Mathura (Uttar Pradesh, India)। मथुरा। कलकत्ता नगर में महामारी (प्लैग) का प्रकोप 1898 में हुआ था। प्रतिदिन सैंकड़ों लोगों पर उसका आक्रमण होता था। हालात बिगड़ती देखकर सरकार ने स्थिति का नियंत्रण करने के लिए कड़े नियम बनाए। पर जब नगर निवासी अनुशासन की कमी से उनका पालन करने में ढीलढाल करने लगे तो शहर के भीतर और चारों तरफ फौज तैनात कर दी गई। इससे नगरवासियों में बड़ा आतंक फैल गया और उपद्रव हो जाने की आशंका होने लगी।
“हमें खुशी होती है जब आप खुश होते हैं और जब आपको दर्द होता है तो हमें तकलीफ होती है”
कलकत्ता में 200 साल पहले का स्वामी विवेकानंद का प्लेग पर घोषणा पत्र बुलेटिन के माध्यम से प्रकाशित किया गया है। बुलेटिन ने 1898 में स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखा गया प्लेग घोषणा पत्र पुनः प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है, “हमें खुशी होती है जब आप खुश होते हैं और जब आपको दर्द होता है तो हमें तकलीफ होती है। इसलिए, अत्यधिक विपत्ति के इन दिनों में, हम आपके कल्याण के लिए प्रयास कर रहे हैं और लगातार प्रार्थना कर रहे हैं और आपको बीमारी और महामारी के भय से बचाने का एक आसान तरीका है।
“अफवाहों पर ध्यान नहीं दें, ब्रिटिश सरकार किसी को भी जबर्दस्ती टीका नहीं लगाएंगी”
उस समय “स्वामीजी ने एक अन्य घोषणा पत्र में कहा, “ अफवाहों पर ध्यान नहीं दें। ब्रिटिश सरकार किसी को भी जबर्दस्ती टीका नहीं लगाएंगी। जो चाहेंगे सिर्फ उन्हें टीका लगाया जाएगा। “उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी प्रभावित व्यक्ती की मदद करने वाला कोई नहीं है तो उसे बेलुर मठ के श्री भगवान रामकृष्ण के सेवकों को तुरंत सूचना भेजनी चाहिए। शारीरिक रूप से संभव मदद में कोई कमी नहीं होगी।
सब काम छोडकर कर्मक्षेत्र में कूद पड़े और बीमारों की सेवा में कूद पड़े
महामारी (प्लैग) के समय स्वामी विवेकानन्द विदेशों में हिन्दू धर्म की ध्वजा फहराकर और भारतवर्ष का दौरा करके कलकत्ता आए थे। वे अपने देशी-विदेशी सहकारियों के साथ बेलूड़ में रामकृष्ण परमहंस मठ की स्थापना की योजना में संलग्न थे। लोगों पर इस घोर विपत्ति को आया देखकर वे सब काम छोडकर कर्मक्षेत्र में कूद पड़े और बीमारों की चिकित्सा तथा साफ सफाई को एक बड़ी योजना बना डाली।
गुरू-भाई ने पूछा-स्वामी जी ? इतनी बड़ी योजना के लिए ‘‘फंड’’ कहाँ से आयेगा ?
स्वामीजी ने तुरन्त उत्तर दिया- आवश्यकता पड़ेगी तो इस मठ के लिए जो जमीन खरीदी है उसे बेच डालेंगे। सच्चा मठ तो सेवा कार्य ही है। हमें सदैव संन्यासियों के नियमानुसार भिक्षा मांगकर खाने तथा पेड़ के नीचे निवास करने को तैयार रहना चाहिए। सेवा व्रत को इतना उच्च स्थान देने वाले स्वामी विवेकानन्द 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक मध्यम श्रेणी के बंगाली परिवार में उत्पन्न हुए थे। उस समय भारत में तीव्र वेग से अंग्रेजी राज्य और ईसाई संस्कृति का प्रसार हो रहा था।
उन्होंने हिन्दू-धर्म के सच्चे स्वरूप को संसार के सामने रखा और लोगों में विश्वास जगाया
इसके परिणामस्वरूप देश में उच्चवर्ग का विश्वास अपने धर्म और सभ्यता पर से हिल गया था और ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कुछ ही समय में इस देश में ईसाइयत की पताका उड़ने लगेगी। पर उसी समय देश में ऐसे कितने ही महामानवों का आर्विभाव हुआ जिन्होंने इस प्रबल धारा को अपने प्रभावों से दूसरी तरफ मोड़ दिया। उन्होंने हिन्दू-धर्म के सच्चे स्वरूप को संसार के सामने रखा और लोगों को विश्वास दिला दिया कि आत्मोन्नति और कल्याण की दृष्टि से हिन्दू-धर्म से बढ़कर धार्मिक सिद्धान्त संसार में और कहीं नहीं है। इन महामानवों में स्वामी विवेकानन्द का स्थान बहुत उँचा है।
- उत्तराखंड में भारी बारिश, चारधाम यात्रा रोकी गई, यमुनोत्री मार्ग पर बादल फटा, 9 मजदूर लापता - June 29, 2025
- Agra News: भाजपा कार्यकर्ताओं ने महानगर के सभी 1760 बूथों पर सुनी पीएम मोदी के मन की बात, ‘एक पेड़ मां के नाम’ के तहत पौधे भी रोपे - June 29, 2025
- जल की बूंद-बूंद पर संकट: नीतियों के बावजूद क्यों प्यासी है भारत की धरती? - June 29, 2025