विश्वविख्यात कथावाचक डॉ. श्याम सुंदर शर्मा ने ऐसी कथा सुनाई कि सम्मोहित हो गए हजारों श्रद्धालु
केन्द्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल, सांसद राजकुमार चाहर, डॉ. हरीश रौतेला समेत कई हस्तियों ने की आरती
डॉ. भानु प्रताप सिंह ‘चपौटा’
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Agra, Uttar Pradesh, Bharat, India. एसकेएस ग्रुप के सर्वेसर्वा संतोष कुमार शर्मा द्वारा आयोजित भागवत कथा ने आगरा में नया इतिहास रच दिया है। यह इतिहास न केवल श्रद्धुओं की भीड़ को लेकर है बल्कि कथा की भव्यता और दिव्यता को लेकर भी है। वास्तव में यह आगर की अब तक की सबसे बड़ी भागवत कथा है। इतिहास इसलिए भी है कि कथास्थल आगरा शहर से 20 किलोमीटर दूर होने के बाद भी हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन पहुंचे। आगरा के सभी राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों की हस्तियां पहुंचीं। इस भागवत कथा की धमक दिल्ली और लखनऊ तक रही। आप सबने एक कहावत सुनी होगी- तिल रखने को भी जगह न रहना.. यह कहावत भागवत कथा में चरितार्थ हुई। अंतिम दिन तो तिल रखने को भी जगह नहीं बची। इस बात का उल्लेख विश्वविख्यात भागवताचार्य डॉ. श्याम सुंदर पाराशर ने भी किया। संतोष कुमार शर्मा इतने भावविभोर हो गए कि मंच से कुछ बोल न सके।
फतेहाबाद रोड पर होटल रमाडा के सामने राज देवम रिसॉर्ट में भागवत कथा 16 अक्टूबर, 2023 को शुरू हुई थी। पहले दिन से ही श्रद्धालुओं का तांता लग गया। आगरा शहर ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्र जैसे फतेहाबाद, शमसाबाद, बार, खेरागढ़, किरावली से भी श्रद्धालु आए। मथुरा, फिरोजाबाद, हाथरस से भी श्रद्धालु आए। स्वाभाविक रूप से महिलाओं की संख्या अधिक रही। साधु संतों के लिए विशेष प्रकार के आसन रखे गए। बिछावन से अधिक कुर्सियां और सोफा थे। सभी श्रद्धालुओं पर इत्र वर्षा की गई।

भागवत कथा का एक रिकॉर्ड यह भी है कि यहां सिर्फ अधेड़ और बुजुर्ग ही नहीं बल्कि युवा और बच्चे भी बड़ी संख्या में पहुंचे। युवा ही व्यवस्था में लगे हुए थे। सुल्तानगंज की पुलिया स्थित वनवासी कल्याण आश्रम छात्रावास में शिक्षा ग्रहण कर रही आदिवासी छात्राएं भी कथा श्रवण करने पहुंची। सूरकुटी के नेत्रहीन विद्यार्थी रोजाना कथा सुनने आए। बच्चों की बड़ी संख्या ने सबको प्रभावित किया। 21 अक्टूर को तो हालत यह हो गई थी कि बच्चों को द्वार पर ही रोकना पड़ा। ऐसे करीब 100 बच्चे थे। इन्हें कथा समापन पर दुगुना प्रसाद देकर विदा किया गया।
पदवेश रखने के लिए विशेष इंतजाम हुए। इसके बाद भी अनेक श्रद्धालुओं के पदवेश यत्र-तत्र दिखाई दिए। अंतिम दिन न जाने क्या हुआ, कोई मेरे पदवेश पहन गया। मैं बिना पदवेश के ही लौटकर आया। इस बारे में मैंने ताजगंज के पंडित ब्रह्मदत्त शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा कि भागवत कथा से जिसका पदवेश गायब होता है, उसका कोई बड़ा संकट टल जाता है

अंतिम दिन कथा सुनाते हुए डॉ. श्याम सुंदर पाराशर ने कहा- जो जीवन में असंतुष्ट और जिसकी तृष्णा बहुत बड़ी हो, वह गरीब है। सुदामा वो हैं जिनके पास श्रीहरि रूपी सुन्दर धन हो। राम नाम रूपी सिक्का सिर्फ विश्व में ही नहीं बल्कि समस्त लोकों में चलता है। रामनाम की मुद्रा से ही सुख सम्पत्ति आती है। असली धनवान वही है जिसके पास राम नाम की मुद्रा है।
भगवताचार्य डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने सुदामा चरित्र का ऐसा सजीव वर्णन किया कि कथा पंडाल दीनबंधु भगवान व सुदामा महाराज के जयकारों से गूंज उठा। कहा कि भला सुदामा कैसे दरिद्र हो सकते हैं जिनके पैर जगतपिता दबा रहे हैं और माता लक्ष्मी पंखा झल रही हैं। धन के आने जाने का कष्ट मालिक को होता है, सेवक को नहीं। इसलिए कष्टों से मुक्ति चाहिए तो गोविन्द का सेवक बनकर रहिए। सब कन्हैया पर छोड़ दो। शुद्ध चित के लोगों का हृदय प्रभु की भक्ति में लगता है। कहा भगवान के समरण मात्र से ही तन और मन पवित्र हो जाते हैं।

