2024 को ISRO ने इतिहास रच कर दी विदाई, स्पैडैक्स की सफल लांचिंग, चौथे देश में शुमार हुआ भारत

NATIONAL

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि इसरो जनवरी 2025 में जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के जरिए NVS-02 उपग्रह के प्रक्षेपण की तैयारी कर रहा है। इसरो प्रमुख ने कहा कि यह मिशन आगामी वर्ष में पूरे किए जाने वाले कई मिशनों में से एक है। जीएसएलवी प्रक्षेपण इसरो के 100वें मिशन को चिह्नित करेगा।

2025 में इसरो के पास कई मिशन

आगामी मिशन के बारे में इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि 2025 में हमारे पास कई मिशन हैं। शुरुआत करने के लिए हमारे पास जनवरी के महीने में NVS-02 को लॉन्च करने वाला जीएसएलवी का मिशन है। 29 मई, 2023 को GSLV-F12 रॉकेट ने 2,232 किलोग्राम वजन वाले NVS-01 उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में सफलतापूर्वक लॉन्च किया था।

इसरो के एक बयान के अनुसार, NVS-01 उपग्रह में एक स्वदेशी परमाणु घड़ी लगी है और इसे व्यापक सेवा कवरेज के लिए एल1 बैंड सिग्नल सहित NavIC की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया था। NVS-02 मिशन में इस प्रगति को जारी रखने की संभावना है, जिससे एडवांस सुविधाओं के साथ NavIC प्रणाली और मजबूत होगी। यह घोषणा सोमनाथ द्वारा PSLV-C60 के सफल प्रक्षेपण के बाद की गई, जो SpaDeX और अन्य पेलोड ले गया था।

इसरो ने सोमवार रात 10 बजे अपने महत्वाकांक्षी मिशन PSLV-C60 SpaDeX को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। इस मिशन के साथ भारत अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने वाले देशों के चुनिंदा क्लब में शामिल हो गया। इसरो ने बताया कि पीएसएलवी-सी60 ने स्पाडेक्स और 24 पेलोड को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इसे श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से स्पाडेक्स और नए पेलोड के साथ पीएसएलवी-सी60 को लॉन्च किया गया है।

इसरो का स्पैडेक्स मिशन पीएसएलवी की ओर से लॉन्च किया गया अंतरिक्ष में डॉकिंग के प्रदर्शन के लिए एक लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो) के मुताबिक, स्पैडेक्स मिशन का प्राथमिक उद्देश्य दो छोटे अंतरिक्ष यानों (एसडीएक्स 01 और एसडीएक्स 02) के पृथ्वी की निचली वृत्ताकार कक्षा में मिलन, डॉकिंग और अनडॉकिंग के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी का विकास और प्रदर्शन करना है।

इसरो ने कहा कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। एक बयान में कहा गया कि अपने छोटे आकार और द्रव्यमान की वजह से स्पैडेक्स और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि दो बड़े अंतरिक्ष यान को डॉक करने की तुलना में मिलन और डॉकिंग युद्धाभ्यास के लिए अधिक सूक्ष्म परिशुद्धता की जरूरत होती है। यह मिशन पृथ्वी से जीएनएसएस के समर्थन के बिना चंद्रयान-4 जैसे भविष्य के चंद्र मिशनों के लिए जरूरी ऑटोनोमस डॉकिंग का अग्रदूत होगा।

अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि स्पैडेक्स कक्षीय डॉकिंग में भारत की क्षमता स्थापित करने का एक महत्वाकांक्षी मिशन है, जो भविष्य में मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन और उपग्रह सेवा मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है। पहले इसकी लॉन्चिंग 30 दिसंबर, 2024 को रात 9 बजकर 58 मिनट पर होनी थी, लेकिन बाद में इसरो अधिकारियों ने इसे रात 10 बजे के लिए टाल दिया। हालांकि, लॉन्चिंग के पीछे कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई।

अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग’ के लिए यह एक किफायती प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन है। इससे भारत, चीन, रूस और अमेरिका जैसी स्पेशल लिस्ट में शामिल हो गया है। ‘स्पेस डॉकिंग’ तकनीक का तात्पर्य अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ने की तकनीक से है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेज पाना संभव होता है।

क्या है SpaDeX मिशन?

SpaDeX का पूरा नाम स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (Space docking experiment) है। इस मिशन के तहत ISRO ने दो उपग्रहों, चेजर और टारगेट को अंतरिक्ष में भेजा। इन दोनों उपग्रहों को आपस में जोड़कर अंतरिक्ष डॉकिंग का प्रदर्शन किया गया। यह तकनीक भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशनों और अन्य बड़े अंतरिक्ष यानों के निर्माण में बहुत उपयोगी होगी।

अंतरिक्ष में डॉकिंग प्रौद्योगिकी भारत की अंतरिक्ष संबंधी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जरूरी होगी, जिसमें चंद्रमा पर मानव को भेजना, वहां से नमूने लाना और देश के अपने अंतरिक्ष स्टेशन – भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन करना शामिल है। डॉकिंग प्रौद्योगिकी का उपयोग तब भी किया जाएगा जब सामान्य मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक से अधिक रॉकेट प्रक्षेपण की योजना बनाई जाएगी।

इसरो ने कहा कि पीएसएलवी रॉकेट में दो अंतरिक्ष यान- स्पेसक्राफ्ट ए (SpaDeX01) और स्पेसक्राफ्ट बी (SpaDeX02) को एक ऐसी कक्षा में रखा जाएगा जो उन्हें एक दूसरे से पांच किलोमीटर दूर रखेगी। बाद में, इसरो मुख्यालय के वैज्ञानिक उन्हें तीन मीटर तक करीब लाने की कोशिश करेंगे, जिसके बाद वे पृथ्वी से लगभग 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक साथ मिल जाएंगे।

Dr. Bhanu Pratap Singh