Dr Bhanu Pratap Singh
Agra, Uttar Pradesh, India. आई.ए.एस. तो निरे सारे हैं, लेकिन डॉ. राजेन्द्र पैंसिया जैसे आई.ए.एस. विरले हैं। अगर आपने डॉ. राजेन्द्र पैंसिया का नाम नहीं सुना तो मैं आश्चर्यित हूँ। वही डॉ. राजेन्द्र पैंसिया जो सामान्य कदकाठी के हैं। वही डॉ. राजेन्द्र पैंसिया जो विनम्र हैं। धार्मिक हैं। सबको अपना बना लेते हैं। आगरा विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पद पर सवा साल तैनात रहे। आगरा को कई सौगात दे गए। उनकी सबसे अनमोल कृतियां हैं- ‘मैं हूँ आगरा…’ पुस्तक, डॉक्यूमेंट्री ‘फिल्म मैं एडीए हूँ…’ और आगरा का गीत (वीडियो)। जब तक आगरा है, जब तक आगरा की धरती पर मानव है, ये कृतियां तब तक रहेंगी। लिखा हुआ अक्षर कभी नष्ट नहीं होता। डिजिटल युग में वीडियो सदा के लिए हैं। पूरे देश में आगरा का गीत गूंज रहा है।
डॉ. राजेन्द्र पैंसिया कोई यूं ही नहीं बन जाता। डॉ. राजेन्द्र पैंसिया बनने के लिए अफसरशाही छोड़नी पड़ती है। रिश्वतखोरी छोड़नी पड़ती है। सहज और सरल बनना पड़ता है। ई.डब्ल्यू.एस को भी एच.आई.जी. जैसा सम्मान देना पड़ता है। सबका फोन रिसीव करना पड़ता है। साहित्यकारों को प्रश्रय देना पड़ता है। लेखक बनना पड़ता है। धार्मिक बनना पड़ता है। कोई कार्यालय में आए तो उसका सत्कार शीतल जल, टॉफी और कॉफी से करना पड़ता है। गीता को निजी जीवन में हृदयंगम करना पड़ता है। तूफानों से टकराना पड़ता है। जहां तैनात हैं, उस स्थान को मातृभूमि मानकर सेवा करनी पड़ती है। जब स्थनांतरण हो जाए तो कर्मभूमि को साथ ले जाना पड़ता है। जिसकी बात सुनने के लिए लोग तीन घंटे तक एकाग्र चित्त होकर बैठे रहें। जिसका एक मिशन और एक विजन हो। सबसे बड़ी बात कि मानवीय और संवेदनशील होना पड़ता है। तब जाकर कोई डॉ. राजेन्द्र पैंसिया बन पाता है।
तभी तो डॉ. राजेन्द्र पैंसिया को आगरा वालों ने विदाई नहीं दी। उनका सम्मान-स्वागत किया। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। आशा जताई कि वे फिर से आगरा में उच्च पद पर आएंगे और विकास का नया चक्र चलाएंगे। डॉ. राजेन्द्र पैंसिया का मानना है- ‘वक्त का तकाजा है तूफां से जूझो, आखिर कब तक चलोगे किनारे-किनारे।’ डॉ. राजेन्द्र पैंसिया यह भी कहते हैं- ‘कभी हार न मानकर अर्जुन की तरह केवल मछली की आँख को ही लक्ष्य मानकर यदि धैर्य, विश्वास और कठोर मेहनत के साथ तैयारी करें तो सफलता निश्चित ही नहीं, सुनिश्चित है।’यही प्रवृत्ति डॉ. राजेन्द्र पैंसिया को सबसे अलग बनाती है।
आपको बता दूँ कि डॉ. राजेन्द्र पैंसिया मूल रूप से श्रीगंगानगर जिले की श्रीकरणपुर तहसील के रहने वाले हैं। डॉ. राजेंद्र पैंसिया ने आईएएस-2014 में 345 वीं रैंक हासिल की। वर्ष 2005 में उनका थर्ड ग्रेड टीचर के पद पर और फिर बीडीओ में चयन हुआ। उनका अगला लक्ष्य आरएएस बनना था। वर्ष 2011 में आरएएस परीक्षा में आठवीं रैंक हासिल की। नौकरी के साथ आईएएस की तैयारी करते रहे। 5वें प्रयास में वे आईएएस बन गए। उनके पिता अशरफी चंद बीएसएनएल में कार्यरत थे। तीन वर्ष पूर्व सेवानिवृत्ति ली है।
हर अधिकारी अपने विभाग में अच्छा काम करने का प्रयास करता है। असली अधिकारी वह है जो कुछ इतर करता है। मैं हूँ आगरा.. पुस्तक इसी का प्रमाण है। पुस्तक के हर पृष्ठ पर शुभकारी स्वास्तिक की प्रधानता है। आगरा में ताजमहल ही नहीं, सैकड़ों ऐसे स्थल हैं, जो आगरा की पहचान बन सकते हैं। पुस्तक में ताजमहल से इतर आगरा का रेखांकन किया गया है। इन स्थलों के प्रचार-प्रसार की जरूरत है। इस पुस्तक की रचना डॉ. राजेन्द्र पैंसिया की पत्नी और जानी-मानी लेखिका डॉ. उषा राजेन्द्र पैंसिया (श्री करणपुर, राजस्थान) और आगरा के वरिष्ठ पत्रकार आदर्श नंदन गुप्त ने की है। पर्दे के पीछे असली रचनाकार डॉ. राजेन्द्र पैंसिया ही हैं। उन्होंने कहा भी- मैंने आगरा के बारे में ऐसी बातें बताईं, जिन्हें सुनकर आदर्शन नंदन ने कहा कि ये तो मुझे भी नहीं मालूम। जैसे, मक्खन वाली चाय। ओसवाल बुक्स के नरेश जैन ने प्रकाशन किया है। इसके अलावा आई लव आगरा सेल्फी पॉइंट बनवाया है। सूरसदन प्रेक्षागृह का सुंदरीकरण कराया है। राजकीय इंटर कॉलेज (जी.