बच्चा अगर पढ़ने में कमजोर है तो शंख को उसके गालों से स्पर्श कराओ
मस्तक देवी-देवताओं का लौकिक स्थान, तिलक लगाकर रखें
गृहस्थों के यहां ताका-झांकी करने वाले संतों को श्री जी ने फटकारा
राधा की तरह सुदामा की नाम भी भागवत में नहीं आता है
मौन रहने के फायदे अनेक, गृहस्थ जीवन में कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं
डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. विश्व मंगल परिवार सेवा संस्थान, वृंदावन, मथुरा द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा की अमृत वर्षा पूरे सात दिन हुई। शिव पैलेस, पश्चिमपुरी में व्यासपीठ पर विराजमान अंतरराष्ट्रीय कथाव्यास देवी माहेश्वरी श्रीजी (वृंदावन) जीवन गाड़ी आराम से चलने का उपाय बताया।
उन्होंने कहा- कलयुग में पति पर पत्नी को संदेह होना आम बात है। आपस में विश्वास रहेगा तो जीवन गाड़ी आराम से चलेगी। ज्यादा सफाई देने वाला झूठ बोल जाता है। मौन रहने के फायदे अनेक हैं। गृहस्थ जीवन में कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं। महादेव की तरह विष पीना पड़ता है। यह विष गले से नीचे नहीं जाना चाहिए।

देवी माहेश्वरी ने घोषणा की कि अगर घर में आपकी अवहेलना हो रही है, बच्चों ने मुख मोड़ लिया है तो विश्व मंगल परिवार सेवा संस्थान में आओ। हम परिवार की तरह रखेंगे। अंतिम संस्कार किशोरी जी के चरणों में बैठकर हम करेंगे। उन्होंने कहा कि हम जानती हैं जो बहनें कथा में अधिक आती हैं उन्हें घर में ताने सुनने पड़ते हैं। उनसे व्यंग्यपूर्वक कहा जाता है कि दीदी के साथ रहो। इसिलए चिंता न करो। विश्व मंगल परिवार वृद्धाश्रम को पसंद नहीं करता है। यह घोषणा सुनकर सब हर्षित हो गए।
उन्होंने कहा कि घर में शंखनाद और घंटीनाद अवश्य करें। बच्चा अगर पढ़ने में कमजोर है तो शंख को उसके गालों से स्पर्श कराओ। बच्चों से गौसेवा कराओ। अगर गौशाला नहीं जा सकते हैं तो बच्चों की गुल्लक बनाओ। माह में एक बार गुल्लक गौशाला में जाकर दो, हो गई गौसेवा।

देवी माहेश्वरी ने मस्तक पर तिलक लगाए रहने की सलाह दी। इसका कारण बताया कि मस्तक देवी-देवताओं का लौकिक स्थान है। यह देवताओं की लौकिक उपस्थिति का साइन है। उन्होंने उन संतों को फटकारा जो गृहस्थों के यहां ताका-झांकी करते हैं। यह बात उन्होंने नारद मुनि के द्वारिका पुरी में आगमन पर कृष्ण के परिवार में घुसने पर कही।
कथाव्यास ने सुदामा के बारे में कई नई जानकारियां दीं। सुदामा ने कृष्ण के हिस्से के चने इसलिए खाए थे ताकि उन्हें भृगु ऋषि का शाप न लगे। भृगु ऋषि ने संदीपन आश्रम में भिक्षा मांगी थी। गुरु पत्नी ने कहा था कि आश्रम में आज कुछ भी नहीं है। लौटते में भृगु ऋषि को दो पोटलियों में चने रखे दिखाई दिए। इस पर ऋषि ने शाप दिया था जो ये चने खाएगा, वह श्रीहीन हो जाएगा। ये चने सुदामा और कृष्ण के लिए रखे गए थे क्योंकि उन्हें जंगल में जाकर लकड़ियां लानी थीं। सुदामा ने यह शाप सुना लिया था। कृष्ण को श्रीहीनता से बचाने के लिए सुदामा ने दोनों पोटलियों के चने खा लिए। राधा की तरह सुदामा की नाम भी भागवत में नहीं आता है।

यही सखा भाव है। सखा में कुछ भी लेना नहीं होता है। मित्रता में लेन-देन होता है। तभी तो सुदामा ने द्वारिका में जाकर द्वारपाल से कहा था कि कृष्ण से कहो कि तुम्हारा सखा आया है। इसी कारण कृष्ण भोजन छोड़कर दौड़े चले आए थे। सुदामा को गरीब नहीं थे, वे भक्ति के खजाने से लबालब थे। सुदामा को गरीब कहना अपराध है। यह भी गलत है कि सुदामा को द्वारिका में घुसने से रोक दिया गया था।
जो व्यक्ति विरक्ति इंद्रिय, प्रशांत आत्मा और जितेंद्रि, इन तीन गुणों से युक्त है, वह भगवान का सखा है। मित्र से काम हो सकता है लेकिन सखा में निष्काम भाव होता है। कृष्ण को गुरु बना लो या सखा बना लो। कृष्ण ने अपने पुत्रों को उपदेश दिया था कि रूप, यौवन, संपत्ति पर कभी अहंकार नहीं करना, कभी संतों का अपमान नहीं करना। पुत्रों ने संतों का अपमान किया और यदुवंश का नाश हो गया। कृष्ण सबको अपने साथ सोमनाथ ले गए थे, तब संतों का शाप पूरा हुआ। उन्होंने कहा कि द्वारिका और वृंदावन को कभी शाप नहीं लग सकता क्योंकि ये भगवान की बनाई हुई नगरी हैं।

देवी माहेश्वरी ने बताया कि भृगु ने बहेलिया बनकर बाण चलाया और भगवान के पैर में लगा। भगवान ज्योतिस्वरूप बन गए। बलदाऊ शेषनाग बनकर अपने लोक चले गए। भीलों के माध्यम से भगवान ने अर्जुन के गांडीव का अहंकार नष्ट किया। शुकदेव जी ने राजा परीक्षित के सिर पर हाथ रखा और पूछा कि तुम्हें क्या मृत्यु से डर लग रहा है। परीक्षित ने कहा मैं आत्मस्वरूरप हूँ। मेरा जन्म ही नहीं हुआ तो मृत्यु कैसी। शुकदेव के जाते ही राजा परीक्षित की श्वांस रुक गई। इसके साथ ही भागवत कथा का विश्राम हुआ, समाप्त नहीं।
अंत में देवी माहेश्वरी ने कहा कि भागवत कथा का श्रवण कीट-पतंगे, देवी-देवताओं ने भी सुनी है। सब अपने गुरुदेव की शरणागति करें। (क्रमशः)

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