क्रांतिकारियों के परिजनों का सम्मान

RSS के विभाग प्रचारक आनंद जी ने पूछा, अगर बिना खड्ग बिना तलवार के आजादी मिलती तो भगत सिंह फांसी के फंदे पर क्यों झूलते?

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक आनंद जी ने कहा- वैचारिक संघर्ष में छात्रों की अहम भूमिका है

इतिहास संकलन समिति बृज प्रांत ने  क्रांति दिवस पर आयोजित की संगोष्ठी, क्रांतिकारियों के परिजनों का सम्मान

Dr. Bhanu Pratap Singh

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 Agra, Uttar Pradesh, India. इतिहास संकलन समिति बृज प्रांत, आगरा ने 1857 की प्रथम क्रांति के मौके पर 10 मई को संगोष्ठी की। विषय था- आगरा के क्रांति तीर्थ। साथ ही क्रांतिकारियों के परिजनों का सम्मान किया। संगोष्ठी में वक्ताओं ने आगरा में हुई क्रांतिकारी घटनाओं के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। यह कार्यक्रम संत रामकृष्ण कन्या डिग्री कॉलेज, बल्केश्वर आगरा में हुआ। सम्मान के बाद सम्मानितजनों को कुर्सी पर बैठाया गया और अतिथिगण उनके पीछे खड़े हुए।

आनंद जी, विभाग प्रचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक आनंद जी ने कहा- 1857 की क्रांति रोटी-कमल के नाम पर पूरे भारत को जोड़ने का अभियान था। लेकिन इतिहसकारों ने इसे गदर या विद्रोह कहकर बदनाम किया गया। यह क्रांति 10 मई को शुरू हई लेकिन आगरा में एत्मादपुर के गांव चार्ली में 1 मई, 1857 को लक्ष्म्ण सिंह के नेतृत्व में क्रांति की ज्वाला शुरू हो गई थी। अंग्रेजी तोपें कुएं में फेंक दी गई थीं। किरावली, मघटई, दहतोरा, सुचेता में संघर्ष हुई। 1857 की क्रांति में आगरा का विशेष स्थान है।

उन्होंने सवाल किया- अगर अकबर महान था तो महाराणा प्रताप क्या थे? अगर बिना खड्ग बिना तलवार के आजादी मिलती तो 22 वर्ष के भगत सिंह फांसी के फंदे पर क्यों झूलते? इस समच वैचारिक संघर्ष चल रहा है, जिसमें विद्यार्थियों की अहम भूमिका है। अपने गौरवमयी, पराक्रमी इतिहास को देखें और भारत माता को स्वर्ण सिंहासन पर आरूढ़ करें।

प्रोफेसर सुगम आनंद, प्रसिद्ध इतिहाकार

अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध इतिहाकार प्रोफेसर सुगम आनंद ने कहा- जो अपने पुरखों को जानते हैं, उनका भविष्य मंगलमय होता है। आज तो हालत यह है कि हम अपने महत्वपूर्ण स्थलों को जानते ही नहीं हैं। इतिहास लेखन में हुई विकृतियों को सुधारने की जरूरत है। इतिहासकारों ने लिखा है कि आर्य बाहर से आए, जो गलत है। वेदों में बाहर से आने का उल्लेख नहीं है। नायकी देवी ने महमूद गजनवी को मार भगाया था। गढ़वाल की रानी कर्णवती ने मुगल सेना के नाक-कान काट लिए थे। अंबका, रानी चेनम्मा ने भी लोहा लिया। रानी झांसी के बारे में  हम सब जानते हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों में हीन भावना भर दी। सही बात तो यह है कि जब अंग्रेज बर्बर और असभ्य थे, तब हमारे यहां देवता संस्कृति थी। अब गौरव की भावना विकसित करने की जरूरत है।

anand ji
गोष्ठी को संबोधित करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक आनंद जी ।

