शिक्षक पाठ्यक्रम पूरा कराने की मशीन बन गया है, डॉ देवी सिंह नरवार ने कहा, गुरु अंधा और शिष्य बहरा

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श्रेष्ठ और शुभ को बचाना ही आज की सबसे बड़ी क्रान्ति

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. श्रेष्ठ और शुभ को बचाना ही आज की सबसे बड़ी क्रान्ति है। क्योंकि शुभ और श्रेष्ठ गुमनाम के अंधेरे में खो गये हैं। आज अज्ञान का बोलबाला है। स्थितियाँ इतनी अधिक विस्फोटक हो गई हैं कि सब तरफ अज्ञानता का घोर अंधेरा छाया हुआ है। हाथ से हाथ नहीं सूझ रहा है। यह स्थितियाँ अध्यापकों के कर्तव्य के प्रति जागरूक न होने के कारण बनी हैं।
उक्त विचार राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उ0प्र0 जनपद आगरा के तत्वावधान में राजा बलवन्त सिंह इण्टर कॉलेज आगरा पर आयोजित ‘‘गुरु वंदन’’ कार्यक्रम के अवसर पर राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रदेश कार्यसमिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. देवी सिंह नरवार ने व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि आज गोस्वामी तुलसीदास की यह चौपाईयां चरतार्थ हो रही है कि- ‘‘गुरु सिख बधिर अंध का लेखा, एक न सुनै एक नहिं देखा।’’ आज गुरू अंधा हो गया है और शिष्य बहरा हो गया है। गुरू के उपदेशों पर शिष्य कतई ध्यान नहीं दे रहा है और गुरू भी अपने शिष्य के प्रति अंधा बना हुआ है। यह स्थिति अत्यन्त शोचनीय है। शिक्षा क्षेत्र में आयी गिरावट के लिए बहुत कुछ शिक्षक उत्तरदायी है।

समझ में उपस्थित शिक्षक और छात्र।

समाज में नैतिक मूल्यों का जबरदस्त पतन हुआ है और जब नैतिक मूल्यों के पतन में शिक्षक बीच में आ जाता है तो अधिक पीड़ा होती है और दर्द की मात्रा बढ़ जाती है। शिक्षक को सावधानीपूर्वक अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन करते हुए भावी पीढ़ी में नैतिक मूल्यों, चारित्रिक विकास और व्यक्तित्व के विकास के लिए कार्य करना होगा। तभी भावी पीढ़ी का सुधार हो सकता है।

डॉ. नरवार ने आज की भयावह स्थिति का दृश्य उपस्थित करते हुए दिनकर की इन पंक्तियांे को पढ़ा- ‘‘बैचेन है हवायें सब ओर बेकली है, कोई नहिं बताता कश्ती किधर चली है। मझँधार है भंवर है या पास है किनारा, यह नाश आ रहा या सौभाग्य का सितारा।।’’ आज यही दृश्य परिदृश्य सभी ओर दिखायी दे रहा हैं। जो कतई भी शुभ का संकेत नहीं है।

मुख्य वक्ता के रूप में आरबीएस कॉलेज हिंदी विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर युवराज सिंह ने कहा, गुरु शिष्य परम्परा सिर्फ़ भारत का गौरवशाली अतीत है। गुरु का स्थान ब्रह्म से भी ऊंचा है क्योंकि ब्रह्म तक गुरु ही पहुंचता है। भक्तिकालीन साहित्य में गुरु ही आधार है। ज्ञान दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। बाकी सब नाशवान है। वेदों की ऋचाएं हृदय में जीवंत हैं। शिष्य का आगे निकलता देख गुरु प्रसन्न होता है।

उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य परम्परा  भारत का गौरवशाली अतीत है गुरु का स्थान ब्रह्म से भी ऊंचा है क्योंकि ब्रह्म तक गुरु ही पहुंचता है। भक्तिकालीन साहित्य में गुरु ही आधार है। ज्ञान दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। बाकी सब नाशवान है। वेदों की ऋचाएं हृदय में जीवंत हैं। शिष्य का आगे निकलता देख गुरु प्रसन्न होता है।

