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उत्तराखंड में है स्वर्ग जाने का रास्ता, नाम है स्वर्ग-रोहिणी

लेख

ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि जीवित इंसान भी अपने पूरे शरीर के साथ आसमान से होते हुए सीधे स्वर्ग जा सकता है। उत्तराखंड में स्वर्ग जाने वाले उस स्थान का नाम है स्वर्ग-रोहिणी, जहाँ पहुँचने पर पहाड़ों के ऊपर से आसमान पर बनी तीन सीढ़ी दूर से दिखाई देती हैं।

 

 स्वर्ग-रोहिणी की यात्रा उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ धाम से की जाती है, स्वर्ग-रोहिणी जाने के लिए बर्फीले और पहाड़ी रास्ते से होकर जाया जाता है, यह स्वर्ग जाने की वही सीढ़ी है जहाँ से पांचों पांडव और पांचाली स्वर्ग जाने के लिए गए थे, लेकिन रास्ते में ही एक-एक करके चारों पांडव और पांचाली की मौत हो गई थी, और अंत में एक मात्र युधिष्ठिर एक श्वान अर्थात कुत्ते के साथ आसमान के उसी रास्ते से जीवित शरीर के साथ स्वर्ग गए थे।

स्वर्ग का रास्ता आज भी उत्तराखंड में मौजूद है, और उस रास्ते में कोई मिले न मिले, कोई साथ दे ना दे लेकिन श्वान इंसानों का साथ देने आ ही जाते हैं, कहा जाता है कि ये श्वान कहाँ से आते हैं किसी को नहीं पता, लेकिन युधिष्ठिर के साथ जो श्वान स्वर्ग गए वो स्वयं यमराज थे जो धर्मराज युधिष्ठिर की परीक्षा लेने आये थे और युधिष्ठिर ने बिना श्वान के स्वर्ग जाने से, इंद्र से मना कर दिया था क्योंकि उस यात्रा में एक-एक करके सबने युधिष्ठिर का साथ छोड़ दिया था, लेकिन उस श्वान ने युधिष्ठिर का साथ स्वर्ग की यात्रा में आखिरी तक दिया था, इसलिए युधिष्ठिर बिना श्वान के स्वर्ग नहीं गये। बाद में युधिष्ठिर को पता चला कि स्वयं यमराज श्वान बनकर उनकी परीक्षा लेने के लिए आये थे। इस वास्तविक तथ्य को जानकर सशरीर युधिष्ठिर स्वर्ग की सीढ़ियों पर पहुंचकर इंद्र के रथ पर बैठकर स्वर्ग पहुंचे थे, कुल मिलाकर आज भी जीवन यात्रा के अंतिम समय में श्वान इंसानों का साथ देने आ पहुँचते हैं।

स्वर्ग-रोहिणी-जाने के लिए उत्तराखंड के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम तक आप बस या कार से आसानी से पहुंच सकते हैं, इससे आगे भारत के अंतिम गांव माणा तक जाने के लिए भी आपको कोई न कोई गाड़ी मिल जाती है, लेकिन सतोपंथ और स्वर्ग-रोहिणी जाने के लिए पैदल ही लगभग 28 किमी का दुर्गम रास्ता तय करना होता है। सतोपंथ ताल बहुत पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन इस हरे रंग के पानी वाले त्रिभुजाकार पवित्र ताल में तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्नान करने के लिए आते हैं, कुछ वर्ष पहले तक स्वर्ग-रोहिणी का रास्ता माणा गांव से वसुधारा फॉल होते हुए जाता था, लेकिन आगे अलकनंदा नदी के धानू ग्लेशियर के टूट जाने के कारण अब यह रास्ता वसुधारा फॉल की विपरीत दिशा से होकर जाता है। स्वर्ग-रोहिणी की यात्रा पर जाने वाले यात्री, भगवान बद्रीनाथ का दर्शन करने के बाद अपनी यात्रा शुरू करते हैं, और फिर माणा गांव में व्यास गुफा, गणेश गुफा और भीम पुल जैसे दर्शनीय स्थल भी हैं।

भीम पुल पर से सरस्वती नदी के वेग को देखना मन को अत्यधिक प्रसन्न कर देता है, माणा गांव से लगभग पांच किलोमीटर दूर 150 फीट ऊंचा वसुधारा फॉल है, जो अत्यंत पवित्र जल धारा है, वहां तक आसानी से पैदल जाकर वापस आ सकते हैं। माणा से वसुधारा फॉल तक जाने के लिए सुबह-सुबह निकल जाना बेहतर होता है, क्योंकि वसुधारा फॉल के नीचे तक जाने के लिए वहां एक ग्लेशियर पार करना होता है और जैसे-जैसे धूप चढ़ने लगती है, ग्लेशियर की बर्फ पिघलने से फिसलन होने लगती है।

