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गुरु तेग बहादुर के 400 वें प्रकाश पर्व पर पीएम मोदी ने शीशगंज गुरुद्वारा में मत्था टेका, देखें तस्वीरें

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New Delhi, Capital of India. ‘हिंद की चादर’ कहे जाने वाले और सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर का 400वां प्रकाश पर्व है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चांदनी चौक स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा शीशगंज साहिब में जाकर मत्था टेका और प्रार्थना की। प्रधानमंत्री के लिए रूट नहीं लगाया गया था और न ही गुरुद्वारे में कोई विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।

गौरतलब हो कि शीशगंज गुरुद्वारा का अपना गौरवशाली इतिहास है। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस्लाम नहीं स्वीकार करने पर यहां गला काट कर गुरु तेग बहादुर की हत्या कर दी थी। वह अंतिम समय तक कहते रहे थे कि शीश कटा सकते हैं पर केश नहीं। इसके चलते यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा विश्व भर के लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।

कैसे बने सिख धर्म के नौवें गुरु

गुरु श्री तेग बहादुर का जन्म वैशाख कृष्ण पंचमी को गुरु हरगोबिंद के घर अमृतसर में हुआ था। तेग बहादुर के पिता गुरु हरगोबिंद ने शुरुआत में उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में नहीं चुना था क्योंकि उन्हें लगता था कि उस समय सिखों को एक सांसारिक नेता की जरूरत थी और उनके बेटे तेग बहादुर ने त्याग का रास्ता चुना था। गुरु हरगोबिंद ने अपने पोते गुरु हरराय को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना। लेकिन 31 साल की उम्र में हरराय की मृत्यु के बाद, उनका बेटा हर किशन पांच साल की उम्र में आठवें गुरु बन गए। हालांकि, हर किशन का 1664 में 7 साल की उम्र में एक बीमारी से निधन हो गया। उसके बाद, भ्रम था कि नौवां गुरु कौन बनेगा। अपनी मृत्यु से पहले, गुरु हर किशन ने कहा था कि अगला गुरु बकाला में मिलेगा। इसके बाद बकाला में कई ढोंगियों ने गुरु होने का दावा किया। लेकिन अगस्त 1664 में, गुरु तेग बहादुर को सिखों के नौवें गुरु का अभिषेक किया गया था।

 गुरु तेग बहादुर ने उत्तर भारत और असम और ढाका के कई स्थानों का भ्रमण किया और गुरु नानक शब्द का प्रचार किया। गुरु तेग बहादुर ने कई ग्रंथों की रचना की, जो गुरु ग्रंथ साहिब में जोड़े गए थे। उन्होंने सालोक, 116 शबद और 15 राग लिखे। उन्होंने 1665 में पंजाब के आनंदपुर साहिब शहर की स्थापना की।

क्या कहा मोदी ने

इस अवसर पर पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, मैं श्री गुरु तेग बहादुर को उनके 400 वें प्रकाशोत्सव के विशेष अवसर पर नमन करता हूं। उनके साहस और दलितों की सेवा के उनके प्रयासों के लिए उन्हें विश्व स्तर पर सम्मानित किया जाता है। उन्होंने अत्याचार और अन्याय के सामने झुकने से इनकार कर दिया था। उनका सर्वोच्च बलिदान कई लोगों को शक्ति और प्रेरणा देता है।