यूपी बोर्ड परीक्षा: नकल का ठेका, शिक्षक की विवशता और प्रशासन की असहायता

Education/job लेख

यूपी बोर्ड परीक्षा देश की सबसे बड़ी माध्यमिक परीक्षा है, जिसमें लाखों छात्र भाग लेते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह परीक्षा शिक्षा की गुणवत्ता से अधिक नकल माफियाओं और भ्रष्टाचार के कारण चर्चा में रही है। परीक्षा में नकल कराना अब एक संगठित उद्योग बन चुका है, जिसमें ठेके पर नकल कराई जाती है और पैसे देकर परीक्षा केंद्र तक बनवाए जाते हैं। इस स्थिति में सबसे अधिक प्रभावित वे शिक्षक हैं, जो नकल रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन प्रशासनिक और सामाजिक दबाव के आगे बेबस हो जाते हैं। परीक्षा केंद्रों पर सीसीटीवी लगाए गए हैं, फिर भी नकल माफिया मनमानी कर रहे हैं।

पैसे देकर परीक्षा केंद्र बनवाने का खेल

यूपी बोर्ड परीक्षा में परीक्षा केंद्र चयन की प्रक्रिया में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। परीक्षा केंद्र उन स्कूलों में बनाए जाते हैं जो मोटी रकम देकर अपने केंद्र सुनिश्चित करवा लेते हैं। यह प्रक्रिया स्थानीय शिक्षा अधिकारियों और रसूखदार व्यक्तियों की मिलीभगत से संचालित होती है। जिन स्कूलों को परीक्षा केंद्र का दर्जा मिल जाता है, वे फिर नकल माफियाओं के लिए खुलेआम ठेका चलाते हैं और छात्रों से मोटी रकम लेकर नकल करवाते हैं।

ठेके पर नकल: एक संगठित उद्योग

आज यूपी बोर्ड परीक्षा में नकल कराने के लिए बाकायदा ठेके दिए जाते हैं। छात्रों या उनके अभिभावकों से मोटी रकम वसूल कर उन्हें परीक्षा में पास कराने की गारंटी दी जाती है। कुछ स्कूल प्रबंधक और शिक्षा माफिया इस धंधे को बढ़ावा देते हैं। परीक्षा केंद्रों पर सॉल्वरों को बैठाकर कॉपियां लिखवाई जाती हैं, खुलेआम नकल सामग्री उपलब्ध कराई जाती है और शिक्षकों पर दबाव डाला जाता है कि वे इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करें।

शिक्षकों की विवशता और असहाय प्रशासन

शिक्षकों की स्थिति इस पूरे खेल में सबसे दयनीय हो गई है। यदि कोई शिक्षक नकल रोकने की कोशिश करता है, तो उसे धमकाया जाता है, बदनाम किया जाता है और कभी-कभी शारीरिक हमले तक झेलने पड़ते हैं। कई बार राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव भी उन पर पड़ता है, जिससे वे नकल माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने से डरते हैं।

दूसरी ओर, सरकार ने अब नकल रोकने के लिए कठोर नियम लागू किए हैं, जिसमें दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास और एक करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। लेकिन यह दंड अधिकतर शिक्षकों के लिए ही मुसीबत बनता जा रहा है, क्योंकि वे नकल रोकने में असमर्थ होते हैं, लेकिन उन पर ही कार्रवाई कर दी जाती है।

स्थानीय शिक्षा विभाग और प्रशासन की असहायता

शिक्षा विभाग और प्रशासन के अधिकारी इस समस्या को समाप्त करने में असहाय नजर आते हैं। परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा और निगरानी बढ़ाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और मिलीभगत के चलते यह केवल कागजी कार्रवाई बनकर रह जाती है। अधिकारी जानते हैं कि यदि वे नकल माफियाओं पर सख्त कार्रवाई करते हैं, तो उन्हें राजनीतिक और सामाजिक विरोध झेलना पड़ेगा।

सरकार की भूमिका और आवश्यक सुधार

सरकार ने नकल रोकने के लिए तकनीकी निगरानी, उड़नदस्तों, सीसीटीवी और सख्त नियमों की घोषणा तो की है, लेकिन जब तक परीक्षा केंद्र आवंटन की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी और ठेके पर नकल का धंधा बंद नहीं होगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। इसके लिए निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:

  1. परीक्षा केंद्रों का डिजिटल आवंटन: परीक्षा केंद्रों का चयन डिजिटल और स्वचालित प्रणाली के माध्यम से किया जाए ताकि भ्रष्टाचार पर रोक लग सके।
  2. सख्त निगरानी: परीक्षा केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और लाइव स्ट्रीमिंग की जाए।
  3. शिक्षकों की सुरक्षा: नकल रोकने वाले शिक्षकों को सुरक्षा दी जाए और उन्हें अनुचित दंड से बचाया जाए।
  4. जनता की भागीदारी: परीक्षा में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए समाज के जागरूक नागरिकों को निगरानी में शामिल किया जाए।
  5. शिक्षा माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई: शिक्षा माफियाओं और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ निष्पक्ष जांच और कड़ी सजा सुनिश्चित की जाए।

यूपी बोर्ड परीक्षा का उद्देश्य छात्रों का मूल्यांकन करना है, न कि नकल माफियाओं को समृद्ध बनाना। यदि सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर इस समस्या को समाप्त करने के लिए ईमानदारी से कार्य करें, तो परीक्षा प्रणाली में सुधार संभव है और शिक्षा की गरिमा बचाई जा सकती है।

dr devi singh narwar
संबोधित करते डॉ. देवी सिंह नरवार।

डॉ. देवी सिंह नरवार

वरिष्ठ उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश

संपर्क 9410251242

 

Dr. Bhanu Pratap Singh