Mathura (Uttar Pradesh, India)। मथुरा। कान्हा की नगरी में गो समाधि स्थल के लिए विदेशी महिला लम्बी लडाई लड रही हैं। वह अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काट रही हैं। दुनियां में ब्रजवासियों और ब्रज को गोसेवा के लिए जाना जाता है, लेकिन यह लडाई जर्मन महिला को लडनी पड रही है। इससे पहले ब्रज में इस तरह की मांग शायद ही किसी ने की होगी। इसके पीछे की कहानी जानना भी बेहद जरूरी है। इसके लिए उन्हें कानूनी लडाई भी लडनी पड रही है। इसके लिए उनके उपर केस भी किये गये हैं। इनका सामना वह न्यायालय में कर रही हैं। इनका वास्तविक नाम इरीना ब्रूनिंग है, ब्रज में इन्हें सुदेवी दासी के नाम से जाना जाता है।
उनका इलाज कर सकती हैं लेकिन गाय की मौत हो जाये तो समाधि के लिए लोगों से लडना पडता है
गो समाधि स्थल के लिए जगह दिये जाने की मांग को लेकर वह एक बार फिर जिलाधिकारी कार्यालय पर पहुंचीं। जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया और बतायाकि वह यह लडाई क्यों लड रही हैं। सुदेवी दासी ने बताया कि वह गायों को पाल सकती हैं, उनका इलाज कर सकती हैं लेकिन गाय की मौत हो जाये तो समाधि के लिए लोगों से लडना पडता है। लोगों के साथ झगडे हुए हैं। यहां तक कि उन्हें हाईकोर्ट में भी इसके लिए मुकदमे का सामना करना पड रहा है। वह गोवर्धन के राधाकुंड में राधा सुरभि गोशाला ट्रस्ट में गायों के रख रखा और उनके उपचार का काम करती है। राधा सुरभि गोशाला ट्रस्ट की अध्यक्ष सुदेवी दासी यानी फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग का नाम वर्ष 2019 की शुरुआत में एक बार सुर्खियों में तब आया जब भारत सरकार ने इस वर्ष के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में एक पद्म पुरस्कार की लिस्ट में उनका नाम था। गायों के सेवा के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया गया है।
देश के कई हिस्सों को घूमते हुए कृष्ण की धरती मथुरा वृंदावन रम गईं
इरीना बू्रनिंग की कहानी बड़ी दिलचस्प है, साल 1978 में जब जर्मनी की एक युवती भारत घूमने आई थी, उसके पिता भारत में जर्मनी के राजदूत थे। युवती का नाम फ्रेडरिक इरीना बू्रनिंग था जो देश के कई हिस्सों को घूमते हुए कृष्ण की धरती मथुरा वृंदावन रम गईं। उनकी वीजा अवधिक खत्म हो जाने पर भी वह सुर्खियों में आईं थीं। मथुरा से सांसद सिनेस्टार हेमा मालिनी ने तब व्यक्तिगत रूप से उनकी मदद की थी। वह लगभग चालीस साल से राधा कुंड में गोसेवा कर रही हैं। सुरभि गोशाला चलाती हैं और गायों का उपचार भी करती हैं।
उन्हें दूर दराज से फोन आते हैं, वह बीमार और घायल गायों को ले आती हैं
उन्होंने बताया कि उनके द्वारा छह महीन पहले जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया गया था। जिसमें मृत गायों के लिए भूमि आवंटन का प्रस्ताव रखा गया था। इस पर जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया था कि इस पर विचार करेंगे। इस दिशा में अब तक किसी तरह की कोई प्रगति नहीं हुई है। वह बीमार और घायल गायों का उपचार करती हैं और उन्हें अपनी गोशाला में रखती हैं। उन्हें दूर दराज से फोन आते हैं। वह बीमार और घायल गायों को ले आती हैं अगर वह किसी तरह उन्हें बचा नहीं पातीं और गाय मर जाती है तो गाय को समाधि देने का संकट खडा हो जाता है। पास में वन विभाग की जमीन पर वह गायों को समाधि देती थीं। लोग इस पर नाराजगी जताते हैं। उनके झगडे होते हैं, केस हो जाते हैं। वह चाहती है कि गायों की समाधि के लिए स्थान तय किया जाये।
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