सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा कि चुनाव के समय राजनीतिक दलों की ओर से चुनावी मौसम में मुफ्त में रेवड़ी देने का वादा करना और फिर बाद में वितरण एक गंभीर मुद्दा है इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दायर की गई है, जिसमें चुनाव के समय मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त सुविधाएं देने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
याचिका में राजनीतिक पार्टियों द्वारा जारी किए जाने वाले चुनावी घोषणापत्र को रेगुलेट करने और उसमें किए गए वादों पर राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाने के लिए कदम उठाने के लिए कहा गया है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि कोई नहीं कहता कि यह कोई मुद्दा नहीं है। यह एक गंभीर मुद्दा है। जिन्हें मिल रहा है, वो कहते हैं कि ये सभी कल्याणकारी योजनाएं हैं। जो लोग जो टैक्स भर रहे हैं, वो कह सकते हैं कि इसका प्रयोग विकास के लिए होना चाहिए। यह गंभीर मुद्दा है और इसे दोनों कमेटियों के द्वारा सुना जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां “गरीबी है और केंद्र सरकार की भी भूखों को खिलाने की योजना है” और दूसरी तरफ मुफ्त योजनाओं के कारण अर्थव्यवस्था पैसे खो रही है और “लोगों के कल्याण को संतुलित करना होगा।” बता दें कि अदालत इस याचिका पर अगली सुनवाई 17 अगस्त को करेगी।
इससे पहले इस याचिका का विरोध आम आदमी पार्टी ने किया था। आम आदमी पार्टी के अनुसार योग्य और वंचित जनता के सामाजिक-आर्थिक कल्याण की योजनाओं को ‘मुफ्त’ नहीं कहा जा सकता है। पार्टी ने याचिकाकर्ता पर भी आरोप लगाया और कहा कि उसके भाजपा से “मजबूत संबंध” हैं। इन्होने एक विशेष राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए यह याचिका लगाई है।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने 3 अगस्त को केंद्र सरकार को नीति आयोग फाइनेंस कमीशन और आरबीआई का एक पैनल गठित करने को कहा था, जो चुनावों के दौरान मुफ्त योजनाओं की घोषणा पर मंथन करेगा। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का समर्थन करते हुए कहा था कि मुफ्त योजनाओं की घोषणा भविष्य में देश को बड़े आर्थिक संकट की ओर ले जा सकती है और इसके कारण चुनावों के दौरान मतदाता लालच में आकर अपने सही मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएंगे।
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