मुसलमान और ईसाइयों का बहुसंख्यक वर्ग भारत का मूल निवासी, प्रो. जसीम मोहम्मद ने RSS पर लिखी पुस्तक में किया प्रमाणित

NATIONAL RELIGION/ CULTURE साहित्य

प्रो. जसीम मोहम्मद की पुस्तक आर.एस.एस. के नज़रियात में राष्ट्रीय एकता का सन्देश

Aligarh, Uttar Pradesh, India. प्रोफ़ेसर जसीम मोहम्मद द्वारा उर्दू मे लिखित पुस्तक ‘‘आर॰एस॰एस॰ के नज़रियात’’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाईयों के बीच आपसी विश्वास बढ़ाने तथा दूरियाँ कम करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।

आमतौर पर यह प्रचलित किया जाता है कि आर॰एस॰एस॰ मुसलमानों और ईसाईयों के विरुद्ध है और उनका देश में अस्तित्व बरदाश्त नहीं करती परन्तु डाॅ॰ जसीम मोहम्मद की पुस्तिका आर॰एस॰एस॰ के नज़रियात का आकलन करने पर नए तथ्य सामने आते हैं। प्रोफेसर जसीम मोहम्मद ने पुस्तिक में जाने माने पत्रकार डाॅ॰ सैफुद्दीन जिलानी को 30 जनवरी 1971 मे दिए गए एक साक्षात्कार में आर॰एस॰एस॰ के पूर्व सरसंघचालक श्री गोलवलकर गुरुजी का हवाला दिया है। उनके अनुसार साक्षात्कार में गुरु गोलवलकर जी ने कहा कि ’’मुसलमानों की न्यायोचित माँग पूरी होनी चाहिए। देश के सम्बन्ध में मैं हिन्दू और मुसलमान के सन्दर्भ मे विचार नहीं कर सकता‘‘। अपनी पुस्तिका में प्रोफ़ेसर जसीम मोहम्मद ने मुस्लिम बंधुओं के बारे में संघ के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि संघ को राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि मानने वाले मुसलमानों से किसी प्रकार का विरोध नहीं है। ठीक यही स्थिति ईसाईयों के बारे में भी है।

dr jasim mohammad
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पुस्तक में यह प्रमाणित किया गया है कि मुसलमानों और ईसाईयों का बहुसंख्यक वर्ग भारत के मूल निवासी हैं। अतः संघ का मानना है कि उन्हें भारतीय संस्कृति में न केवल विश्वास करना चाहिए बल्कि गर्व करना चाहिए। पुस्तक मे श्री गोलवालकर के उर्दू और अरबी भाषा पर विचार दर्ज है। गोलवालकर जी कहते हैं कि उन्हें उर्दू, अरबी अथवा किसी भाषा पर एतराज नहीं है। लेकिन जब उर्दू का विषय एक विशेष धार्मिक समूह से राजनीतिक लाभ उठाने और उन्हें संगठित करने के लिए किया जाता है तो सघं को आपत्ति होती है।

अपनी पुस्तिका मे प्रोफेसर जसीम मोहम्मद ने आर॰एस॰एस॰ के गठन और उसकी कार्यप्रणाली पर भी प्रकाश डाला है। आर॰एस॰एस॰ के नज़रियात पुस्तिका प्रो जसीम मोहम्मद के अथक परिश्रम और राष्ट्र के प्रति उनकी समर्पित कटिबद्धता को दर्शाती है।

पुस्तिका के बारे में प्रोफ़ेसर जसीम मोहम्मद ने बताया कि वे केवल देश मे सामाजिक एकता चाहते हैं और इसीलिए उन्होंने पुस्तिका आर॰एस॰एस॰ के नज़रियात लिखी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉक्टर मोहनजी भागवत का ए
ऐतिहासिक ब्यान आया है जिसमें उन्होंने सभी धर्मों के लोगों से आवाहन किया है कि वे एक दूसरे के त्योहारों को मनाया करें। तथ्य यह है कि आर॰एस॰एस॰ के दर्शन को समय समय पर राजनीतिक दलों द्वारा तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है ताकि उनका वर्चस्व कायम रहे। आर॰एस॰एस॰ अपने आरम्भकाल से ही केवल राष्ट्रीयता और राष्ट्रहित मे अपनी नीतियां बनाता रहै है।

Dr. Bhanu Pratap Singh