‘स्मार्ट’ आगरा की ‘डूबती’ कहानी: मेट्रो बनी मुसीबत, निगम ने झटक दी जिम्मेदारी!

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आगरा। एक बार फिर मानसून दस्तक दे रहा है और आगरा अपने चिर-परिचित अंदाज में डूबने को तैयार है। लेकिन इस बार डूबने की कहानी में एक नया किरदार सामने आया है— उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (UPMRC)। जी हाँ, वही मेट्रो जो शहर को ‘स्मार्ट’ बनाने का दावा कर रही है, वही अब एमजी रोड पर जलभराव की मुख्य वजह बन गई है। और हमारा नगर निगम? वो तो बस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है, जैसे सारा कसूर मेट्रो का ही हो!

मेट्रो का ‘आरसीसी’ कमाल: ड्रेनेज सिस्टम पर चला बुलडोजर?

नगर निगम ने सीधे-सीधे UPMRC पर आरोप लगाया है कि मेट्रो निर्माण के दौरान उन्होंने रोड के किनारे बने ड्रेनेज सिस्टम को आरसीसी (RCC) से ढक दिया है। इसका मतलब समझते हैं? यानी जल निकासी की जो प्राकृतिक या पुरानी व्यवस्था थी, उसे कंक्रीट के जंगल ने निगल लिया। अब थोड़ी सी बारिश होती नहीं कि एमजी रोड तालाब में तब्दील हो जाती है। यह कैसा विकास है, जो सुविधा देने के बजाय मुसीबतें खड़ी कर रहा है? क्या मेट्रो के इंजीनियरों को यह नहीं पता था कि ड्रेनेज सिस्टम का क्या महत्व होता है? या फिर ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने की धुन में वे भूल गए कि लोगों को सूखी सड़कों की भी जरूरत होती है?

तालाब बनी सड़कें दे रहीं दुर्घटनाओं को खुला न्योता

क्षेत्र के दुकानदारों, राहगीरों और स्थानीय नागरिकों की शिकायतें अब सामने आ रही हैं। उनका कहना है कि पानी निकलने का कोई रास्ता न होने के कारण सड़कें तालाब बन जाती हैं। और सबसे खतरनाक बात, इससे दुर्घटना का भी खतरा बना रहता है। सोचिए, एक ‘पर्यटन नगरी’ की मुख्य सड़क पर अगर वाहन पानी में हिचकोले खा रहे हैं, तो क्या छवि बनती होगी? संजय प्लेस, जो शहर का दिल है, वहाँ पीएल पैलेस के सामने की स्थिति तो सबसे खराब बताई जा रही है। क्या यह वही ‘आधुनिक आगरा’ है, जिसका सपना दिखाया गया था?

क्यो अदूरदर्शिता का खामियाजा, जनता को भुगतना है!

नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि केसी ड्रेन (कर्ब और चैनल ड्रेन), जो एमजी रोड और आसपास के इलाकों की जल निकासी की मुख्य व्यवस्था थी, उसे मेट्रो परियोजना के दौरान सड़क चौड़ी करने के उद्देश्य से पूरी तरह से आरसीसी से भर दिया गया। इसके चलते पानी का प्रवाह रुक गया और थोड़ी सी बारिश में ही इलाका पानी-पानी हो जाता है। यह सिर्फ़ ‘निर्माण कार्य’ नहीं, यह अदूरदर्शिता का जीता-जागता उदाहरण है। इसका खामियाजा अब स्थानीय नागरिकों को उठाना पड़ रहा है, जो हर बारिश में अपने घरों और दुकानों के बाहर पानी का सैलाब देखते हैं।

निगम की ‘त्वरित कार्रवाई’ क्या ये सिर्फ़ लीपापोती है?

अब नगर निगम कह रहा है कि उन्होंने जन शिकायतों को गंभीरता से लिया है और ‘त्वरित कार्रवाई’ शुरू कर दी है। निगम की टीम ने आरसीसी को तोड़ने का काम शुरू कर दिया है, ताकि ड्रेन को फिर से सक्रिय किया जा सके। साथ ही सड़क किनारे बनी नालियों की भी विशेष सफाई अभियान चलाया जा रहा है। नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल ने भी मान लिया है कि “मेट्रो परियोजना के अंतर्गत कुछ जगहों पर निर्माण कार्य के दौरान जल निकासी की मूल संरचना को बाधित किया गया है। इस वजह से जलभराव की समस्या उत्पन्न हुई है।”

सवाल यह है कि यह ‘त्वरित कार्रवाई’ इतनी देर से क्यों शुरू हुई? जब मेट्रो का काम चल रहा था, तब नगर निगम कहाँ था? क्या तब उन्हें यह सब नहीं दिख रहा था? या फिर जब जनता परेशान हुई, वीडियो वायरल हुए, तब जाकर हमारी व्यवस्था की नींद खुली? यह सिर्फ़ ‘मरम्मत’ नहीं, यह लापरवाही का प्रमाण है। पहले गलती करो, फिर उसे सुधारने का नाटक करो और अंत में सारा ठीकरा दूसरों पर फोड़ दो। क्या यही है हमारे शहर के ‘स्मार्ट’ होने का मतलब?

इस सब को देखकर तो यही लगता है कि आगरा में विकास के नाम पर सिर्फ़ अंधाधुंध निर्माण हो रहा है, जिसमें दूरदर्शिता और जनता की परेशानियाँ कहीं पीछे छूट गई हैं। क्या हम कभी ऐसे शहरों में रह पाएंगे, जहाँ विकास वाकई लोगों के जीवन को बेहतर बनाए, न कि उन्हें हर बारिश में डुबोता रहे?

-मोहम्मद शाहिद

Dr. Bhanu Pratap Singh