डॉ. भानु प्रताप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

वरिष्ठ पत्रकार, कई पुस्तकों के लेखक और इतिहास संकलन समिति के संयुक्त मंत्री डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा कि 1857 की लड़ाई में आजादी के दीवानों ने आगरा कॉलेज के पुस्तकालय में आग लगा दी। मोतीकटरा में कुछ अंग्रेज मारे गए। मेव जाति के लोगों ने अकबरी चर्च पर हमला कर दिया। अकबर द्वारा प्रदत्त पीतल के घंटे, सोने की कुछ चीजें लूट लीं। इन चीजों को गुड़ की मंडी में छिपा दिया। जब अंग्रेज अधिकारियों को इसकी जानकारी हुई तो मजिस्ट्रेट फ्रांसिस पुलिस बल लेकर आ गया। दोनों ओर से लड़ाई हुई। अनेक मेव मारे गए। अंग्रेज उनके शव अपने साथ ले गए।

चमरौला क्रांति तीर्थ

डॉ. भानु प्रताप सिंह ने चमरौला की घटना पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि चमरौला की घटना को चमरौला कांड के नाम से जानते हैं। वास्तव में यह क्रांति तीर्थस्थल है, कांड नहीं। यहां कांड तो अंग्रेजों ने किया था। क्रांतिकारी ठाकुर उल्फत सिंह चौहान ने चमरौला रेलवे स्टेशन को फूंकने की योजना बनाई। तारीख तय की 28 अगस्त, 1942। उस दिन रक्षाबंधन भी था। भाइयों ने कलाई पर राखी बंधवाई। बहनों ने तिलक किया। इसे विजय तिलक मानकर करीब 500 युवाओं ने चमरौला स्टेशन पर धावा बोल दिया। अंग्रेज पुलिस को पहले से खबर हो गई थी। सामने पुलिस को देखकर भी आजादी के परवाने रुके नहीं। हाथों में तिरंगा लेकर अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए क्रांतिवीर आगे बढ़ने लगे। यह देख पुलिस ने कोई चेतावनी दिए बिना फायरिंग शुरू कर दी। हमारे वीर जवानों ने सीने पर गोलियां खाईं। महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां की ये पंक्तियां सार्थक हो गईं-

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं,
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।

पुलिस की फायरिंग में साहब सिंह, किताब सिंह, डूंगर सिंह, बाबूराम यादव, राम अमीर, जुगल किशोर, किशनलाल, सीता राम गर्ग, तुलाराम, गजाधर सिंह, किशोर सिंह और बहोरी सिंह  ने मातृभूमि की आजादी के लिए प्राणों की कुर्बानी दे दी। 31 क्रांतिकारी लहूलुहान हो गए। सभी शहीद और घायल 19-20 वर्ष के थे। इस घटना में गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा भी शामिल थे।

पुलिस की फायरिंग में क्रांतिकारी सीताराम गर्ग, किशनलाल, सोहनलाल गुप्ता, प्यारेलाल, डूमर सिंह, बाबूराम घायल हो गए। इन्हें साथियों ने रूपधनू गांव पहुंचाया ताकि पुलिस के हाथ न आएं। फिरोजाबाद से डॉक्टर प्यारेलाल गहलौत वेश बदलकर आते थे। सभी घायलों को बचा लिया।

चमरौला की क्रांति में पुलिस को गोली से घायल हुए ठाकुर उल्फत सिंह चौहान मरणासन्न थे। तीन शहीदों के पार्थिव शरीरों के साथ उन्हें रेल इंजन में रखकर टूंडला ले जाया जा रहा था। रास्ते में उल्फत सिंह को प्यास लगी तो उन्होंने पानी मांगा। जब स्टेशन मास्टर पानी लेकर आया, तब उन्होंने पीने से इनकार कर दिया। बोले, तुम अंग्रेजों के पिट्ठू हो, मैं तुम्हारे हाथ से पानी नहीं पी सकता। भारत मां के लाल ने भारत माता की जय कहते हुए प्राण त्याग दिए।

