आगरा: श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चल रही चातुर्मासिक कल्प आराधना ने आध्यात्मिकता, आत्मचिंतन और धर्म साधना की एक प्रेरणादायक मिसाल पेश की। इस अवसर पर बहुश्रुत आगम ज्ञान रत्नाकर श्री जय मुनि जी महाराज, गुरु हनुमंत श्री आदीश मुनि जी और श्री विजय मुनि जी महाराज के उद्बोधन ने श्रद्धालुओं को आत्ममंथन और जीवन निर्माण की दिशा में प्रेरित किया।
आगम ज्ञान की गहराई में श्रीजय मुनि जी का मार्गदर्शन:
श्रीजय मुनि जी महाराज ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि जैन धर्म के बत्तीस आगम और चौबीस तीर्थंकरों की वाणी सूत्र, अर्थ और उभय रूप में उपलब्ध है। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल शब्दों से ज्ञान प्राप्त करना ‘सूत्र’ कहलाता है, जबकि उसका अर्थ समझना आवश्यक नहीं होता। जब सूत्र स्मरण में न रहें, तब शब्दों के माध्यम से आगम का स्मरण किया जाता है। उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति सूत्र और अर्थ दोनों को समझने की योग्यता रखता है, उसे उभय रूप में ज्ञान प्रदान किया जाता है।
मुनि श्री ने यह भी कहा कि तनावपूर्ण परिस्थितियों में सूत्रों का जाप मानसिक शांति प्रदान करता है। कई बार शब्दों में छिपे अर्थ ही समस्याओं का समाधान बनते हैं। तीर्थंकर भगवान अर्थ से उपदेश देते हैं और उनके गणधर उसे सूत्र रूप में संकलित करते हैं। इस प्रकार भगवान की वाणी पात्र की योग्यता अनुसार रची जाती है, जिसे कथाओं, कहावतों और उक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
गुरु हनुमंत श्री आदीश मुनि जी का जीवन निर्माण का संदेश:
गुरु हनुमंत, हृदय सम्राट श्री आदीश मुनि जी ने अपने प्रवचन में फरमाया कि मंजिल तक पहुँचने के लिए यात्रा आवश्यक है। उन्होंने श्रद्धालुओं को प्रेरित किया कि वे गुरुचरणों में आकर अपनी बुराइयों का चिंतन करें और जीवन का निर्माण करें। “सुख पाने के सूत्र” की श्रृंखला में उन्होंने गुस्से को समयानुसार पीने की कला सीखने पर बल दिया।
उन्होंने बताया कि दूसरों की गलतियों को सहन न कर सकना ही गुस्से का मूल है। बच्चे, युवा और वृद्ध सभी अपने-अपने तरीके से गुस्सा प्रकट करते हैं, जो अंततः चिड़चिड़ापन और बुद्धि के दीपक को बुझा देता है। उन्होंने सुझाव दिया कि गुस्से की स्थिति में कोई प्रतिक्रिया न करें और “रे जीव तू शांत रह” जैसे वाक्य को घर में प्रमुख स्थानों पर लगाने से वातावरण शांतिपूर्ण बन सकता है। श्रोताओं ने माना कि यह सूत्र सबसे कठिन है, परंतु अत्यंत प्रभावशाली भी।
श्री विजय मुनि जी का वीतराग वाणी पर प्रकाश:
श्री विजय मुनि जी ने फरमाया कि तीर्थंकरों की वीतराग वाणी भवसागर से पार कराने वाली है। इसका श्रवण, पठन और मनन ब्रह्मशांति प्रदान करता है और बंधनों से मुक्त कर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज का व्यक्ति धन प्राप्ति की दौड़ में आत्म मुक्ति का लक्ष्य भूल गया है। उन्होंने धर्म में लगने और जीवन को कल्याणकारी मार्ग की ओर मोड़ने का आह्वान किया।
जाप, त्याग और तपस्या की प्रेरणा:
धर्मसभा के अंत में गुरुदेव ने “श्री अनन्तनाथाय नमः” का जाप कराया और आज के त्याग में पिज़्ज़ा, पॉपकॉर्न, पास्ता और झूठा न छोड़ने का संकल्प दिलाया गया। तपस्या के क्रम में श्रीमती सुनीता का 18वाँ, श्रीमती अनोना के 9, श्रीमती नीतू के 5, मनोज के 4 और प्रियकांत के 3 उपवास जारी हैं।
श्रद्धालुओं की व्यापक भागीदारी:
आज की धर्मसभा में धुरी, पानीपत, दिल्ली सहित अनेक शहरों से श्रद्धालु उपस्थित रहे। सभा का वातावरण श्रद्धा, भक्ति और आत्मचिंतन से परिपूर्ण रहा।यह चातुर्मासिक कल्प आराधना न केवल धार्मिक अनुशासन का प्रतीक है, बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और जीवन निर्माण की दिशा में एक सशक्त कदम भी है।
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