श्रीहरि के सभी अवतारों का भरत भूमि पर अवतरण के बारे में बताते हुए कहा कि भारत प्रभु का हृदय है। इसलिए यहां श्रीहरि की कृपा के बिना जन्म सम्भव नहीं। भारत से धर्म की हानि हुई तो विश्व छिन्न भिन्न हो जाएगा।
भगवतासार में बताया कि 56 करोड़ यदुवंशी आपस में लड़कर ही समाप्त हो गए। सिर्फ कुछ ही बचे। बहेलिया का तीर लगने से श्रीहरि के शरीर से जो प्रकाश निकला वह आज भी श्रीमद्भागवत कथा के रूप में आज भी हमारे बीच है। कलियुग में हजारों बुराईयां हैं, परन्तु हरिनाम संकीर्तन करने वालों पर कलियुग का प्रभाव नहीं पड़ता।

श्रीमद्भागवत कथा में डांडिया के आयोजन में सांसद एसपी सिंह बघेल व उनकी धर्मपत्नी ने भी डांडिया खेला। संतोष शर्मा व नकी धर्मपत्नी ललिता शर्मा ने आरती कर सबी श्रद्धालुओं को 23 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे से भण्डारे के लिए आमंत्रित किया।
व्यासपीठाचार्य डॉ. श्याम सुन्दर पाराशर ने कहा कि श्रीराधा और रुक्मणी एक ब्रह्म के दो प्रकाश हैं। ब्रह्मांड का अंतिम आधार राधा है। सबका आधार श्रीराधा ही हैं। चंदा को मामा कहने की व्याख्या करे हुए कहा कि माता लक्ष्मी व चंद्रमा दोनों समुन्द्र मंथन से प्रकट हुए। इसलिए दोनों समुन्द्र के पुत्र और पुत्री हैं। माता लक्ष्मी जगत माता हैं और उनके भाई जगत के मामा हुए। इसलिए चंद्रमा को मामा कहा जाता है।

राजा परीक्षित की भूमिका निभा रहे संतोष कुमार शर्मा और श्रीमती ललिता शर्मा, प्रखर शर्मा, उनके परिजन, केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल, फतेहपुर सीकरी से सांसद और भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजकुमार चाहर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र कार्यवाह प्रमोद शर्मा, प्रांत प्रचारक डॉ. हरीश रौतेला, भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष दिनेश शर्मा, पूर्व मंत्री रामसकल गुर्जर, मनकामेश्वर मंदिर के महंतश्री योगेश पुरी महाराज, आईपीएस केशव चौधरी और मयंक तिवारी, पूर्व विधायक मधुसूदन शर्मा, डॉ. डीवी शर्मा, डॉ. राजीव उपाध्याय, हाथरस की जिला पंचायत अध्यक्ष सीमा उपाध्याय, शैलू पंडित, मनीष थापक आदि ने आरती की।
दैनिक जागरण के संपादक अवधेश माहेश्वरी, प्रीति माहेश्वरी, पूर्व संपादक आनंद शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह चपौटा, हिन्दुस्तान के सिटी चीफ मनोज मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार शोभित चतुर्वेदी, एसके शर्मा मथुरा, पत्रकार अंशु पारीक, गजेन्द्र शर्मा, अशोक चौबे डीजीसी, सुधीर राठौर, बबलू लोधी, संजय सिंह, रवीन्द्र अछनेरा, उत्तम सिंह ब्लॉक प्रमुख बरौली अहीर, जगदीश सिंह तोमर खंदौली, संजय गुप्ता, ऋषि उपाधायाय, डॉ. लाल सिंह लोधी आदि ने कथावाचक डॉ. श्याम सुंदर शर्मा का स्वागत किया। डॉ. हरिनारायण चतुर्वेदी और राजेन्द्र बरुआ ने संचालन किया। 23 अक्टूबर को अपराह्न एक बजे से भंडारा है। एसकेएस परिवार ने सभी को आमंत्रित किया है।

21 अक्टूबर की कथा
श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध की कथा का प्रसंग सुनाते हुए डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने कहा कि जिस तरह द्वापर युग में कुछ लोग शिशुपाल जैसे लोगों के साथ थे, वैसे ही आज भी भारत की धरती पर भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाने वालों का साथ राजनीतिक लाभ के लिए दे रहे हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बकवास हो रही है। यह उदारता सिर्फ भारत में है जहां कहा जाता है कि विश्व का कल्याण हो। भारतीय सहनशील हैं, कायर नहीं। हमारी सहिष्णुता का जो लोग फायदा उठाने का प्रयास करें तो उन्हें उन्हीं की भाषा में समझाना भी आता है हमें। विश्व समुदाय को भारत का संदेश देते हुए कहा कि जो शांति से समझे से शांति से और जो क्रांति से समझे उसे क्रांति से समझाते हैं। पहले हम शांति के कबूतर उड़ा रहे थे। जब से हमने आतंकवाद फैलाने वाले पड़ोसी के घर में घुसकर थप्पड़ मारा है तब से शांत है। शांतिप्रिय बनो मगर इतने नहीं कि लोग तुम्हें कायर समझ लें।
उन्होंने कहा कि जिस महारास में योगेश्वर संग काम को अपने नेत्र से भस्म करने वाली शिव शंकर ता-ता थैया कर रहे हो वहां भला काम-वासना कैसे हो सकती है। महारास काम विजय क्रीड़ा है। जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण ने काम का मान मर्दन किया है। महारास पूर्णिमा और रात के ऐसे समय में हुआ जब काम सर्वाधिक बलशाली होता है। पूर्णिमा पर मन के देवता चंद्रमा शक्तिशाली तो काम अधिक उद्दीप्त होता है। ऐसी परिस्थिति में भी कामदेव श्रीहरि को नहीं हरा पाया। योगेश्वर के चित्त पर पर कोई विकार पैदा नहीं कर पाया। तब कामदेव ने श्रीकृष्ण की स्तुति की और अच्युत नाम दिया। जिसका अर्थ है अविनाशी, जिसके चित्त पर किसी का प्रभाव न पड़े।

डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर में महारास का वर्णन करते हुए कहा महारास वो परमानन्द है जिसमें हर किसी का प्रवेश सम्भव नहीं। वस्त्र हरण प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि 6 वर्ष की उम्र में श्रीकृष्ण ने जीवात्मा रूपी गोपिया के ऊपर चढ़े माया रूपी वस्त्रों का आवरण हटाने के लिए यह लीला रची। परन्तु अज्ञानवश लोग वस्त्र हरण व महारास को काम-वासना से जड़ते हैं। महारास में मायारूपी आवरण के साथ प्रवेश नहीं कहा जा सकता। महारास में प्रवेश पाने के लिए सात सीढ़ियों को पार करना होता है। पहली सीढ़ी भक्तमुख से श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण, नवधा भक्ति का आचरण, सद्गुरु का वरण, विरक्ति, शरीर व संसार से मोह त्याग, दिव्य रास मण्डप का मन में भाव तब कहीं सातवीं सीढ़ी पर महारास में प्रवेश मिलता है। किन्तु परन्तु से ऊपर की लीला है
श्रीकृष्ण रुक्मणी विवाह के उत्सव में श्रीकृष्ण व रादा बनकर पहुंचे स्वरूपों का विधि विधान से पूजन किया गया। संतोष शर्मा व उनकी धर्मपत्नी ललिता शर्मा ने आरती कर सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से सांसद रामशंकर कठेरिया, रामसकल गुर्जर, विधायक छोटेलाल वर्मा, अध्यक्ष जिला पंचायत मंजू भदौरिया, आननंद शर्मा, मनीष थापक, मनीष शर्मा, विवेक उपाध्याय आदि उपस्थित थे।

कुबड़ी का उद्धार और तमाम दैत्यों के वध के बाद कंस वध होने पर कृष्ण कन्हैया और बांके बिहारी के जयकारों से कथा पंडाल गूंज उठा। आकाश से देवता श्रीहरि के पर पुष्प वर्षा करने लगे। उज्जैन अवन्तिकापुरी में भगवान शिक्षा ग्रहण करने गए। भगवान को ज्ञानी प्रिय हैं, अभिमानी नहीं। ज्ञानी अभिमानी न बने यह बहुत मुश्किल है। उद्धव जी के ज्ञान पर लगी अभिमान की जंग को वृन्दावन श्रीहरि की भक्ति में डूबी गोपियों के पास भेजकर हटाया। श्रीकृष्ण परमतत्व है। जिसमें सभी रस समाहित है। अलौकिक वृन्दावन के दर्शन चर्म चक्षुओं से नहीं किए जा सकते। दिव्य वृन्दावन के दर्शन के लिए श्रीकृष्ण ने उद्धव को दिव्य दृष्टि दी।

ग्वाल बालों को बैकुण्ड कुंड के माध्यम से बैकुण्ड के दर्शन कराने पर ग्वाल श्रीकृष्ण से ब्रज की महिला का बखान करते हुए कहते हैं, हमारा ब्रज की अच्छा है। जहां हम श्रीकृष्ण के साथ खेल-खेल में दो-दो हाथ करते हैं। साथ में गाय चराते हैं। गोपियों के थोड़े से छाछ के लिए कमर पर हाथ रखकर श्रीहरि मटकते हैं। यह सौभाग्य बैकुण्ड में कहा। व्यासपीठाचार्य डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने कहा कि परमात्मा का जो सरलीकरण वृन्दावन में हुआ वह कहीं और सम्भव नहीं है।

नेत्र रोग शिविर में हुआ 300 लोगों की परीक्षण
श्रीमद्भागवत कथा में सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक निशुल्क नेत्र रोग शिविर का आयोजन किया गया। 300 से अधिक लोगों का परीक्षण एसएन मेडिकल कालेज के वरिष्ठ चिकित्सकों द्वारा किया गया। 125 लोगों को निशुल्क चश्मा वितरण व 50 लोगों का चयन मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए किया गया।
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