शहीदों की पत्नियों ने भी अपने सुहाग चिन्ह नहीं उतारे थे, जिससे कोई यह पहचान न ले कि उनके पति ही शहीद हैं। चमरौला क्रांति से अंग्रेज पागल से हो गए। 250 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। 25 हजार रुपये का सामूहिक जुर्माना भी वसूला।

बरहन की घटना

डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा कि इससे पहले 14 अगस्त 1942 को करीब एक  हजार युवा एकत्र होकर बरहन रेलवे स्टेशन पहुंचे। वहां की संचार व्यवस्था भंग की। टेलीफोन के तार काट डाले। रेल की पटरियां उखाड़ने के बाद स्टेशन में आग लगा दी। स्टेशन को फूंकने के बरहन कस्बे में सरकारी बीज गोदाम पर धावा बोल दिया। वहां पर कई मन गल्ला और बीज निकालकर अभाव ग्रस्त लोगों को बांट दिया। डाकघर भी क्षतिग्रस्त कर दिया। अंग्रेस पुलिस ने इन युवाओं पर गोलियां बरसाईं, जिसमें बैनई गांव के केवल सिंह जाटव शहीद हो गए। कई क्रांतिकारी घायल हुए।

क्रांति दिवस
गोष्ठी में उपस्थित क्रांतिकारियों को परिजन और विद्यार्थी।

डॉ. रुचि अग्रवाल, प्रवक्ता, सेंट जॉन्स, कॉलेज

सेंट जॉन्स कॉलेज में इतिहास विभाग की प्रवक्ता डॉ. रुचि अग्रवाल ने पीपीटी के माध्यम से आगरा में हुई प्रमुख क्रांतिकारी घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया। 5 जुलाई, 1857 को शाहगंज के निकट स्थित सुचेत गांव में प्रथम क्रांति हुई। इसमें 41 अंग्रेज सैनिक मारे गए। बाद में 200 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई। छह जुलाई को आगरा पुलिस ने विद्रोह कर दिया। 9 सितम्बर को गवर्नर कॉल्विन आगरा किला में छिप गया। 1928 में नूरी दरवाजा में चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त रहे। यहीं पर वह बम बनाया गया, जो असेंबली में फोड़ा गया था। हींग की मंडी और मोती कटरा में भी क्रांतिकारी किराये पर रहे। 1928-29 में श्रीकृष्णदत्त पालीवाल के नेतृत्व में पालीवाल पार्क में किसान सभाएं होती थीं। इसमें जो जोते सो जमींदर जैसे नारे लगते थे। 1930 में आगरा में भी नमक बनाया गया। 17 जून, 1931 को गढ़ी सहजा (एत्मादपुर) में मवेशी कुर्क किए गए। 27 सितम्बर, 1940 को बरौलिया बिल्डिंग में रोशनलाल गुप्त करुणेश, वासुदेव गुप्त, राम प्रसाद भारतीय ने कलक्टर हार्डी पर बम से हमला किया, जिसमें 32 लोग घायल हुए। 10-8-1942 को पुरानी चुंगी मैदान पर परशुराम शहीद हुआ। इस मैदान पर जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावरकार ने सभाओं को संबोधित किया है। चमरौला कांड में चार लोग शहीद हुए। बरहन स्टेशन को फूंका और दो लोग शहीद हुए। शहीद स्मारक संजय प्लेस में प्रमुख क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं और लाइब्रेरी है। आगरा किला पर तिरंगा जौनई, बटेश्वर, कागारौल, किरावली, जरार कांड भी चर्चित हैं।

