आगरा। आगरा में सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की सुनियोजित साजिश का पर्दाफाश हो चुका है। शहर के देहली गेट स्थित सरकार नर्सिंग होम की छत पर संविधान शिल्पी डॉ. भीमराव अंबेडकर और भगवान बुद्ध की तस्वीरों वाली टाइल्स लगाने को लेकर उपजा विवाद अब अपने असली गुनहगारों तक पहुंच चुका है। पुलिस आयुक्त ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच टीम गठित की और इस टीम ने अब दो षड्यंत्रकारियों राकेश और अनिल कर्दम को चिन्हित कर लिया है।
पुलिस की शुरुआती जांच में सामने आया है कि अस्पताल के ही एक कर्मचारी राकेश निवासी गांव धौर्रा, एत्मादपुर ने निजी कारणों और लेन-देन के विवाद के चलते यह टाइल्स खुद अस्पताल की छत पर फ्लोर में लगाई थीं। इसके बाद अनिल कर्दम ने इन तस्वीरों का वीडियो और फोटो वायरल कर माहौल गरमाने की रणनीति बनाई।
टाइल्स को लेकर उत्पन्न जन आक्रोश को आदर्श समाज पार्टी (कांशीराम) और बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने हवा दी। डॉ. आंबेडकर और भगवान बुद्ध के अपमान पर विरोध जताना उनका अधिकार है, लेकिन जब किसी गंभीर मसले पर सिर्फ भावनाओं के आधार पर कार्रवाई हो और पुलिस से संपर्क की बजाय सीधा सड़क का रास्ता चुना जाए, तो स्थिति बिगड़ती है, सरकार नर्सिंग होम के मामले में ठीक वही हुआ।
पुलिस की त्वरित कार्रवाई और शांतिपूर्ण ढंग से विवाद को सुलझाने के प्रयासों ने आगरा को बड़ी आग से बचा लिया। अपर पुलिस उपायुक्त ने स्पष्ट किया है कि यह एक पूर्व नियोजित साजिश थी, जिसके जरिए माहौल बिगाड़ने की कोशशि की गई थी।
अब जब यह स्पष्ट हो चुका है कि इस विवाद के पीछे व्यक्तिगत विद्वेष और सुनियोजित उकसावे की साजिश थी, तो सवाल उठता है कि क्या भीड़ का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक दलों के नेता इन दोनों षड्यंत्रकारियों के खिलाफ सामाजिक दंड की मांग करेंगे? या फिर राजनीति की चादर तले यह सब ढंक दिया जाएगा?
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