डॉ. देवी सिंह नरवार बने हिन्दी साहित्य भारती के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष, झाँसी में हुआ ऐतिहासिक निर्णय

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साहित्य और शिक्षा जगत में एक और सम्मानजनक मील का पत्थर
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आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत। हिन्दी साहित्य भारती (पंजीकृत न्यास) की मुख्य निर्णय समिति की झाँसी में सम्पन्न बैठक में बड़ा निर्णय लिया गया। उत्तर प्रदेश की कार्यसमिति का पुनर्गठन किया गया। इस पुनर्गठन में वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ. देवी सिंह नरवार को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

केन्द्रीय अध्यक्ष ने जारी की सूची
यह सूची हिन्दी साहित्य भारती के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र शुक्ल, जो पूर्व में उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं, के द्वारा जारी की गई। निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।

शिक्षा और समाज सेवा में सक्रिय भूमिका
डॉ. देवी सिंह नरवार एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् हैं। वे राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, उत्तर प्रदेश की प्रदेश कार्यसमिति में वरिष्ठ उपाध्यक्ष के रूप में सक्रिय हैं। इसके साथ ही, वे ‘हिन्दी से न्याय’ अभियान की प्रदेश संचालन समिति के अध्यक्ष भी हैं।

26 वर्षों का निरंतर संघर्ष
डॉ. नरवार विगत 26 वर्षों से आगरा में माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय कार्यालय की स्थापना के लिए संघर्षरत हैं। वे एक दर्जन से अधिक संगठनों में नेतृत्व कर चुके हैं।

सम्मान और सराहना की श्रृंखला
शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए डॉ. नरवार को एक दर्जन से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं। उनकी एक दर्जन से अधिक वार्ताएं आकाशवाणी आगरा से भी प्रसारित हो चुकी हैं।

समाजजनों ने दी शुभकामनाएं
डॉ. नरवार की नियुक्ति पर शिक्षा और साहित्य जगत में हर्ष की लहर है। आर.बी.एस. कॉलेज, आगरा के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. युवराज सिंह, डॉ. योगेन्द्र सिंह, डॉ. के.पी. सिंह, डॉ. रचना शर्मा, श्री गिरीश त्यागी, श्रीमती ब्रजेश चौहान, डॉ. राघवेन्द्र सिंह, डॉ. दुष्यन्त कुमार सिंह, श्री हरीओम अग्रवाल, श्री मनोज कुमार और श्री श्याम सिंह सहित अनेकों विद्वानों ने बधाई दी है।

संपादकीय

हिन्दी साहित्य केवल भाषा नहीं, आत्मा है। डॉ. देवी सिंह नरवार जैसे शिक्षाविद् जब किसी साहित्यिक संस्था की कमान सँभालते हैं, तो यह निश्चय ही हिन्दी के भविष्य के लिए शुभ संकेत है। शिक्षा, समाज सेवा और साहित्य का ऐसा समन्वय, हिन्दी को नई ऊँचाइयों की ओर ले जाएगा। हिन्दी साहित्य भारती के इस निर्णय से साहित्यिक चेतना को नया संबल मिलेगा। यह नियुक्ति केवल सम्मान नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है — मातृभाषा के उत्थान की, उसकी गरिमा को पुनर्स्थापित करने की।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh