वीरांगना के योगदान को इतिहासकारों ने क्यों नकारा ?
मथुरा। रानी अवंतीबाई का 192 वां जयंती दिवस महिला अवंतीबाई पार्क में लगी भव्य प्रतिमा पर पुष्प अर्पित व माल्यार्पण कर बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी का जन्म 16 अगस्त सन 1831 को मनखेड़ी के जमींदार राव झुझार सिंह के यहाँ हुआ था। रानी अवंतीबाई ने अपने आप को अंग्रेजो के बीचे घिरता देख अपने आपको तलबार भोंक ली थी।
वेरी के हाथ से अंग न छूने पाये इसका प्रण था
20 मार्च 1858 को इस वीरांगना ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए युद्ध लड़ते हुए अपने आप को चारों तरफ से घिरता देख वीरांगना महारानी अवंतीबाई ने अपने आप को ही तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया था।
अखिल भारतीय लोधी महासभा के जिला अध्यक्ष मंगल सिंह ने भव्य विशाल प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको नमन किया
पार्क में पहुंचे समाज के लोगो ने वीरांगना रानी अवंतीबाई अमर रहें के जय कारों से सम्पूर्ण क्षेत्र को गुंजायमान कर दिया। उस वीरांगना को जिसने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन में रानी अवंतीबाई लोधी के योगदान को इतिहासकारों ने नकार दिया और लोगों तक उनकी वीरता की कहानी कभी आने ही नही दी। जब कि रानी अवंतीबाई लोधी ने अग्रेजो से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनके योगदान को इतिहासकारों ने कोई अहम स्थान न देकर उनके साथ नाइंसाफी की है। आज देश में बहुत से लोग हैं, जो उनके बारे में नहीं जानते हैं। लेकिन उनका योगदान 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अग्रणी वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं हैं। इस मौके पर अखिल भारतीय लोधी महासभा की कार्यकारणी व समाज के बाबू लाल, प्रकाश पम्प, महावीर, मनोहर पटेल, कन्हैयाँ मुकुट, नीरज, भीम आदि गढ़मान्य लोग मौजूद लोगों ने उन्हें इस अवसर पर याद किया।
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