जब ऐसा लगता है कि एक ही शरीर में कई लोग रहते हैं, तब इसे भूत-प्रेत का साया समझ लिया जाता है जबकि यह एक मनोवैज्ञानिक बीमारी डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर है।
मल्टिपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर अर्थात् डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर (DID) एक मानसिक बीमारी है जिसमें एक ही इंसान के अंदर कई लोगों के रहने के बारे में सुना जाता है। अक्सर इसे भूत-प्रेत का वास समझकर तंत्र-मंत्र जैसी विद्याओं के सहारे इसके पीड़ितों का इलाज़ किया जाता है मगर एक मानसिक बीमारी है
DID क्या है और क्यों होता है?
डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिसमें एक इंसान के दो या उससे ज्यादा व्यक्तित्व रहते हैं। इसमें होने वाली परेशानी को डिसोसिएशन कहा जाता है। इसका मतलब है अपनी मानसिक प्रक्रियाएं जैसे सचेत होना, धारणा और याददाश्त से खुद को अलग कर लेना।
DID होने की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण है ट्रॉमा। इसका मतलब किसी भी तरह का शारीरिक या मानसिक शॉक। आमतौर पर यह बचपन में हुए शारीरिक, मानसिक या सेक्शुअल शोषण से आता है।
फिल्मों में इस डिसऑर्डर को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है क्योंकि यह टॉपिक काफी रोचक है। फिल्मों में DID के मरीज की एक पर्सनालिटी अच्छी तो एक राक्षस जैसी होती है। लेकिन असलियत में ऐसा नहीं होता। पर्सनालिटी केवल उस ट्रॉमा को हैंडल करने के लिए विकसित होती है, इसलिए जरूरी नहीं कि वो बुरी हो
इसी तरह यह धारणा भी बनी हुई है कि DID के मरीजों को यह याद नहीं रहता कि उनकी किस पर्सनालिटी ने क्या किया। वास्तव में ऐसा नहीं होता। मरीजों को धुंधली याद से लेकर सब कुछ याद रह सकता है।
भारत में DID के मरीजों की क्या स्थिति है?
हमारे देश में DID के मरीजों को पागल माना जाता है। यहां इस बीमारी के प्रति बिल्कुल जागरूकता नहीं है। इसके अलावा DID के सबसे ज्यादा मरीज ग्रामीण इलाकों में ही होते हैं, क्योंकि वे किसी न किसी तरह का ट्रॉमा झेल रहे होते हैं। अवेयरनेस न होने के कारण ये मरीज कभी सामने नहीं आते। इन तक मेंटल हेल्थ सर्विस की पहुंच भी नहीं होती।
DID का क्या इलाज है?
DID के लिए डीप साइकोथेरेपी की जरूरत पड़ती है। इसमें मानसिक थेरेपी, फैमिली थेरेपी, रिलैक्सेशन टेक्नीक और मेडिटेशन जैसी चीजें शामिल हैं। इसमें दवाओं का प्रयोग भी किया जाता है। मरीज को ट्रॉमा से ट्रिगर न होने की ट्रेनिंग दी जाती है। अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार एक मरीज इलाज से पहले 5 से 12.5 साल DID से जूझता है।
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