किसानों की आत्मा का उत्सव: चौधरी चरण सिंह जयंती पर स्मृति, संघर्ष और संकल्प
राष्ट्रीय किसान दिवस का ऐतिहासिक प्रसंग
आज 23 दिसम्बर 2025 को भारत रत्न, किसानों के मसीहा, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का 123वाँ वास्तविक जन्मदिवस है।
यह दिन केवल एक जयंती नहीं, बल्कि उस विचारधारा का उत्सव है जिसने भारत की आत्मा—किसान—को नीति और राजनीति के केंद्र में रखा।
इसी कारण यह दिन राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आगरा से जुड़ा चौधरी चरण सिंह का बौद्धिक रिश्ता
चौधरी चरण सिंह ने आगरा कॉलेज, आगरा से विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
आगरा से उनका यह अकादमिक रिश्ता उन्हें यहाँ की चेतना, संघर्ष और स्वाभिमान से जोड़ता है।
यही कारण है कि आगरा की धरती पर उनकी प्रतिमा की स्थापना केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि विचार की प्रतिष्ठा थी।
दीवानी चौराहा: एक प्रतिमा, अनेक संघर्ष
नगर निगम आगरा में तत्कालीन पार्षद श्री योगेन्द्र उपाध्याय (वर्तमान कैबिनेट मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार)
एवं श्री अंगद धारिया द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव, तत्कालीन नगर आयुक्त श्री ओ.पी.एन. सिंह के सहयोग,
अमर उजाला के तत्कालीन समूह संपादक श्री अशोक अग्रवाल एवं श्री जगत सिंह फौजदार के मार्गदर्शन
तथा कुंवर शैलराज सिंह एडवोकेट के संयोजन से दीवानी चौराहा पर चौधरी साहब की प्रतिमा स्थापित हो सकी।
2002 की ठिठुरन और हौसलों की गर्मी
वर्ष 2002 की कड़कड़ाती ठंड, लगभग शून्य तापमान, खुली मेटाडोर में जयपुर से प्रतिमा लाना—यह केवल यात्रा नहीं थी,
यह आस्था की परीक्षा थी।
कुंवर शैलराज सिंह और श्री ओ.पी. वर्मा जब प्रतिमा लेकर पहुँचे,
तब समाज के कुछ तथाकथित ठेकेदारों ने प्रतिमा को खंडित कराने का प्रयास किया
और स्थापना में भीषण व्यवधान डाला।
संकट की घड़ी में नेतृत्व का संबल
उसी कठिन क्षण में चौधरी अजित सिंह जी के हस्तक्षेप और निर्देश से प्रतिमा खंडित होने से बच सकी।
यह क्षण बताता है कि जब विचार सच्चे हों, तो नेतृत्व ढाल बन जाता है।
2003 का आमरण अनशन: मांगों की मशाल
दिनांक 23-12-2003 से दीवानी चौराहा स्थित प्रतिमा स्थल पर
भारत रत्न सहित 7 मांगों को लेकर 11 दिनों का आमरण अनशन प्रारंभ हुआ।
यह अनशन केवल मांग नहीं, बल्कि इतिहास को न्याय दिलाने का प्रण था।
राजनाथ सिंह का आगमन और छत्री का संकल्प
आमरण अनशन के दौरान तत्कालीन राष्ट्रीय महामंत्री, वर्तमान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह का आगमन हुआ।
उन्होंने सांसद निधि से प्रतिमा स्थल पर छत्री निर्माण की घोषणा की,
जिसके फलस्वरूप आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा छत्री का निर्माण कराया गया।
व्यवधान, अफवाहें और अडिग संकल्प
अनशन के दौरान भी विरोध, अफवाहें और व्यवधान जारी रहे।
फिर भी आस्था डगमगाई नहीं।
ईश्वर और चौधरी साहब से यही प्रार्थना रही कि ऐसे लोगों को सद्बुद्धि मिले
और समाज सच्चाई को पहचाने।
आत्ममंथन से जन्मी अभिव्यक्ति
लगभग 23 वर्षों के अंतराल के बाद यह लेखन उस आत्ममंथन का परिणाम है,
जिसमें प्रतिमा स्थापना और आमरण अनशन के स्मरण ने यह दायित्व सौंपा
कि समाज को सच बताया जाए—ताकि वह मुखौटों के पीछे छिपी सोच को समझ सके।
चौधरी चरण सिंह: जीवन परिचय और प्रमुख कार्य (20 बिंदु)
- जन्म: 23 दिसंबर 1902, नूरपुर (हापुड़ क्षेत्र)।
- शिक्षा: आगरा कॉलेज से विधि स्नातक।
- पेशा: अधिवक्ता, किसान नेता, प्रशासक।
- किसान केंद्रित राजनीति के अग्रदूत।
- जमींदारी उन्मूलन के प्रमुख शिल्पकार।
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (दो बार)।
- भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री।
- ग्रामीण भारत को नीति का केंद्र बनाया।
- भूमि सुधारों के प्रभावी क्रियान्वयनकर्ता।
- सहकारी आंदोलन को बल।
- कृषि मूल्य और किसान आय पर जोर।
- शोषणमुक्त ग्रामीण समाज की अवधारणा।
- साधारण जीवन, कठोर अनुशासन।
- सत्ता से अधिक सिद्धांतों को महत्व।
- अंग्रेजी शासनकाल से सामाजिक संघर्ष।
- किसान संगठनों को वैचारिक दिशा।
- लोकतांत्रिक मूल्यों के सजग प्रहरी।
- केंद्र–राज्य संबंधों में संतुलन।
- भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित।
- राष्ट्रीय किसान दिवस की प्रेरणा।

जाट सरदार हो तो कुँवर शैलराज सिंह एडवोकेट जैसा, जो कभी झुके नहीं और सिद्धांतों पर अड़ जाए
— कुंवर शैलराज सिंह एडवोकेट
संयोजक, चौधरी चरण सिंह प्रतिमा स्थापना समिति, आगरा
दिनांक: 23 दिसम्बर 2025
संपादकीय: संघर्ष का सम्मान, शैलराज सिंह को सलाम
कुंवर शैलराज सिंह एडवोकेट का संघर्ष किसी एक प्रतिमा तक सीमित नहीं—यह किसान स्वाभिमान,
जाट समाज की अस्मिता और चौधरी चरण सिंह के विचारों की प्रतिष्ठा का संघर्ष है।
जाट समाज की शान के रूप में उन्होंने न केवल प्रतिमा स्थापना को अंजाम तक पहुँचाया,
बल्कि उत्तर प्रदेश में जाटों को आरक्षण दिलाने की ऐतिहासिक मांग सबसे पहले उठाई।
यही नहीं, चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की मांग भी सर्वप्रथम उन्होंने ही की—
और अंततः सरकार ने उस मांग को पूरा किया।
यह संघर्ष बताता है कि इतिहास ताली बजाने वालों से नहीं,
ठंड में जागने वालों से बनता है।
कुंवर शैलराज सिंह का साहस, धैर्य और संकल्प आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है।
चौधरी साहब की जयंती पर उन्हें हार्दिक बधाई—क्योंकि विचारों की प्रतिमाएँ
पत्थर से नहीं, संघर्ष से खड़ी होती हैं।
जय चौधरी चरण सिंह!
डॉ भानु प्रताप सिंह संपादक
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