आगरा मेयर के घर के बगल में ‘नर्क’ का साम्राज्य, और नगरायुक्त के घर के सामने ‘व्यवस्था का नाटक’!

स्थानीय समाचार

यह कोई कहानी नहीं है, यह एक शहर की हकीकत है। आगरा की मेयर हेमलता दिवाकर का घर आवास विकास सेक्टर 16 में है। पॉश इलाका है। सब कुछ चकाचक होना चाहिए। लेकिन उनके घर से महज 200 मीटर दूर, पुष्पांजलि गार्डेनिया अपार्टमेंट के लोग पिछले 15 घंटों से पानी में डूबे हुए हैं। एक दिन बीत गया, लेकिन पानी निकलने का नाम नहीं ले रहा। क्या यही है वह विकास, जिसका वादा किया जाता है? क्या यही है वह ‘स्मार्ट सिटी’ जिसे बनाने का सपना दिखाया जाता है?

मेयर और नगरायुक्त के घर के पास जलभराव: ये कैसा मजाक है?

बुधवार की शाम को बारिश हुई और उसके बाद शहर डूब गया। गुरुवार को भी बारिश हुई और हालात और भी बदतर हो गए। लेकिन इस जलभराव से कौन जूझ रहा है? वो लोग जिनके घर के पास मेयर रहती हैं, जो खुद इस शहर की सबसे बड़ी प्रतिनिधि हैं।

हमारी टीम जब सेक्टर 16 पहुंची, तो नजारा चौंकाने वाला था। मेयर के घर से थोड़ी दूरी पर ही सड़कें और गलियां पानी में डूबी थीं। लोगों की आंखों में गुस्सा था, क्योंकि उनके सामने एक तरफ मेयर का चमचमाता घर है और दूसरी तरफ उनके अपने घर पानी में डूबे हुए हैं। लोग नगर निगम के अधिकारियों का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन कोई नहीं आया। क्या ये ‘पॉश इलाका’ सिर्फ इसलिए पॉश है क्योंकि यहां मेयर रहती हैं, या फिर यह इसलिए पॉश है क्योंकि यहां के लोगों को उनकी किस्मत पर छोड़ दिया गया है?

करंट का डर, गड्ढों का कहर, और मेयर पर ‘आरोप’!

जब टीम पुष्पांजलि गार्डेनिया अपार्टमेंट की ओर बढ़ी, तो हालात और भी खराब मिले। एक गली में तो एक फुट तक पानी भरा हुआ था। और पास ही में टोरेंट पावर का ट्रांसफार्मर रखा हुआ था। अब आप सोचिए, बारिश का पानी और बिजली का ट्रांसफार्मर। क्या ये किसी भयानक हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं? क्या इन अधिकारियों को यह नहीं दिखता? या फिर दिखता है, लेकिन वो इसे अनदेखा करना चाहते हैं?

बंगाली पान-मसाले की दुकान के पास की सड़क तो गड्ढों से भरी हुई थी। बारिश का पानी इन गड्ढों को छिपा देता है, और लोग आए दिन इन गड्ढों में गिरते हैं। वाहन पलटते हैं, हादसे होते हैं। क्या यह ‘हादसों का शहर’ बन गया है?

उन्होंने सिर्फ अपना-अपना देखा’: जनता का गुस्सा!

स्थानीय निवासियों का गुस्सा मेयर के प्रति साफ नजर आ रहा था। उनका कहना है कि शहर में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। उनका आरोप है कि मेयर ने सिर्फ अपना देखा, जनता की परेशानियों को नजरअंदाज किया। क्या यह सच नहीं है? जब मेयर के घर के पास ही यह हाल है, तो शहर के बाकी हिस्सों का क्या हाल होगा? क्या जनता की सेवा करने का मतलब सिर्फ चुनाव जीतना है, या फिर उनकी समस्याओं को दूर करना भी है?

नगरायुक्त का ‘वीआईपी’ ट्रीटमेंट: ये कैसी न्याय-व्यवस्था है?

मेयर के घर से निकलकर हम नगरायुक्त अंकित खंडेलवाल के घर पहुंचे। सिकंदरा स्थित गुरु का ताल के सामने हाईवे पर जलभराव था, और सफाई कर्मचारी वहां व्यवस्था में लगे थे।

हाईवे पर मेट्रो का काम चल रहा है, जिससे गाड़ियों को दिक्कत हो रही है और जाम लग रहा है। बच्चे जान जोखिम में डालकर हाईवे के बीच से गुजर रहे हैं। क्या ये सब नगर निगम को नहीं दिखता?

लेकिन असली कहानी तो नगरायुक्त के घर के सामने है। उनके घर के सामने पानी कैसे भर सकता है? इसके लिए नगर निगम ने पहले से ही इंतजाम कर रखे हैं। हाईवे पर पानी की पंप लगी है, ताकि नगरायुक्त के घर के सामने से जल निकासी हो सके। क्या यह न्याय है? एक तरफ जनता पानी में डूब रही है, और दूसरी तरफ एक अधिकारी के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। क्या यह सिर्फ एक उदाहरण है कि इस देश में ‘वीआईपी’ संस्कृति कितनी गहरी है? क्या यह सिर्फ एक नमूना है कि ‘हम’ और ‘वो’ की दीवार कितनी ऊंची है?

इन सवालों का जवाब किसे देना चाहिए? मेयर को? नगरायुक्त को? या फिर उस व्यवस्था को, जिसने इन दोनों को इतनी शक्ति दी है कि वो जनता के दुख को देखकर भी अनदेखा कर सकें?

-मोहम्मद शाहिद की कलम से

Dr. Bhanu Pratap Singh