आगरा। क्या आप सोच रहे हैं कि आगरा पुलिस कमिश्नरेट में सब कुछ शांत है? कोई अपराध नहीं, कोई उत्पीड़न नहीं, कोई लापरवाही नहीं? अगर आप ऐसा सोच रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही हैं। क्योंकि तभी तो स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यहां के पुलिस अधिकारियों को इतने मेडल मिले हैं। इतने मेडल कि बस पूछिए मत!
अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) ज़ोन आगरा अनुपम कुलश्रेष्ठ को पुलिस महानिदेशक का प्रशंसा चिह्न हीरक मिला है। हीरक, यानी हीरा। हीरा भी तब मिला है, जब आगरा में अपराधों की चमक फीकी पड़ गई है।
पुलिस कमिश्ररेट के 17 अधिकारियों और कर्मचारियों के नाम डीजी प्रशंसा चिह्न की सूची में शामिल हैं।
सवाल यह नहीं है कि मेडल क्यों मिले, बल्कि सवाल यह है कि मेडल से क्या मिलेगा? क्या इन मेडलों से लोगों को इंसाफ मिलेगा? क्या इससे पुलिस का व्यवहार बेहतर हो जाएगा? क्या पुलिस थाने में गरीबों की सुनवाई होने लगेगी? शायद नहीं। क्योंकि अगर ऐसा होता तो पहले ही हो गया होता।
एडीसीपी सिटी आदित्य, जिन्होंने धर्मांतरण गैंग का पर्दाफाश किया था, को पुलिस महानिदेशक का रजत पदक मिला है। धर्मांतरण गैंग का पर्दाफाश करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पुलिस का सामान्य काम नहीं है? क्या हर अच्छा काम करने वाले को मेडल मिलना चाहिए? या फिर मेडल उन्हीं को मिलते हैं, जो कुछ खास करते हैं?
एसीपी सैंया सुकन्या शर्मा, एसीपी छत्ता पियूष कांत राय, एसीपी लोहामंडी मयंक तिवारी को भी रजत पदक मिला है। एसीपी शेषमणि उपाध्याय को उत्कृष्ट सेवा पदक। यह देखकर ऐसा लगता है कि आगरा पुलिस में सिर्फ उत्कृष्ट लोग ही हैं। क्या कोई ऐसा भी है, जिसने कोई साधारण काम किया हो?
इंस्पेक्टर ताजगंज जसवीर सिंह सिरोही, इंस्पेक्टर सिकंदरा नीरज कुमार शर्मा, पश्चिमी जोन के सर्विलांस प्रभारी एसआई अनुज कुमार, सिटी सर्विलांस सेल में तैनात आरक्षी प्रिंस कौशिक, एसओजी पुलिस आयुक्त में तैनात आरक्षी पुष्पेंद्र कुमार, एसओजी पश्चिमी में तैनात आरक्षी धीरज कुमार को भी रजत पदक मिला है। इंस्पेक्टर राजेश कुमार और एसआई श्याम सुंदर यादव को उत्कृष्ट सेवा सम्मान पदक।
क्या आपको नहीं लगता कि यह सूची बहुत लंबी है? क्या आपको नहीं लगता कि इतने सारे मेडलों से पुलिस की छवि कुछ ज्यादा ही चमकदार हो जाएगी? और जब पुलिस की छवि इतनी चमकदार होगी, तो क्या उसमें दाग ढूंढना मुश्किल नहीं होगा?
इंस्पेक्टर सतीश कुमार और एसआई यतेंद्र शर्मा को पेशी पुलिस आयुक्त सेवा अभिलेख के आधार पर सिल्वर पदक मिला है। पुलिस लाइन में तैनात मुख्य आरक्षी अरविंद को मुख्यमंत्री वीरता पदक।
इतने सारे मेडलों के साथ, ऐसा लगता है कि आगरा पुलिस एक मेडल फैक्ट्री बन गई है। मेडल बनाने वाली फैक्ट्री। लेकिन क्या यह फैक्ट्री इंसाफ भी बना रही है? या फिर सिर्फ मेडल बना रही है, ताकि लोग कुछ और न पूछें?
यह मेडल वितरण समारोह परेड के बाद परेड ग्राउंड में हुआ। शुक्रवार को सभी को बुलाया गया था। सब कुछ तय था। सब कुछ पहले से ही पता था। तो फिर यह सब इतना महत्वपूर्ण क्यों है? क्या यह सिर्फ एक औपचारिकता है?
सवाल यह नहीं है कि ये लोग मेडल के हकदार हैं या नहीं। सवाल यह है कि क्या मेडलों से पुलिस की असली तस्वीर बदल जाएगी? क्या इससे पुलिस का काम करने का तरीका बदल जाएगा? या फिर यह सिर्फ एक और इवेंट है, जो पुलिस की चमक को बनाए रखने के लिए होता है?
आपकी क्या राय है? क्या मेडल बांटने से पुलिस की छवि सुधरेगी? या फिर सिर्फ मेडल का ही मूल्य बढ़ेगा, और पुलिस का नहीं?
-मोहम्मद शाहिद की कलम से
नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं
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