रूप से बार-बार सुप्रीम कोर्ट ना जायें।

युवाओं का हो रहा पलायन
एडीएफ के सचिव केसी जैन अधिवक्ता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उद्योगों की स्थापना पर कोई रोक नहीं लगायी गयी है अपितु पर्यावरण एवं गैर पद्रूषणकारी उद्योगों दोनों की बात को ही आगे बढ़ाने के लिए कहा है। आगरा जैसे शहर में यदि होटल, अस्पताल, शीतगृह, जूता उद्योग और हाउसिंग प्रोजेक्ट नहीं होंगे तो आखिर शहर कहां जायेगा। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि होटल, हॉस्पिटल, जूता उद्योग आदि योजनायें आगरा में पिछले 4 वर्षों में नहीं लग सकी हैं जिससे उद्यमी और युवाशक्ति का पलायन शहर से हो रहा है जो कि अत्यन्त दुःखद है। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा गैर औद्योगिक गतिविधियों का वर्गीकरण 30 अप्रैल, 2020 को कर दिया गया है जिसके अनुसार कार्यवाही की जानी चाहिये। वर्ष 1996 से प्रदूषणकारी उद्योगों पर रोक लगी हुई है 

अनावश्यक बंदिशों को समाप्त करना होगा 
एडीएफ की ओर से यह बात भी अपने पत्र में रखी गयी कि आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए अनावश्यक बंदिशों को समाप्त करना होगा तभी हम लोकल से ग्लोबल बन सकेंगे। मात्र ऑनलाइन फेसिलीटी से कुछ नहीं होगा जब तक कि नीतियां स्पष्ट नहीं होंगी।

ये है मांगें

1- आई0आई0टी0 कानपुर द्वारा ताजमहल पर प्रदूषणकारी तत्वों की अध्ययन रिपोर्ट (फरवरी 2019) की सिफारिशों को तुरन्त लागू किया जाये। इसमें उद्योगों को नहीं अपितु सड़कों, वाहनों व यातायात प्रबन्धन को दोषी ठहराया गया है। 


2- उ0प्र0 प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा बनाये गये एअर एक्शन प्लाॅन (जून 2019) को पूरी तरह लागू किया जाये।


3- चार वर्षों से निरन्तर चली आ रही गैर प्रदूषणकारी उद्योगों पर रोक तुरन्त समाप्त हो। जो भी उद्योग पर्यावरणीय मानकों के अनुसार कार्य करते हैं उनको अनुमति होनी चाहिये और यदि वह अवहेलना करते हैं तो उन पर कार्यवाही हो।


4- केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के आदेश दिनांक 30.04.2019 के अनुसार गैर औद्योगिक गतिविधियों जैसे होटल, हॉस्पीटल, एअरपोर्ट, एसटीपी, निर्माण परियोजनाओं को उद्योगों के समान ना माना जाए और उनकी अनुमति बिना बाधा के नियमानुसार दी जाये। 


5- हर मामले में अर्थात् केस-टू-केस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ना जाया जाये अपितु यदि आवश्यक हो तो स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) बनाकर स्वीकृत करायी जाये।


6- नीरी द्वारा बनाये गये टीटीजेड एनवायरमेन्ट मैनेजमेन्ट प्लान (दिसम्बर 2013) के अनुसार टीटीजेड अथॉरिटी का सशक्तिकरण किया जाये जिसके अनुसार प्रदेश के मुख्य सचिव एवं केन्द्र के केबीनेट सचिव की अध्यक्षता में यह प्राधिकरण हो।


7- आगरा के लिये एक हाईपावर्ड स्पेशल परपज व्हीकल बनना चाहिये जो सभी विभागों के मध्य समन्वय करे एवं जिसमें पर्याप्त डेडीकेटेड कर्मचारी व अधिकारी हों। 


8- समस्त टीटीजेड में वन आच्छाजित क्षेत्र लगभग 3 प्रतिशत है जिसको बढ़ाने के लिये सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार एग्रोफोरेस्ट्री को बढ़ावा दिया जा सके ताकि किसानों की आमदनी भी बढ़ सके और हरियाली भी। इससे वायु प्रदूषण कम होगा।  


9- टीटीजेड से सम्बन्धित अनेक अध्ययन व रिपोर्ट हैं किन्तु उनकी सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है जो कि वायु प्रदूषण में कमी ला सकती है उन्हें लागू किया जाना चाहिये।