राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -27: सतसंगी की मृत्यु नहीं होती

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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सतसंगी का चोला छूटता है, उसकी मृत्यु नहीं होती। जो साध और संत हैं वह अपने आप चोला छोड़ते हैं। उनके लिए कहा जाता है चोला छोड़ना और सत्संगी के लिए कहते हैं चोला छूटना। उनके लिए मरने शब्द का इस्तेमाल करना बंद कर दीजिए। कुछ तो फर्क रखिए। वो जन्म-मरन से रहित है। उन्हें एक दिन निजधाम में पहुंचाया जाएगा और ऐसे प्रेमी अभ्यार्थियों का उन लोगों के यहां तो तीन युग में 20 -25 ही हैं और यहां पर राधास्वामी दयाल ने कितने बना दिए हैं और कितनों का काम कर दिया है उसका कोई ठिकाना नहीं है। कितने जीव चरनों में आए, कितने तो पशु पक्षी थे, वह नर बन गए, जो नर थे वह सतसंगी बन गए, जो सत्संगी थे, वह अभ्यासी बन गए, जो अभ्यासी थे वे प्रेमी अभ्यासी बन गए, जो प्रेमी अभ्यासी थे वह साध बन गए, होनहार संत बन गए, मालिक ने उनको अपने धाम में बुला लिया। एकदिन तुम्हारा भी उद्धार होगा लेकिन जरा प्रीत तो करो, प्यार तो करो, थोड़ा सा बड़ा तो मानो, हालांकि उन पर क्या फर्क पड़ता है, फर्क तुम पर पड़ता है। अगर बच्चे बेअदबी से बरताव करते हैं तो बुजुर्गों का कुछ नहीं जाता, उसका खामियाजा, उसका नतीजा उन्हीं को भोगना पड़ता है। इसी तरह से परमार्थ में है, एक परमार्थी की सबसे बड़ी पहचान है कि वह दीनता रखेगा और अपने आप को निहायत छुपाए रखेगा और बहुत साधारण तौर पर दुनिया में बरताव करेगा लेकिन तुम को ऐसी पैनी दृष्टि होनी चाहिए और अगर उस पैनी दृष्टि से जिनको तुम थोड़ा समझ लोगे तो फिर तुम को निहाल कर देंगे। इसलिए चिंतारहित सत्संग किए जाओ। चिंता मत आने दो। यह दुनिया का कारखाना ऐसा ही चलता रहता है लेकिन यह भी कह देना कि चिंता बिल्कुल नहीं होती, यह भी गलत है। कुछ परिस्थितियों में चिंता होती भी है लेकिन फिर हम अगर मालिक का ख्याल करते हैं तो चिंता आपसे आप दूर हो जाती है, क्योंकि करने वाले वह हैं, जैसा करेंगे वह हक में होगा। इसलिए हजूर महाराज राधास्वामी दयाल की चरन सरन की महिमा बहुत से बहुत है। सरन लेने के बाद भी करनी बन सकती है, सरन का दर्जा बहुत ऊंचा है। जो राधास्वामी दयाल की और संत सतगुरु की सरन ग्रहण करेगा, उसका काम तो वह खुद अपने आप बनाएंगे।

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परमार्थ में अनुभव तो जरूरी है और अनुभव आएगा अंतर में शब्द का रस मिलने से। जितना-जितना वह मिलता जाएगा उतना अनुभव (रिएलाइजेशन) मिलेगा और जो अनुभव से भाव पैदा होता है उसका कोई ठिकाना नहीं है। उस अनुभव को अपने आप एक हथियार  के तौर पर रखो क्योंकि जो अनुभवी परमार्थी बात सतगुरु बताते हैं, उस में दम होता है। दुनिया में भी जिन्होंने दुनिया का अनुभव किया होता है वह तुमको सही मार्गदर्शन दे सकते हैं कि किन विषम परिस्थितियों में क्या काम करना चाहिए, तो  परमार्थ  तो बड़ी टेढ़ी खीर है, अपने आप कहां से चलोगे। स्वामी जी महाराज ने फरमाया कि प्राणायाम के द्वारा सिर्फ 20-30 जीव हुए हैं जो कि त्रिकुटी तक पहुंचे हैं तो फिर साधारण जीव और आजकल के कलयुग में जबकि आयु भी कम है और इस कदर उपाधियां लगी हैं, व्याधियां लगी हैं तब फिर कैसे काम चलेगा, इसलिए राधास्वामी दयाल की सच्ची सरन ग्रहण करनी चाहिए और यह भरोसा रखना चाहिए कि वह मौज से हमारी रक्षा और संभाल करेंगे। बहुत से लोग करनी पर जोर देते हैं लेकिन सरन बेहतर है, जैसे एक बालक जो है उसको मां का सहारा होता है, ऐसे ही हमको सत्संग का सहारा है, ऐसे ही हमको सतगुरु का सहारा है, ऐसे ही हमको राधास्वामी दयाल का सहारा है, ऐसे ही हमको राधास्वामी नाम का सहारा है, तो बिना सहारे के तो काम चलता नहीं है और जब प्रीतम प्यारा लगता है तो लोग कितनी ही कोशिश कर ले उस प्यार को हटा नहीं सकते क्योंकि वह तो अंतर्मुखी होगा। जब चाहोगे तब उसका रस और आनंद ले सकोगे लेकिन चाह होनी चाहिए, दर्शन की चाह होनी चाहिए, जीव का कल्याण कराने की, और चाह होनी चाहिए एक दिन निजधाम में पहुँचने की।