पुण्‍यतिथि: युवा पीढ़ी पर अपनी गहरी छाप छोड़ते हैं कवि केदारनाथ सिंह

पुण्‍यतिथि: युवा पीढ़ी पर अपनी गहरी छाप छोड़ते हैं कवि केदारनाथ सिंह

साहित्य


प्रमुख आधुनिक हिंदी कवियों एवं लेखकों में से एक कवि केदारनाथ सिंह की आज पुण्‍यतिथि है। 7 जुलाई 1934 को उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्‍मे केदार नाथ सिंह की मृत्‍यु 19 मार्च 2018 को नई दिल्‍ली में हुई। केदार नाथ सिंह आज की युवा पीढ़ी पर अपनी गहरी छाप छोड़ते हैं। अपनी पूरी रचनात्मकता के साथ एक गहरा प्रतिरोध का स्वर भी उनकी कविता में किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है।

केदारनाथ सिंह, अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन्हें वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। वे यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक थे।

उनकी ‘बाघ’ कविता संग्रह पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय रही है। ‘बाघ’ कविता के हर टुकड़े में बाघ चाहे एक अलग इकाई के रूप में दिखाई पड़ता हो, पर आख़िरकार सारे चित्र एक दीर्घ सामूहिक ध्वनि-रूपक में समाहित हो जाते हैं। कविता इतने बड़े फलक पर आकार लेती है कि उसमें जीवन की चुप्पियाँ और आवाजें साफ-साफ़ सुनाई देंगी।

‘बाघ’ कविता संग्रह के विषय में वे लिखते हैं, ”आज का मनुष्य बाघ की प्रत्यक्ष वास्तविकता से इतनी दूर आ गया है कि जाने-अनजाने बाघ उसके लिए एक मिथकीय सत्ता में बदल गया है। पर इस मिथकीय सत्ता के बाहर बाघ हमारे लिए आज भी हवा-पानी की तरह प्राकृतिक सत्ता है, जिसके होने के साथ हमारे अपने होने का भविष्य जुड़ा हुआ है। इस प्राकृतिक ‘बाघ’ के साथ उसकी सारी दुर्लबता के बावजूद-मनुष्य का एक ज़्यादा गहरा रिश्ता है, जो अपने भौतिक रूप में जितना पुराना है, मिथकीय रूप में उतना ही समकालीन।” उनकी कविताओं में ‘बाघ’ कई रूपों में पाठकों के सामने आता है।

कवि केदारनाथ सिंह ने अपने कविता संग्रह ”आंसू का वज़न” में लिखा है –

नये दिन के साथ
एक पन्ना खुल गया कोरा
हमारे प्यार का!

सुबह,
इस पर कहीं अपना नाम तो लिख दो।
बहुत से मनहूस पन्नों में
इसे भी कहीं रख दूँगा।

और जब-जब
हवा आकर
उड़ा जायेगी अचानक बन्द पन्नों को;
कहीं भीतर
मोरपंखी की तरह रखे हुए उस नाम को
हर बार पढ़ लूँगा।

समकालीन हिंदी कविता के क्षेत्र में केदारनाथ सिंह उन गिने-चुने कवियों में से हैं जिनमें ‘नयी कविता’ उत्कर्ष पर पहुँचती है। गाँव और शहर, लोक और आधुनिकता, चुप्पी और भाषा एवं प्रकृति और स्कृति सभी पर संवाद चलता रहता है।
-एजेंसी

Dr. Bhanu Pratap Singh