Dadaji maharaj agra

पारस लोहे को सोना बना देता है और गुरु….

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 30 मार्च, 2000 को मै, बनवारी लाल एंड संस, जुलानामंडी, जिला जींद (हरियाणा, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- फिर कहता हूं कि हजूर महाराज के चरनों को पकड़िए, लिपटिए तो वह अपनी दया से भवसागर से पार करा देंगे।


स्थाई हर्ष और
मगनता

संतमत की शिक्षा देने के लिए भी अनेक प्रकार के लोग इकट्ठे हो गए हैं और मनगढ़ंत बातें बना कर ग्रंथों के विपरीत बोलते हैं और बहकाते हैं। इसलिए मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि राधास्वामी नाम सच्चा नाम है और कुलमालिक का नाम है। उसकी ध्वनि अंतर के अंतर यानी घट-घट में हो रही है। उसको सुना जा सकता है। अनुभव किया जा सकता है। परखा और निरखा जा सकता है। उससे जो आनंद प्राप्त होता है उसे स्थाई हर्ष और मगनता की हालत आ सकती है।

पारस और गुरु

कहने का मतलब यह है कि अपनी प्रीत और प्रतीत कुल मालिक के चरनों में मजबूत कीजिए। हजूर महाराज तुम्हारे यहां समुद्र को गागर में ले आए हैं। फिर तुम्हें चिंता क्या है। वह गागर तुम्हारी उस बूंद को सागर में मिला सकती है। यही फरमाया है कि बहुत भारी अंतर पारस और गुरु में है। पारस तो लोहे को सोना करता है और गुरु अपने समान कर लेता है।

पारस और सतगुरु में बड़ो अंतरो जान ।

वह लोहा कंचन करे वह कर लें आप समान।।

हजूर महाराज के चरनों को पकड़िए

समानता के सिद्धांत की आजकल बहुत चर्चा करती है जो वास्तविक तौर पर हर प्रकार हर भाव को हटाकर एक समता का अभाव लेकर, एक प्रेम का संदेश लेकर, एक प्यार में जोड़ने के लिए ही जोर देता हूं। फिर कहता हूं कि हजूर महाराज के चरनों को पकड़िए, लिपटिए तो वह अपनी दया से भवसागर से पार करा देंगे। (जुलानामंडी सतसंग पूर्ण)