आदर्श नंदन गुप्त, गोष्ठी संयोजक

गोष्ठी संयोजक आदर्श नंदन गुप्त ने बताया कि चुंगी मैदान पर हुई सभा की अध्यक्षता बाबूलाल मीतल कर रहे थे। उन्हें बाद में विधायक बनाया गया, लेकिन त्यागपत्र लेकर आचार्य विनोबा भावे के साथ रहे। दुर्गा भाभी के पति भगवती चरण वोहरा के हाथ में बम फट गया था, जिससे उनका शरीर क्षतविक्षत हो गया था।

डॉ. तरुण शर्मा, महामंत्री, इतिहास संकलन समिति बृज प्रांत

इतिहास संकलन समिति बृज प्रांत, आगरा के महामंत्री डॉ. तरुण शर्मा ने समिति की प्रगति से अवगत कराया। समिति के प्रयासों से ही लुप्त हो गई सरस्वती नदी की खोज हुई है। जियोलॉजिकल सर्वे में भी यह बात प्रमाणित हुई है। उन्होंने कहा कि गोकुलपुरा के सोमेश्वर मंदिर में तांत्या टोपे रहे थे। इस कारण गोकुलपुरा की चारदीवार तोप से उड़ा दी गई थी। जगनेर में नमक आंदोलन चला। वहां का थानेदार अत्याचारी थी। एक बार वर सरेंधी गांव में दो सिपाहियों के साथ आया। युवाओं और महिलाओं ने उसकी खूब पिटाई की। इस घटना के बाद लोकगीत बन गया- अब डर काहे कौ भरतार, सरेंधी में पिट गयौ थानेदार। आगरा विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष आवास में आयकर कार्यालय था। इसमें चौथी बार के प्रयास में आग लगा दी गई थी। हरीपर्वत थाने पर दीपावली के दिन बम से हमला किया जाना था, लेकिन बम पहले ही फट गया। महंत उद्धवपुरी के हवाले से कहा कि चुंगी मैदान पर दो लोग शहीद हुए थे।

मनमोहन चावला, अध्यक्ष, संत रामकृष्ण कन्या डिग्री कॉलेज

संत रामकृष्ण कन्या डिग्री कॉलेज के अध्यक्ष मनमोहन चावला ने स्वागत किया। उन्होंने कहा कि देश को आगे बढ़ाने की प्रेरणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लें।

रविकांत चावला, निदेशक, संत रामकृष्ण कन्या डिग्री कॉलेज

संत रामकृष्ण कन्या डिग्री कॉलेज के निदेशक रविकांत चावला ने सभी का आभार प्रकट किया। आगे भी सहयोग क बात कही। मंच पर कॉलेज की प्राचार्य मोहिनी तिवारी मौजूद रहीं। संस्कार भारती के राज बहादुर सिं राज समेत मंचासीन सभी अतिथियों का स्वागत रविकांत चावला, सुनील आदि ने किया। कार्यक्रम का सय 10 बजे घोषित था लेकिन 10.55 बजे पर प्रारंभ हुई।

इनका हुआ सम्मान

स्वतंत्रता सेनानी बाबूलाल मित्तल के पौत्र श्री दिलीप मित्तल

स्वतंत्रता सेनानी वासुदेव गुप्त के पुत्र श्री अशोक गुप्ता

स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी राधा मोहन गोकुल के पौत्र श्री प्रकाशचंद्र अग्रवाल

स्वतंत्रता सेनानी पं. कालीचरण तिवारी के परिवार से श्री संदीप तिवारी

स्वाधीनता सेनानी स्वर्गीय रोशन लाल सुतेल की पुत्री श्रीमती राजेश कुमारी

स्वतंत्रता सेनानी श्रीराम शर्मा व कुमारी कमला शर्मा के परिवार से श्री सुनयन शर्मा

स्वतंत्रता सेनानी श्री रोशन लाल के पुत्र श्री संजय गुप्ता, शरद गुप्त, आदर्श नंदन गुप्त

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Dr. Bhanu Pratap Singh