“डेटा की दलाली और ऋण की रेलमपेल : निजी बैंकों का नया लोकतंत्र”
“नमस्ते महोदय/महोदया, क्या आप व्यक्तिगत ऋण लेना चाहेंगे?” प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार कभी दोपहर की झपकी के बीच, कभी सभा के समय, कभी मंदिर के बाहर, तो कभी वाहन चलाते समय — यह स्वर अब हमारे जीवन की अनिवार्य पृष्ठभूमि बन चुका है।यह मात्र एक स्वर नहीं, बल्कि एक कृत्रिम उत्पीड़न है […]
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