आई.सी.) के नवीकरण के लिए समाज के लोगों की जेब से डेढ़ करोड़ रुपये खुशी-खुशी निकलवाए। फतेहपुर सीकरी में दो कार्यक्रम कराए। आगरा किला में ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम का प्रस्ताव शासन में लम्बित है। आगरा विकास प्राधिकरण कार्यालय को आईएसओ सर्टिफाइड कराया है, जिसका मतलब है कि यहां जनता की सुनी जाती है। ताजनगरी फेस-2 जोनल पार्क में चौपाटी विकसित की जा रही है, जहां आगरा और भारत के खान-पान की हर प्रसिद्ध चीज मिलेगी।
मैं आगरा हूँ… पुस्तक का लोकार्पण और डॉ. राजेन्द्र पैंसिया के सम्मान समारोह का आमंत्रण जिला शासकीय अधिवक्ता अशोक चौबे ने दिया। पुस्तक की बात आई तो होटल होली डे इन आगरा में जाने का लोभ संवरण नहीं कर सका। मैं समय पर पहुंच गया। 6.30 बजे कार्यक्रम शुरू होना था। मेरी आदत समय पर चलने की है। करीब आधा घंटा विलम्ब से कार्यक्रम शुरू हुआ। समाज के संभ्रांत लोगों ने डॉ. राजेन्द्र पैंसिया के बारे में जो बातें कहीं, उन्हें सुनकर मैं दंग रह गया। स्वयं को कोसने लगा कि इतने सदाचारी आईएएस अधिकारी डॉ. राजेन्द्र पैंसिया से आखिर मैं क्यों नहीं मिला। खास यह है कि डॉ. राजेन्द्र पैंसिया ने उन सबके नाम लिए, जिन्हें वे जानते हैं। कहा- मैंने कुछ नहीं किया, आपने किया है। इंजीनियरों को सराहा कि एडीए को आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग दिया।
माल्यार्पण के लिए मेरा नाम पुकारा तो मैंने भी डॉ. राजेन्द्र पैंसिया का स्वागत किया और अपना परिचय दिया। मंच पर मुख्य अतिथि के रूप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक भवेन्द्र शर्मा, जाने-माने उद्यमी और समाजसेवी पूरन डावर, टूरिज्म गिल्ड के कई दफा अध्यक्ष रहे और लेखक अरुण डंग, ओसवाल बुक्स के नरेश जैन, डॉ. रंजना बंसल, डॉ. डीवी शर्मा विराजमान रहे। सभी ने डॉ. राजेन्द्र पैंसिया के बारे में अपने अनुभव साझा किए। अतिथियों का शानदार सत्कार अशोक चौबे ने किया।
वक्ताओं की बात करें तो आरएसएस के विभाग कार्यवाह पंकज खंडेलवाल, आगरा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. लवकुश मिश्रा, एडीए के मुख्य अभियंता चक्रेश जैन, सहायक अभियंता सतीश राजपूत, फिल्म प्रोड्यूसर रंजीत सामा, वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह, अपर जिलाधिकारी प्रशासन अजय कुमार सिंह, उप निदेशक उद्यान कौशल कुमार नीरज आदि ने विचार रखे। ज्योत्सना शर्मा ने गजल सुनकर भावविभोर कर दिया। काव्यमय संचालन सुशील सरित ने किया। राजीव वासन, मनमोहन निरंकारी, स्वदेश के संपादक मधुकर चतुर्वेदी, सूरज तिवारी, मयंक अग्रवाल, अरविन्द शर्मा, राजेश उपाध्याय, आर.डी. शर्मा, बृजेश शर्मा, अजय शर्मा, शरद गुप्त, संजय गुप्त, डॉ. महेश धाकड़, सत्यभूषण सिंह, इंजीनियर भदौरिया, प्रभात कुमार, विवेक, सुधांशु शर्मा, बृजेश शुक्ला, धर्मवीर चौहान आदि ने माल्यार्पण कर स्वागत किया। गायत्री शक्तिपीठ की ओर से सम्मान किया गया। सतीश राजपूत ने इंजीनियरों की ओर से स्मृति चिह्न भेंट किया। अशोक चौबे ने विशेष सम्मान किया। कवि संजय गुप्त ने आदर्शनंदन गुप्त का संदेश पढ़कर सुनाया।
डॉ. भानु प्रताप सिंह
9412652233, 8279625939
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