डॉ. भानु प्रताप सिंह
वेलेनटाइन डे के बारे में हम सब जानते हैं, किसी खास को वेलेनटाइन मानते हैं। वेलेनटाइन यानी प्यार, कुर्बानी के लिए तैयार। प्रेम के बारे में कि सी ने कहा है- त्याग, तपस्या, ज्ञान, पुण्य, पूजा-पाठ फिजूल, जीवन में खिलते नहीं अगर प्रेम के फूल। चुनावी सीजन में तो प्यार की परिभाषा ही बदल गई है, वोटर हों या प्रत्याशी, नई परिभाषा गढ़ लई है। वेलेनटाइन में प्यार निश्छल है, चुनावी वेलेनटाइन में छल ही छल है। तो कुछ चुनिंदा चुनावी ‘चूं-चूं’ चुहलबाजी के बारे में जानिए और अपने वेलेनटाइन को पहचानिए।
प्रत्याशी
प्रत्याशी के लिए तो वोटर ही वेलेनटाइन है, उसी के लिए प्राचीन ‘वाइन’ है। वोटर नहीं है तो भाड़ में जा, चाहे ‘तिहाड़’ में जा। चाहे वोटर ऐंचकताना है पर जाना-पहचाना है। पांच साल में एक बार ही तो वेलेनटाइन बनाना है, फिर तो न मिलने का बहाना ही बहाना है। वेलेनटाइन कहकर जताना पड़ता है, मतलब के लिए गधे को भी बाप बनाना पड़ता है। इसलिए वोटर से ही ‘गुटरगूं’ करनी है, इसी से दुकान चलनी है। तभी तो प्रत्याशी वोटर की अंगुलियों पर नाचता है, एक प्रेमिका की तरह डांटता है। नैक लल्लो-चप्पो में ही वोटर वेलनटाइन बन जाता है, यह बात अलग है कि बाद में पछताता है।
वोटर
वोटर तो प्रत्याशी को ही वेलेनटाइन बताता है, वही तो बार-बार आलिंगन करने आता है। गुलाब का फूल न सही, कुछ और तो दे ही जाता है और किसी को कुछ नहीं बताता है। बेचारा वोटर जाएगा कहां, प्रत्याशी से अच्छा वेलेनटाइन पाएगा कहां। प्रत्याशी पर कार है, बंगला है, पैसा है, बिलकुल वेलेनटाइन जैसा है। प्रत्याशी भी जाएगा कहां, वोटर सा सीधा वेलेनटाइन पाएगा कहां। वोटर वोट दिखाता है, प्रत्याशी घुटनों के बल आता है।
कार्यकर्ता
चुनाव में कार्यकर्ता भी वेलेनटाइन बन जाते हैं, तरह-तरह का ‘प्रसाद’ पाते हैं। प्रत्याशी के संग-संग चलते हैं, उसी के यहां पलते हैं। वहीं खाते हैं, वहीं पीते हैं, वहीं जगते हैं, वहीं सोते हैं। जो सारा खर्चा उठाए, वही वेलेनटाइन कहलाए। प्रत्याशी खर्चा उठाता है, तभी तो वह वेलेनटाइन बन जाता है। तो आओ भाई आओ, वेलेनटाइन बनकर फायदा उठाओ।
पार्टी
अगर ‘बी फार्म’ पर साइन है तो पार्टी ही वेलेनटाइन है। पार्टी ने बी फार्म रोका तो कर दिया धोखा। पार्टी से चुनाव में पैसा आता है, डबल वेलेनटाइन बन जाता है। पार्टी के ‘चंदावीर’ चहकते हैं, मुरझाए फूल महकते हैं। जो सीट निकाल दे, वही पार्टी का वेलेनटाइन है, जो सीट गँवा दे वह तो खलनायक है। इसीलिए सीट जीतकर तन जाओ, पार्टी के वेलेनटाइन बन जाओ।
और अंत में
राजनीति गंदी बहुत खड़ा-खड़ा गरियाय।
यही हमारे श्रेष्ठजन, ना वोट डालने जाय।।
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डॉ. भानु प्रताप सिंह, संपादक
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