IAS-IPS की नियुक्‍तियों को लेकर नया कानून लाने जा रही मोदी सरकार, मनमानी नहीं कर सकेंगी राज्‍य सरकारें

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पिछले साल मोदी सरकार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच एक IAS अफसर की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। मोदी सरकार ने बंगाल के IAS अधिकारी अलपन बंद्योपाध्याय को उनके रिटायरमेंट के आखिरी दिन केंद्र सरकार को रिपोर्ट करने का आदेश दिया था, लेकिन न तो अलपन ने ऐसा किया और न ही ममता ने उन्हें रिलीव ही किया। अलपन ने रिटायरमेंट ले लिया और ममता के मुख्य सलाहकार बन गए।
अब मोदी सरकार IAS-IPS अफसरों की नियुक्ति के नियमों में ऐसा बदलाव करने जा रही है कि बंगाल या कोई भी राज्य सरकार केंद्र के बुलाने पर किसी भी अफसर को भेजने से मना न कर पाए। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने इस प्रस्तावित संशोधन का विरोध किया है।
क्या है IAS की नियुक्ति को लेकर प्रस्तावित संशोधन?
केंद्र में नियुक्ति के लिए IAS की पर्याप्त संख्या में उपलब्धता का हवाला देते हुए मोदी सरकार ने IAS की नियुक्ति के नियम में संशोधन का प्रस्ताव दिया है। केंद्र ने राज्यों से 25 जनवरी तक इस पर प्रतिक्रिया मांगी है।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने केंद्र में IAS अधिकारियों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए IAS अधिकारियों की नियुक्ति के मौजूदा नियम में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। DoPT ने 12 जनवरी को राज्यों को लिखे खत में कहा है कि केंद्र सरकार VS इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (IAS) (कैडर) रूल्स 1954 के रूल 6 में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा गया है।
माना जा रहा है कि केंद्र सरकार 31 जनवरी से शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र में इस संशोधन को पेश कर सकती है। पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी ने इस प्रस्तावित संशोधन पर नाराजगी जताई है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु भी इसका विरोध कर रहे हैं।
1 जनवरी 2021 तक देश में कुल 5200 IAS अफसर थे, जिनमें से 458 केंद्र में नियुक्त थे।
नए संशोधन से IAS-IPS की नियुक्ति में बढ़ेगा केंद्र का दबदबा
माना जा रहा है कि अगर ये संशोधन पास हुआ तो IAS और IPS अधिकारियों की केंद्र में नियुक्ति के मामले में पूरी ताकत केंद्र सरकार के हाथ में चली जाएगी और ऐसा करने के लिए उसे राज्य सरकार की सहमति लेने की जरूरत नहीं रह जाएगी।
यही वजह है कि बंगाल, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
केंद्र सरकार द्वारा IAS कैडर रूल 1954 के नियम 6 में चार संशोधन प्रस्तावित हैं।
क्या हैं ये 4 प्रमुख प्रस्ताव
यदि राज्य सरकार IAS अधिकारी को केंद्र में भेजने में देरी करती है और तय समय के भीतर निर्णय को लागू नहीं करती है तो अधिकारी को केंद्र सरकार द्वारा तय तारीख से राज्य कैडर से रिलीव कर दिया जाएगा।। अभी IAS अधिकारियों को केंद्र में नियुक्ति के लिए राज्य सरकार से NOC लेनी होती है।
केंद्र राज्य के परामर्श से केंद्र सरकार में नियुक्त किए जाने वाले IAS अधिकारियों की वास्तविक संख्या तय करेगा और बाद में राज्य ऐसे अधिकारियों के नामों को पात्र बनाएगा।
केंद्र और राज्य के बीच किसी भी असहमति के मामले में निर्णय केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा और राज्य केंद्र के निर्णय को “एक तय समय के भीतर” लागू करेगा।
विशेष स्थिति में जहां केंद्र सरकार को “जनहित” में कैडर अधिकारियों की सेवाओं की जरूरत होती है, राज्य अपने निर्णयों को एक तय समय के भीतर प्रभावी करेगा।
मौजूदा नियमों के अनुसार राज्यों को केंद्र सरकार के कार्यालयों में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारियों सहित अखिल भारतीय सेवा (IAS) अधिकारियों की नियुक्ति करनी होती है और किसी भी समय यह कुल कैडर की संख्या का 40% से अधिक नहीं हो सकता है।
IAS की नियुक्ति को लेकर केंद्र और राज्य के बीच होता रहा है टकराव
IAS की नियुक्ति और ट्रांसफर के नियम में प्रस्तावित संशोधन का बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने जोरदार विरोध किया है। ममता ने इसे संघीय ढांचे पर हमला करार दिया है।
अशोक गहलोत ने कहा है कि इससे राज्य में पोस्टेड आईएएस अफसरों में निर्भीक होकर और निष्ठा के साथ काम करने की भावना में कमी आएगी। वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा है कि IAS अधिकारियों की नियुक्ति के प्रस्तावित संशोधन में राज्यों और संबंधित अधिकारियों की सहमति को शामिल नहीं किए जाने को संविधान में उल्लेखित संघीय भावना के एकदम विपरीत बताया है।
बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
आमतौर पर IAS की नियुक्ति के मामले में राज्यों की ही चलती आई है। इसका ताजा उदाहरण मई 2020 में बंगाल सरकार और मोदी सरकार के बीच IAS अधिकारी अलपन बंद्योपाध्याय को लेकर हुआ विवाद है।
दिसंबर 2020 दिसंबर 2020 में कोलकाता के बाहरी इलाके में जेपी नड्डा के काफिले पर कथित तौर पर तृणमूल कांग्रेस समर्थकों के हमले के बाद उनकी सिक्योरिटी का जिम्मा संभाल रहे तीन IPS ऑफिसर को केंद्र में नियुक्ति का आदेश जारी हुआ था, लेकिन बंगाल की ममता सरकार ने राज्य में IPS अधिकारियों की कमी का हवाला देते हुए तीनों अधिकारियों को भेजने से इनकार कर दिया था।
2001 में भी ऐसा ही मामला सामने आया था। तब जयललिता के तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य की पुलिस की CB-CID ने पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि के घर पर छापा मारते हुए उन्हें उनके सहकर्मियों और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे मुरासोली मारन और टीआर बालू के साथ अरेस्ट कर लिया था।
इसके बाद केंद्र ने राज्य सरकार को तीन IPS अधिकारियों को केंद्र सरकार की नियुक्ति में भेजने को कहा था लेकिन जयललिता ने ऐसा करने से मना कर दिया था।
तमिलनाडु की IPS अफसर अर्चना रामासुंदरम 2014 में CBI में नियुक्त हुई थीं, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें रिलीज करने से मना कर दिया था। जब अर्चना ने राज्य सरकार के आदेश के खिलाफ जाकर CBI जॉइन करने की कोशिश की, तो राज्य सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया था। अब अर्चना लोकपाल की एक सदस्य हैं।

Dr. Bhanu Pratap Singh