कई बार स्किन की समस्याओं के लिए लोग बहुत तरह के नुस्खे आजमा लेते हैं लेकिन फिर भी स्किन में परेशानियां बनी रहती है। स्किन के अलावा बालों में भी डेंड्रफ, स्कैल्प में गंदगी आदि की समस्या भी लम्बे समय तक परेशान करती है। स्किन में पिंपल्स निकल आते हैं और कई तरह के दाग-धब्बे होने लगते हैं। स्किन की ये परेशानियां स्किन की सारी रंगत छीन लेती हैं। स्किन की समस्याओं से निजात पाने के लिए क्रीम और दवाइयों का इस्तेमाल करने से बेहतर है कि आप अपने तकिए के कवर पर ध्यान दें।
जी हां, मशहूर कॉस्मेटोलॉजिस्ट और स्किनकेयर स्पेशलिस्ट डॉ गीतिका मित्तल गुप्ता ने अपने इस्टाग्राम पेज पर बताया है कि स्किन की कई समस्याएं तब और ज्यादा हो जाती हैं, जब आप तकिए के कवर को हर सप्ताह नहीं बदलते हैं। अगर आप तकिए के कवर को हर सप्ताह नहीं बदलेंगे और स्किन प्रोब्लम्स का इलाज कराते रहेंगे तो यह समस्या खत्म नहीं होगी बल्कि दवा का भी कोई असर नहीं होगा।
हर सप्ताह कवर बदलने के है जादुई फायदे
डॉ गीतिका ने बताया कि हर सप्ताह यदि आप तकिए के कवर को बदलते हैं तो यकीन मानिए कि इससे स्किन को कई तरह के फायदे होंगे। अगर आप इस हैक को नहीं समझते हैं तो आप हर दिन अपनी डेड स्किन के साथ सोते हैं और अपने सेल्स में कई तरह के बैक्टीरिया को घुसाते हैं। डॉ गीतिका ने कहा कि इससे स्किन डेड होने लगती है और चेहरे पर दाग-धब्बे दिखने लगते हैं इसलिए हर सप्ताह पिलो कवर या तकिए के कवर को बदलना चाहिए। इतना ही नहीं, पूरे तकिए को छह महीने में एक बार जरूर साफ करना चाहिए या ड्राई क्लीन कराना चाहिए।
डॉ गीतिका ने बताया कि तकिए में हानिकरक धूलकण, पालतू जानवरों के बाल, तेल, डेड स्किन, मलबे और बैक्टीरिया हो सकते हैं। ये सब हमारी स्किन को तोड़ देते हैं। इससे स्किन फट सकती है। बैक्टीरिया की वजह से चेहरे पर पिंपल्स, दाग-धब्बे बन जाते हैं। इस स्थिति में आप चाहे अपनी स्किन का कितना भी ख्याल रखें, यह सही नहीं हो सकती क्योंकि हर रात तकिए के खोल से इसे कई तरह की बीमारियां के स्रोत मिलते हैं।
सिल्क का कवर ज्यादा बेहतर
हेल्थलाइन की एक खबर के मुताबिक एक स्टडी में भी पाया गया था कि तकिए का खोल यदि सिल्क का हो तो इससे बैक्टीरिया लगने के चांसेज कम होते हैं और इससे पिंपल्स भी नहीं होते। स्टडी में पाया गया कि स्किन की हेल्थ के लिए तकिए में कॉटन कवर से अच्छा सिल्क कवर होता है। सिल्क कवर के इस्तेमाल से चेहरे पर पिंपल्स होने का खतरा कम होता है।
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