यमन के हूती चरमपंथियों ने अमेरिकी सेना के MQ-9 रीपर ड्रोन को मार गिराने का दावा किया है। हतियों ने ड्रोन की आसमान में मिस्राइल से शूट किए जाने का एक वीडियो भी जारी किया है। ईरान समर्थित चरमपंथी समूह ने दावा किया कि उसने ड्रोन पर हमले के लिए जमीन से हवा मार करने वाली मिसाइल का इस्तेमाल किया है। हुती समूह के सैन्य प्रवक्ता के मुताबिक, अमेरिकी ड्रोन को उस समय निशाना बनाया गया जब वह एक शत्रुतापूर्ण मिशन पर था।
इजरायल और हमास के बीच युद्ध के दौरान हतियों ने एक बार फिर अपने हमाले तेज कर दिए हैं। शनिवार को ही हुतियों ने लाल सागर में एक ब्रिटिश तेल टैंकर जहाज को निशाना बनाया था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कृतियों द्वारा मार गिराया गया अमेरिकी एमक्यू-9 रीपर ड्रोन हवा से जमीन पर मार करने वाली ज्वाइंट मिसाइल जेएजीएम-179 लेकर जा रहा था। रीपर ड्रोन से पहले इस्तेमाल की गई पुरानी एजीएम-114 हलफायर मिसाइलों की तुलना में जेएजीएम अधिक उन्नत और सक्षम मिसाइल है।
हृतियों ने जारी किया घटना का वीडियो
सऊदी अरब के न्यूज पोर्टल अशके अल-अवसात ने बताया कि अमेरिका वायु सेना के लेफ्टनेंट कर्नल ब्रायन के. मैकगैरी ने एसोसिएटेट प्रेस से स्वीकार किया है कि अमेरिकी वायु सेना का एमक्यू-9 ड्रोन पमन में दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। उन्होंने अधिक जानकारी दिए बताया कि जांच चल रही है। तृतियों ने ड्रोन पर हमला करने और फिर उसके गिरने का वीडियो फुटेज जारी किया है। कचित फुटेज में मिसाइल जमीन से छोड़े जाने और आसमान में किसी चीज से टकराने के बाद विस्फोट होते दिखाया गया है। इसके बाद फुटेज में ड्रोन के कई हिस्सों के ब्लोज अप शामिल हैं, जिनमें इसे बनाने वाली कंपनी जनरल एटोमिक्स का लोगों भी शामिल है।
भारत के लिए चिंता की बात
तृतियों के एमक्यू-9 रीपर ड्रोन मार गिराने के बाद भारत की भी चिंता बढ़नी लाजिमी है। हृतियों ने जिस रीपर ड्रोन को मार गिराया है, उसी श्रेणी के ड्रोन भारत अमेरिका से खरीद रहा है। इसी साल फरवरी की शुरुआत में अमेरिका ने भारत 3.99 अरब डॉलर की अनुमानित लागत पर 31 एमक्यू-9वी सशस्त्र ड्रोन की बिक्री को मंजूरी दी थी। ये ड्रोन भारत की नेवी को हासिल होना है, जिसका इस्तेमाल समुद्र में मानवरहित निगरानी और टोही गश्त को सक्षम करना है।.
इस ड्रोन के आने से भविष्य के खतरों से निपटने की भारत की क्षमता में वृद्धि होने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके साथ ही भारत को चीन के साथ लगने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा पर निगरानी के लिए भी लंबे समय तक चलने वाले ड्रोन की जरूरत है।
-एजेंसी
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