स्वर्ग-रोहिणी की यात्रा, बद्रीनाथ मंदिर के सामने बने अलकनंदा के पुल को पार करके मंदिर के सामने के रास्ते से अलकनंदा के किनारे-किनारे शुरू होती है। कुछ दूर जाकर नाग देवता का मंदिर आता है जहां यात्री नाग देवता का आशीर्वाद लेकर अपने रास्ते पर आगे बढ़ते जाते हैं, यहां से करीब आधा किलोमीटर दूर माता मूर्ति मंदिर है, जो माणा गांव के विपरीत दिशा में है, यह मंदिर भगवान बद्रीनाथ की माता को समर्पित है। यहां अलकनंदा पर पुल बना है, जिसे पार करके माणा गांव पहुंच सकते हैं, जबकि सामने वाला रास्ता सतोपंथ और स्वर्ग-रोहिणी के लिए चला जाता है, यहाँ की वादियों में एक तरफ ऊंची-ऊंची चोटियां और दूसरी तरफ गहराई में कल-कल बहती अलकनंदा कठिन रास्ते को आसान बनाने का काम करती है।

स्वर्ग-रोहिणी जाने वाले यात्री इन नजारों का लुत्फ उठाते हुए आनंद वन और धानू ग्लेशियर को पार करके चमटोली बुग्याल पहुंचते हैं। चमटोली बुग्याल में आईटीबीपी का स्थाई कैंप है। इस बुग्याल को पार कर शाम होते-होते यात्री लक्ष्मी वन पहुंचते हैं, जहां पांच पांडवों में से एक नकुल ने अपने प्राण त्यागे थे। लक्ष्मी वन इस मामले में विशेष है कि यहां 3500 मीटर की ऊंचाई होते हुए भी भोज पत्र के पेड़ों का एक जंगल जैसा है, शायद इसीलिए इस जगह का नाम लक्ष्मी वन है। अगली सुबह यात्री अपने अगले पड़ाव चक्रतीर्थ की तरफ बढ़ते हैं, लेकिन अब रास्ता पहले से कहीं अधिक कठिन और पत्थरों वाला हो जाता है, इस रास्ते में आपको नीलकंठ के साथ-साथ स्वछंद और बालाकुन पर्वत श्रृंखलाएं अपने पूरे यौवन में दिखाई देने लगती हैं।

लक्ष्मी वन से चक्रतीर्थ के रास्ते में बहुत सारे झरने अपने पूरे वेग से गिरते हुए दिखाई देते हैं, इस जगह को सहस्त्रधारा कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि सहदेव ने यहीं अपने प्राण त्यागे थे, जैसे ही आप सहस्त्रधारा पार कर थोड़ा आगे चलते हैं, आपको एक चौड़ा-सा घास का मैदान दिखने लगता है, यही चक्रतीर्थ है। लोक कथाओं के अनुसार, यहीं अर्जुन का शरीर उसकी अपनी वीरता और शौर्य पर घमंड की वजह से गल गया था। यात्रियों का दूसरे दिन का पड़ाव यहीं होता है, क्योंकि यहां भी लक्ष्मी वन की तरह खाना बनाने के लिए गुफा मौजूद है। तीसरे दिन चक्रतीर्थ से सतोपंथ और स्वर्ग-रोहिणी के लिए निकलते हैं, थोड़ा आगे चलने पर ही सामने की तरफ एक दीवार जैसी खड़ी पहाड़ी दिखने लगती है, जिसे पार करते ही आप एक अलग-सी दुनिया में पहुंच जाते हैं, वह दुनिया, जहां बड़े-बड़े पत्थर हैं और उन पर चलकर ही आपको रास्ता तय करना होता है। इन्हीं पत्थरों के बीच छोटे-छोटे, लेकिन बहुत गहरे क्रेवास मिलते हैं, इनमें अगर इंसान गिर जाए, तो जीवित बच पाना मुश्किल ही है। यहां से सामने की ओर दूर से दिखाई देती लाल झंडी मन में उत्साह पैदा कर देती है और ऐसा लगने लगता है कि बस अब हम सतोपंथ पहुंचने ही वाले हैं। जिस पहाड़ी चोटी पर यह लाल झंडी लगी है, उसके दूसरी तरफ ही सतोपंथ का पवित्र ताल है।

सतोपंथ वह स्थान है, जहां पांडवों में सबसे शक्तिशाली भीम का देहावसान हुआ था, यहां के हरे रंग के पानी के ताल में स्नान कर यात्री स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं, अधिकतर यात्री यहीं से वापस लौट आते हैं, लेकिन कुछ यहां से करीब दो किलोमीटर आगे स्वर्ग-रोहिणी तक भी जाते हैं, हालांकि यह रास्ता बहुत दुर्गम है, इस रास्ते में आप चंद्र कुंड, सूर्य कुंड और विष्णु कुंड के दर्शन करते हुए स्वर्ग-रोहिणी की उन सीढ़ियों तक पहुंचते हैं, जहां से केवल युधिष्ठिर ही सशरीर अपने कुत्ते के साथ स्वर्ग जा सके थे, यहां तीन-चार सीढ़ियां दिखाई देती हैं और ऐसा माना जाता है कि यही सीढ़ियां स्वर्ग की ओर जाती हैं।

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम, वैदिक सूत्रम चेयरमैन

भारत के नास्त्रेदमस के नाम से सम्पूर्ण विश्व में विख्यात

Dr. Bhanu Pratap Singh