मां-पिता अपने बच्चों का जिस तरह ध्यान रखते हैं, उसे शब्दों में शायद बयान न किया जा सके। ख़ासतौर पर मांएं अपने बच्चे के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, खानपान या छोटी-बड़ी हर बात का इतना ध्यान रखती हैं कि ख़ुद को भी भूल जाती हैं। बच्चे का हर काम करके देना, और ज़रा-सी तबियत ढीली हुई नहीं कि उसकी देखभाल में अपनी भूख-प्यास तक को भूल जाना। खाना तक अपने हाथ से खिलाना। वहीं पिता भी अपने बच्चों की हर छोटी-बड़ी ज़िद पूरी करते हैं। लेकिन इतना सब देखकर भी अक्सर बच्चे अपने माता-पिता का ख़्याल रखने में और घर में छोटा-मोटा हाथ बंटाने में पीछे रह जाते हैं। वे अपने माता-पिता के प्रति अपनी जवाबदारी समझ नहीं पाते।
इसका कारण काफ़ी हद तक अभिभावक ख़ुद होते हैं। बच्चों को अपने पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर करवाना और हर काम हाथ पर करके देना, अक्सर बच्चों में गै़र-ज़िम्मेदारी का विशेष कारण बन जाता है। बहुत ज़रूरी है कि माता-पिता कुछ अहम क़दम उठाएं जिससे उनकी संतान न सिर्फ़ माता-पिता के लिए संवेदनशील बनेगी, बल्कि छोटे-छोटे कामों के लिए आत्मनिर्भर भी बनेगी। ये ख़ूबियां भविष्य में उन्हें एक ज़िम्मेदार व्यक्ति के रूप में भी गढ़ेंगी।
सब काम हो तो जाते हैं
घर के काम करने में, खाना बनाने, साफ़-सफ़ाई करने में मेहनत लगती है और समय भी। इन कामों में हाथ बंटाना तो दूर, बच्चे मां-पिता को काम करता देखकर, दूसरे कमरे में या बाहर चले जाते हैं।
ग़लती कहां होती है
अमूमन मांएं बच्चों को हर चीज़ हाथ में देती हैं, उनके लिए थाली परोसकर देती हैं, उनके द्वारा घर में बिखेरे खिलौनों या अन्य सामान को समेटती हैं और यहां तक कि उन्हें अपने हाथ से खाना भी खिलाती हैं और थाली भी उठाने नहीं देतीं। ऐसा करके वे ज़रूरत से ज़्यादा अपने बच्चों को ख़ुद पर निर्भर बना लेती हैं।
क्या करना होगा
बच्चों में छोटे-छोटे कामों की आदत डालें। कुछ नियम बनाने होंगे जैसे कि स्कूल से आकर अपने जूते, यूनिफॉर्म, कार्ड, बैग, टिफ़िन, बॉटल, सभी वस्तुएं अपने स्थान पर उन्हें ख़ुद रखनी हैं। कोई मेहमान आए तो पानी लेकर आना है। कोई खाना खा रहा हो तो उसको परोसने में मदद करना है। इसके अलावा छोटे-छोटे काम, जैसे सब्ज़ी-फल काटने, अलमारी जमाने, घर की सफ़ाई या जमावट में मदद करे।
बीमारी का अहसास भी नहीं
कुछ दिनों पहले मेरी दोस्त ने मुझसे एक आंखों देखा मंज़र साझा किया। एक दिन जब वो अपनी सहेली से मिलने गई, तब वह बुख़ार और सिरदर्द से बेहाल थी। वो उसके 10 साल के बेटे को इस उम्मीद से देखती रही कि कुछ और नहीं तो वह अपनी मां को एक गिलास पानी का ही दे दे। पर वह मोबाइल गेम खेलने में व्यस्त रहा।
ग़लती कहां हुई
अभिभावक बच्चे से कह देते हैं कि तुम अपना काम करो, पानी हम ला देते हैं, मेहमान को हम देख लेंगे तुम खेलो या पढ़ाई करो। बच्चे को ‘अपना काम करने की हिदायत’ मिलती है, तो वह काम करने की ज़रूरत भी नहीं समझता।
क्या करना होगा
दवाई लाना, घर में जो बीमार है उसकी फ़िक्र करना, सिर दबाना, बुज़ुर्गों के पैर दबाना या दवाई लगा देने जैसे काम बच्चों से करवाने से उनके मन में करुणा, संवेदनशीलता बढ़ेगी और वे ज़िम्मेदार बनेंगे।
आप हर वक़्त जुटे रहते हैं
माता-पिता को यह समझना ज़रूरी है कि जब तक आप ख़ुद आपके लिए समय निकालना ज़रूरी नहीं समझेंगे, तब तक आपके बच्चे भी इसको आवश्यक नहीं मानेंगे।
ग़लती कहां होती है
आप पूरे समय बच्चे की ज़रूरतों और अपनी घर-दफ़्तर की ज़िम्मेदारियों में जुटे रहकर तनावग्रस्त रहते हैं। शरीर कमज़ोर होता जाता है और बच्चों को यह सब नज़र नहीं आता। अक्सर गृहिणियां रविवार को पति के पीछे पड़ जाती हैं कि एक ही तो दिन मिलता है, तो बाहर चलना ही चाहिए। वे अपने पति की थकान के बारे में नहीं सोचतीं, तो बच्चों से क्या उम्मीद की जा सकती है।
क्या करना होगा
अपने आराम का समय तय कर लें। ख़ासकर माताएं अपने आराम का ध्यान रखें। बच्चों को पता होना चाहिए कि मां-पापा के लिए भी आराम ज़रूरी है। हर रविवार बाहर जाने की बेजा ज़िद को बढ़ावा न दें। कामकाजी अभिभावक दफ़्तर से आकर कुछ समय आराम करें। अगर बच्चों को घुमाने ले जाना हो तो उनसे बात मानने और समय प्रबंधन की अपेक्षाएं स्पष्ट करें।
संवेदनशीलता के और भी ज़रिए हैं
पालतू की देखभाल या बाग़वानी के ज़रिए भी बच्चे संवेदनशील बन सकते हैं। मूक प्राणी का ख़्याल रखते बच्चे अपने आप ही सबकी क़द्र करना सीख जाते हैं। उसी तरह पेड़-पौधों की देखभाल भी बच्चों को कर्त्तव्यनिष्ठ बनाती है।
आत्मनिर्भर होने का महत्व जान जाएंगे
बच्चे जब अपना काम ख़ुद करेंगे, तो उनका ख़ुद पर भरोसा बनेगा, जो उनके लिए भविष्य में लाभदायक सिद्ध होगा। छुटि्टयों में ददिहाल या ननिहाल जाने पर उनकी आत्मनिर्भरता उन्हें शाबाशी दिलाएगी। खरी प्रशंसा आत्मविश्वास को पोषित करती है।
धमकाएं नहीं, बल्कि प्रोत्साहन दें
बच्चे आपकी बातें डर के कारण भी मानते हैं। इससे उनके मन में कभी भी ख़ुद काम करने या मदद करने का भाव नहीं जागेगा। ऐसे में प्रोत्साहन सकारात्मक दवाई की तरह काम करता है। अगर बच्चा अपना काम पूरा करता है, तो उसको शाबाशी दें। कमी न निकालें, पर मार्गदर्शन करें।
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