हिमालयों की गोद में पैदा होने वाली यारसा गुम्बा जड़ी-बूटी अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके एक किलोग्राम की कीमत 20 लाख रुपए तक है. ये इतना कीमती है कि स्थानीय लोग इसे हिमालयों का सोना भी कहते हैं. हालांकि, क्लाइमेट चेंज की मार से फंगस भी दूर नहीं रहा है. लाखों लोगों की आय पर भी खतरा मंडरा रहा है.
यारसा गुम्बा जड़ी-बूटी चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाली दुनिया की सबसे महंगी नेचुरल दवाई मानी जाती है. यह एक तरह का फंगस (फफूंद) होता है, जो कैटरपिलर पर उगता है. ये इतना कीमती है कि स्थानीय लोग इसे हिमालयों का सोना भी कहते हैं. इसका इस्तेमाल खासतौर पर मर्दाना कमजोरी ठीक करने में भी होता है. इसी वजह से यह ‘हिमालय की वियाग्रा’ नाम से मशहूर है.
यारसा गुम्बा एक तिब्बती भाषा का शब्द है. यारसा मतलब गर्मियों का कीड़ा और गुम्बा यानी गर्मियों का पौधा. यह फफूंद कैटरपिलर पर उगता है, इसलिए इसे कीड़ाजड़ी भी कहा जाता है. यह जड़ी-बूटी किसी घास की तरह दिखती है. यह भारत, नेपाल, चीन और भूटान के हिमशिखरों की तलहटी में पाई जाती है. इसका इस्तेमाल मर्दाना शक्ति को बढ़ाने से लेकर कई तरह की दवाईयां बनाने में होता है.
कीड़ों से कैसे बनता है यारसा गुम्बा फंगस?
यारसा गुम्बा फंगस मौस के लारवा पर हमला करता है, जो जमीन के नीचे होते हैं. फिर यह अपने टारगेट कीड़े के शरीर का इस्तेमाल ठंड से लड़ने के लिए करता है. अगले साल यह गर्मियों में जड़ी-बूटी या घास की तरह बनकर उभरता है. इसी वजह से यारसा गुम्बा को ठंड का कीड़ा या गर्मी की घास कहते हैं. अब तक की रिसर्च में पाया गया है कि फंगस लगभग 57 प्रजातियों के कीड़ों पर हमला कर सकता है. इनमें से कैटरपिलर पर उगने वाले फंगस लाभदायक और मशहूर है.
किन बीमारियों में होता है इसका इस्तेमाल?
कैटरपिलर फंगस दवा का काम करता है. इसे चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाली दुनिया की सबसे महंगी नेचुरल दवाई माना जाता है. WWF और TRAFFIC की रिपोर्ट के मुताबिक, कैटरपिलर फंगस से अस्थमा, कैंसर और लीवर, किडनी और फेफड़े की बीमारियां ठीक की जा सकती है. इसका इस्तेमाल खासतौर पर मर्दाना कमजोरी ठीक करने में भी होता है. इसी वजह से यह ‘हिमालय की वियाग्रा’ नाम से मशहूर है. चीन, अमरीका, ब्रिटेन, जापान, थाईलैंड और मलेशिया के बाजार में फंगस की काफी मांग है.
क्लाइमेट चेंज से क्यों है खतरा?
जलवायु परिवर्तन की वजह से यारसा गुम्बा फंगस की खेती पर बुरा असर हुआ है. कैटरपिलर फंगस ऊंची पहाड़ी पर उगने वाली प्रजाति है. इसे उगने के लिए ठंडे वातावरण की जरूरत होती है. लेकिन क्लाइमेट चेंज के कारण तापमान बढ़ रहा है, जिससे प्रजाति पर खतरा पैदा हुआ है. बीते कुछ सालों में औषधीय गुणों के लिए मशहूर इस जड़ी-बूटी की मांग काफी बढ़ी है. बढ़ती मांग और बढ़ती कीमतों की वजह से कैटरपिलर फंगस का दोहन भी ज्यादा हो रहा है. ऊपर से सड़क और कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स से इसके हैबिटेट को नुकसान हो रहा है.
भारत में कैटरपिलर फंगस की खेती को परमिट, दिशानिर्देशों और नीतियों के जरिए रेगुलेट किया जाता है. सिक्किम और उत्तराखंड में इसकी काफी खेती है. अलग-अलग राज्यों में फंगस के संरक्षण और अवैध व्यापार को रोकने के लिए अलग-अलग नीतियां है. फंगस की गैर-कानूनी खेती करना या बेचना एक दंडनीय अपराध है.
– एजेंसी
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