एक पंडित जी थे। पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पाँच सौ रुपये रख दिये.. उन्होंने सोचा कि जब बच्ची की शादी होगी, तो पैसा ले लेंगे, थोड़े दिनों के बाद जब बच्ची सयानी हो गयी, तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गये। दुकानदार ने नकार दिया कि आपने कब हमें पैसा दिया था। उसने पंडित जी से कहा कि क्या हमने कुछ लिखकर दिया है ? पंडित जी इस हरकत से परेशान हो गये और चिन्ता में डूब गये।
थोड़े दिन के बाद उन्हें याद आया कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दें ताकि वे कुछ फैसला कर दें एवं मेरा पैसा कन्या के विवाह के लिए मिल जाये। वे राजा के पास पहुँचे तथा अपनी फरियाद सुनाई.. राजा ने कहा.. कल हमारी सवारी निकलेगी तुम उस लालाजी की दुकान के पास खड़े रहना। राजा की सवारी निकली.. सभी लोगों ने फूलमालाएँ पहनायीं, किसी ने आरती उतारी।
पंडित जी लालाजी की दुकान के पास खड़े थे। राजा ने कहा… गुरुजी आप यहाँ कैसे। आप तो हमारे गुरु हैं ? आइये इस बग्घी में बैठ जाइये, लालाजी यह सब देख रहे थे, उन्होंने आरती उतारी, सवारी आगे बढ़ गयी। थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने पंडित जी को उतार दिया और कहा कि पंडित जी हमने आपका काम कर दिया। अब आगे आपका भाग्य।
उधर लालाजी यह सब देखकर हैरान थे कि पंडित जी की तो राजा से अच्छी साँठ-गाँठ है। कहीं वे हमारा कबाड़ा न करा दें। लालाजी ने अपने मुनीम को पंडित जी को ढूँढ़कर लाने को कहा। पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार कर रहे थे, मुनीम जी आदर के साथ उन्हें अपने साथ ले गये।
लालाजी ने प्रणाम किया और बोले- पंडित जी हमने काफी श्रम किया तथा पुराने खाते को देखा तो पाया कि हमारे खाते में आपका पाँच सौ रुपये जमा है। पंडित जी दस साल में ब्याज के बारह हजार रुपये हो गये, पंडित जी आपकी बेटी हमारी बेटी है। अत: एक हजार रुपये आप हमारी तरफ से ले जाइये तथा उसे लड़की की शादी में लगा देना।
इस प्रकार लालाजी ने पंडित जी को तेरह हजार रुपये देकर प्रेम के साथ विदा किया।
सीख
जब मात्र एक राजा के साथ सम्बंध होने भर से विपदा दूर जो जाती है तो हम सब भी अगर इस दुनिया के राजा, दीनदयाल भगवान से अगर अपना सम्बन्ध जोड़ लें तो आपकी कोई समस्या, कठिनाई या फिर आपके साथ अन्याय का कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न हो। (सोशल मीडिया से साभार)
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