हरियाणा में ट्रांसफर का खेल: सुधांशु गौतम की विशेष कहानी, अघोषित वरदहस्त या योग्यता का सम्मान?

REGIONAL

हरियाणा में अफसरों के ट्रांसफर का खेल अक्सर सुर्खियों में रहता है, लेकिन एक नाम जो सालों से इस खेल से अछूता है, वह हैं सुधांशु गौतम, HCS, OSDCM (मुख्यमंत्री के विशेष कार्य अधिकारी)। सवाल यह है कि जब हर दूसरे अफसर की ट्रांसफर होती रहती है, तो आखिर गौतम को क्या विशेषाधिकार प्राप्त है कि वे इतने वर्षों से उसी पद पर बने हुए हैं? क्या यह परफॉर्मेंस का कमाल है या सत्ता का कोई अघोषित वरदहस्त?

मंत्री भी कर चुके हैं ऐतराज

इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि खुद कई मंत्री भी समय-समय पर इस बात पर ऐतराज जता चुके हैं कि OSDCM जैसे महत्वपूर्ण पद पर इतनी लंबी तैनाती कैसे संभव है। यह सवाल उठता है कि क्या इनकी तैनाती किसी विशेष राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है या फिर यह उस अदृश्य तंत्र का हिस्सा है, जो सत्ता की आड़ में प्रशासनिक ढांचे को अपने हिसाब से चलाता है।

सुधांशु गौतम की जिम्मेदारियाँ:

वर्तमान में सुधांशु गौतम को मुख्यमंत्री के OSD के रूप में कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिनमें शामिल हैं:

सरकारी मकानों का आवंटन (Type V, पंचकूला को छोड़कर)

मुख्यमंत्री घोषणाएँ (CM Announcements)

मुख्यमंत्री राहत कोष (CM Relief Fund)

हरियाणा ग्रामीण विकास कोष (HRDF) और अन्य मंजूरी

#HRMS और ऑनलाइन ट्रांसफर नीति

वक्फ बोर्ड

पैसों का खेल या पारदर्शिता?

हरियाणा की राजनीति और प्रशासनिक तंत्र में ट्रांसफर और पोस्टिंग का खेल कोई नई बात नहीं है। इसे लेकर अक्सर पैसे और पावर के गठजोड़ की खबरें आती रहती हैं। क्या सुधांशु गौतम का मामला भी इसी चक्रव्यूह का हिस्सा है? क्या यह पारदर्शिता की कमी का नतीजा है या फिर एक चुनिंदा लोगों के लिए बने सिस्टम का प्रतिबिंब?

सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहटें

मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) में OSDCM का पद अपने आप में बेहद प्रभावशाली है। नीतियों से लेकर राजनीतिक फैसलों तक, इस पद का दायरा बहुत बड़ा है। ऐसे में एक व्यक्ति का इतने लंबे समय तक इस पद पर बने रहना निश्चित रूप से कई सवाल खड़े करता है। सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहटें हैं कि क्या यह एक तरह का ‘भाई-भतीजावाद’ है या फिर कोई बड़ा ‘डील’ जो इसे संभव बनाता है?

नेताओं का दवाब या वफादारी का इनाम?

कई बार अधिकारियों को उनकी वफादारी और राजनीतिक जुड़ाव के आधार पर महत्वपूर्ण पदों पर बनाए रखा जाता है। यह वफादारी का इनाम हो सकता है या फिर उन नेताओं का दवाब जो अपने करीबियों को सत्ता के केंद्र में रखना चाहते हैं। क्या सुधांशु गौतम का मामला भी ऐसा ही है?

जनता के हक की अनदेखी

आखिरकार, इस तरह के फैसले जनता के हक की अनदेखी करते हैं। जब हर छोटे से छोटे सरकारी कर्मचारी से लेकर बड़े अफसर तक की ट्रांसफर होती है, तो एक विशेष अधिकारी को सालों तक एक ही पद पर क्यों रखा जाता है? यह सवाल जनता के अधिकारों और पारदर्शिता के सिद्धांत पर गंभीर चोट करता है।

क्या यह मुद्दा उठेगा?

मीडिया और जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है कि वे इस तरह के मुद्दों को उठाएं और पारदर्शिता की मांग करें। आखिरकार, लोकतंत्र में सत्ता की जवाबदेही आवश्यक है। अगर एक OSDCM वर्षों तक बिना ट्रांसफर के अपने पद पर बने रह सकता है, तो यह हमारे प्रशासनिक ढांचे में गंभीर खामियों का संकेत है।

इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि यह स्पष्ट हो सके कि क्या यह वाकई योग्यता का सम्मान है या फिर पैसे और पावर के खेल का एक और अध्याय। जनता के सामने सच्चाई आनी चाहिए, क्योंकि यही एकमात्र तरीका है कि हम एक मजबूत और पारदर्शी प्रशासनिक तंत्र बना सकें।

-विशेष रिपोर्ट- ऋषि प्रकाश कौशिक, सम्पादक भारत सारथी, गुरुग्राम 8700656050

Dr. Bhanu Pratap Singh