प्रोफेसर युवराज सिंह ने कहा कि शिक्षक पाठ्यक्रम पूरा करने की मशीन बनकर रह गया है।  पहले शिक्षक और विद्यार्थी अनेक कलाओं में पारंगत होता है। नैतिक शिक्षा भी पढ़ाई जाती थी। गुरु शिष्य के संबंध व्यावसायिक हो चुके हैं। हम गुरु नहीं, टीचर हैं। अतीत में कोई व्यावसायिक भाव नहीं था।

उन्होंने कहा कि इंसान बनाना चुनौतीपूर्ण होता है। पाठ्यक्रम पूरा करने से कोई इंसान नहीं बन जाता है। मानव मूल्यों की बात नहीं हो रही है। गुरु वंदन तभी सार्थक जब गुरु के बताये मार्ग पर चलें।

संबोधित करते डॉक्टर भानु प्रताप सिंह

विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रख्यात पत्रकार,लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राचीनकाल में गुरू शिष्य के व्यक्तित्व, चरित्र और उसके आध्यात्मिक रूप का विकास करता था। आज गुरू शिष्य की स्वस्थ परम्परा लुप्त हो गयी है। अब गुरू और शिष्य के सम्बन्ध पहले जैसे नहीं रहे।

समारोह में डॉ. कृष्ण पाल सिंह, डॉ. राघवेन्द्र सिंह, डॉ. अखिलेश प्रताप सिंह, डॉ. दुष्यन्त कुमार सिंह आदि ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज के प्रधानाचार्य मेजर विवेक वीर सिंह ने की। उन्होंने सभी को धन्यवाद भी दिया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित करके तथा मां सरस्वती और कॉलेज के संस्थापक पुरुष राजा बलवंत सिंह जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. अंजुल चौहान ने किया।

डॉ देवी सिंह नरवार का सम्मान करते आरबीएस इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य मेजर विवेक वीर सिंह। साथ में पत्रकार डॉ भानु प्रताप सिंह।

इन शिक्षकों का सम्मान हुआ
नरेंद्र कुमार, नीरज कुमार सागर, अजय कुमार श्रीवास्तव, डॉ मनोज कुमार शर्मा, डॉ अखिलेश प्रताप सिंह, कुमारी आरती, नरसिंह यादव, राम अवध सिंह, डॉ कुंवर पाल सिंह, बालचंद, सरोज कुमार, अजीत प्रताप सिंह, आशीष कुमार यादव, अमित कुमार यादव, प्रवीण कुमार सिंह, अजय कुमार यादव, मानवेंद्र कुमार पांडे, श्रीमती शुभांगी सिंहल, डॉ राजीव शर्मा, डॉ पीकेएस चौहान, केके श्रीवास्तव, आरपीएस चौहान, अशोक अग्रवाल का सम्मान किया गया।

संपादकीय

आज शिक्षा एक चुनौतीपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। शिक्षक का कार्य केवल किताबें पढ़ाना नहीं, बल्कि मनुष्य बनाना है। एक ऐसा मनुष्य जो नैतिक हो, विवेकशील हो और समाज के लिए प्रकाशपुंज बन सके। “गुरु वंदन” जैसे आयोजनों की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब शिक्षक स्वयं को जागरूक, संवेदनशील और चरित्रवान बनाएंगे।
डॉ. देवी सिंह नरवार और प्रो. युवराज सिंह जैसे चिंतक जब इस गिरते माहौल पर सवाल उठाते हैं, तो यह न केवल चेतावनी है, बल्कि शिक्षा के नवोदय की पुकार भी है।
गुरु बनना सरल नहीं – परंतु यदि हम शिक्षक हैं, तो हमें मशीन नहीं, मार्गदर्शक बनना होगा।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh