कानों में इश्क घोल देने वाले हस्‍तीमल हस्‍ती का जन्‍मदिन आज

कानों में इश्क घोल देने वाले हस्‍तीमल हस्‍ती का जन्‍मदिन आज

साहित्य


जिनकी गजल ‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है’ को जगजीत सिंह जैसे दिग्‍गज गायक ने अपनी आवाज दी, उन हस्तीमल ‘हस्ती’ का जन्‍म 11 मार्च 1946 को हुआ था।
हस्तीमल ‘हस्ती’ प्रेम गीतों के वो उम्दा गीतकार हैं, जिनकी गजलें धीरे से कानों में इश्क को इस कदर घोल देती हैं कि उनका असर लंबे समय तक रहता है।
हस्तीमल ‘हस्ती’ की कुछ अन्‍य चुनिंदा गजलें हैं-

ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोई हुई चीज़ें

क़रीने से सजा कर रखा ज़रा बिखरी हुई चीज़ें

कभी यूँ भी हुआ है हँसते हँसते तोड़ दी हमने

हमें मालूम था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें

ज़माने के लिए जो हैं बड़ी नायाब और महँगी

हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी हुई चीज़ें

दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिल अक्सर

उठानी पड़ती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़ें

किसी महफ़िल में जब इंसानियत का नाम आया है

हमें याद आ गई बाज़ार में बिकती हुई चीज़ें

बैठते जब हैं खिलौने वो बनाने के लिए

उनसे बन जाते हैं हथियार ये क़िस्सा क्या है

वो जो क़िस्से में था शामिल वही कहता है मुझे

मुझको मालूम नहीं यार ये क़िस्सा क्या है

तेरी बीनाई किसी दिन छीन लेगा देखना

देर तक रहना तिरा ये आइनों के दरमियाँ

शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता

इन पत्थरों की आँख में जल क्यूँ नहीं होता

क़ुदरत के उसूलों में बदल क्यूँ नहीं होता

जो आज हुआ है वही कल क्यूँ नहीं होता

हर झील में पानी है हर इक झील में लहरें

फिर सब के मुक़द्दर में कँवल क्यूँ नहीं होता

जब उस ने ही दुनिया का ये दीवान रचा है

हर आदमी प्यारी सी ग़ज़ल क्यूँ नहीं होता

हर बार न मिलने की क़सम खा के मिले हम

अपने ही इरादों पे अमल क्यूँ नहीं होता

हर गाँव में मुम्ताज़ जनम क्यूँ नहीं लेती

हर मोड़ पे इक ताज-महल क्यूँ नहीं होता
-Legend News

Dr. Bhanu Pratap Singh