आज कवि व पत्रकार विष्णु नागर का जन्मदिन है। उनका 14 जून 1950 को हुआ था। विष्णु नागर का बचपन और छात्र जीव शाजापुर, मध्य प्रदेश में बीता। 1971 से दिल्ली में स्वतंत्र पत्रकारिता। नवभारत टाइम्स तथा दैनिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, नई दुनिया, और ‘शुक्रवार’ समाचार साप्ताहिक से जुड़े रहे। इस बीच 1982 से 1984 तक जर्मन रेडियो ‘डोयचे वैले’ की हिंदी सेवा में रहे। भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व सदस्य एवं महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी के पूर्व सदस्य। इस अवसर पर पढ़िए उनकी दो कविताएं।
पानी हूँ इसलिए
मैं पानी हूँ इसलिए मुझ पर आरोप नहीं लगता
कि मैं बर्फ क्यों बन गया
कि मैं भाप क्यों बन गया
या मैं तब ठंडा क्यों था
और अब गर्म क्यों हो गया हूँ
या मैं हर बर्तन के आकार का क्यों हो जाता हूँ।
फिर भी मैं शुक्रगुजार हूँ कि लोग
मेरे बारे में राय बनाने से पहले यह याद रखते हैं
कि मैं पानी हूँ
और यह सलाह नहीं देते
कि मैं कब तक पानी के परंपरागत गुण धर्म निभाता रहूँगा।
……………..
अखिल भारतीय लुटेरा
(1)
दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था
लुटनेवाला चूँकि बाहर से आया था
इसलिए फर्राटेदार हिंदी भी नहीं बोलता था
लुटेरे को निर्दोष साबित होना ही था
लुटनेवाले ने उस दिन ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि
भगवान मेरे बच्चों को इस दिल्ली में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाला जरूर बनाए
और ईश्वर ने उसके बच्चों को तो नहीं
मगर उसके बच्चों के बच्चों को जरूर इस योग्य बना दिया।
(2)
लूट के इतने तरीके हैं
और इतने ईजाद होते जा रहे हैं
कि लुटेरों की कई जातियाँ और संप्रदाय बन गए हैं
लेकिन इनमें इतना सौमनस्य है कि
लुटनेवाला भी चाहने लगता है कि किसी दिन वह भी लुटेरा बन कर दिखाएगा।
(3)
लूट का धंधा इतना संस्थागत हो चुका है
कि लूटनेवाले को शिकायत तभी होती है
जब लुटेरा चाकू तान कर सुनसान रस्ते पर खड़ा हो जाए
वरना वह लुट कर चला आता है
और एक कप चाय लेकर टी.वी. देखते हुए
अपनी थकान उतारता है।
(4)
जरूरी नहीं कि जो लुट रहा हो
वह लुटेरा न हो
हर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि लूट का लाइसेंस सिर्फ उसे नहीं मिला है
सबको अपने-अपने ठीये पर लूटने का हक है
इस स्थिति में लुटनेवाला अपने लुटेरे से सिर्फ यह सीखने की कोशिश करता है कि
क्या इसने लूटने का कोई तरीका ईजाद कर लिया है जिसकी नकल की जा सकती है।
(5)
आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
फलां जगह फलां दिन फलां समय
और लुटेरों को भी लूटने चले आते हैं
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।
(6)
होते-होते एक दिन इतने लुटेरे हो गए कि
फी लुटेरा एक ही लूटनेवाला बचा
और ये लुटनेवाले पहले ही इतने लुट चुके थे कि
खबरें आने लगीं कि लुटेरे आत्महत्या कर रहे हैं
इस पर इतने आँसू बहाए गए कि लुटनेवाले भी रोने लगे
जिससे इतनी गीली हो गई धरती कि हमेशा के लिए दलदली हो गई।
कविता संग्रह– मैं फिर कहता हूँ चिड़िया, तालाब में डूबी छह लड़कियाँ, संसार बदल जाएगा, बच्चे, पिता और माँ, हंसने की तरह रोना, कुछ चीजें कभी खोई नहीं, कवि ने कहा,
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उपन्यास– आदमी स्वर्ग में
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विष्णु नागर का आलोचना संग्रह– कविता के साथ-साथ।
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