pratibha malik

हिन्दी वालों के लिए मद्रास हाईकोर्ट में हिन्दी और तमिल में हुई बहस, 13 वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट ने लगाई निर्णय पर मुहर

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New Delhi, Capital of India.मद्रास हाईकोर्ट में एक इतिहास रचा गया, अदालत में हिन्दीभाषियों के हक की लड़ाई लड़ी जा रही थी, बहस कर रही थीं कभी पूर्व राष्ट्रपति कलाम को हिन्दी सिखाने वाली श्रीमती प्रतिभा मलिक। मद्रास हाईकोर्ट का कक्ष-संख्या-दो एक इतिहास के रचने का चश्मदीद बन गया। जजों ने न सिर्फ हिन्दी में पूरी बहस सुनी बल्कि फैसला भी हिन्दीभाषियों के पक्ष में सुनाया। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम ने भी हिन्दी में सुने गये मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रखा है। मद्रास हाईकोर्ट में राजभाषा विभाग के अधिकारियों के अधिकारों को लेकर पहली बार हिन्दी भाषा में बहस हुई। तमिल में भी बहस की गई। हिन्दी और तमिल में हुई बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर निगाह लगी हुई थी। दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को यथावत रखा है। केन्द्र सरकार की दलील को खारिज कर दिया है।

हिन्दी में बहस करने वाली याची का नाम है  श्रीमती प्रतिभा मलिक। वे केरल की निवासी मलयालम भाषी हैं। तमिल भी अच्छी तरह बोल-समझ लेती हैं। प्रतिभा मलिक ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम को हिन्दी सिखाई थी। श्रीमती प्रतिभा के अदम्य-साहस एवमं धैर्य और तदोपरांत विजय से ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी अभियान के थके कदमों को गतिदान मिला है। हिन्दी से न्याय अभियान के प्रणेता चन्द्रशेखर उपाध्याय ने कहा है कि प्रतिभा मलिक हिन्दी योद्धा हैं। उनके प्रयास से उच्च न्यायालय में हिन्दी का ध्वजा फहरी है।

अब जरा इस मामले को समझते हैं। गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग में केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान और हिन्दी शिक्षण योजना में काम करने वाले हिन्दी प्राध्यापक पूरे देश में हिन्दी न जानने वाले केंद्रीय सरकार के सचिव स्तर के अधिकारियों से लेकर क्लर्क तक के कर्मचारियों को हिन्दी सिखाते हैं। हिन्दी प्राध्यापक जो कोर्स पढ़ाते हैं, उनका स्तर लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में हिन्दी न जानने वाले आई.ए.एस. प्रशिक्षुओं को पढ़ाई जाने वाली हिन्दी के पाठ्यक्रम से उच्च स्तर का है।

हिन्दी प्राध्यापक के पद के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता एम.ए. हिन्दी और बी.एड. है। बी.ए. में अंग्रेजी विषय होना भी अनिवार्य है। जब 2002 में मद्रास कैट में मुकदमा किया गया था तब हिन्दी प्राध्यापकों को 6500-10500 के ग्रेड में रखा गया था।

हिन्दी शिक्षण योजना में ही जो लोग हिन्दी जानने वाले लिपिकों को हिन्दी टंकण और आशुलिपि सिखाते हैं, उनकी शैक्षिक योग्यता हिन्दी टाइपिंग शार्ट हैंड सीखे होने के सर्टिफिकेट के साथ 12वीं पास थी। उन्हें सहायक निदेशक (हिन्दी टाइपिंग शार्ट हैंड) का पदनाम और 7500-12000 के ग्रेड में रखा गया था। हिन्दी प्राध्यापकों की शैक्षिक योग्यता और जिम्मेदारी को देखते हुए 1952 से 1974-75 तक कॉलेज और यूनिवर्सिटी के लेक्चरर से भी ज्यादा वेतन दिया जाता था। हिन्दी प्राध्यापकों की मांग थी कि उन्हें असिस्टेंट डायरेक्टर (हिंदी टाइपिंग शार्ट हैंड) से ज्यादा और कॉलेज लेक्चरर के बराबर वेतन दिया जाना चाहिए।

वर्ष 2002 में कैट के पहले आदेश पर सचिव राजभाषा विभाग ने सुनवाई की और हिन्दी प्राध्यापकों के साथ अन्याय की बात स्वीकार की। छठे वेतन आयोग के समय न्याय दिलाने का आश्वासन दिया। किन्तु कैट ने अपने दूसरे आदेश में छठे वेतन आयोग तक इंतजार करने के आश्वासन को हिन्दी प्राध्यापकों के साथ घोर अन्याय की संज्ञा दी। तीसरी बार सरकार ने कैट में शपथ पत्र के साथ आश्वासन दिया कि छठे वेतन आयोग के समय हिन्दी प्राध्यापकों को पक्का न्याय दिया जाएगा। छठे-सातवें किसी भी वेतन आयोग के सामने सरकार ने अपने आश्वासन को पूरा नहीं किया।

सरकार ने आई आई पी ए, नई दिल्ली की एक रिव्यू कमेटी गठित की, जिसने अपनी रिपोर्ट में हिन्दी प्राध्यापकों को लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर के समान वेतन देने की सिफारिश की, जिसे राजभाषा विभाग के अधिकारियों ने अनदेखा करते हुए दबा दिया।

हिन्दी प्राध्यापक मद्रास हाईकोर्ट गए और श्रीमती प्रतिभा मलिक ने माननीय जस्टिस पी के मिश्रा की पीठ (कोर्ट नंबर-2 ) में स्वयं बहस की। मद्रास हाईकोर्ट के इतिहास में पीठ के आदेश पर पहली बार हिन्दी में बहस हुई। वादी और माननीय पीठ के जज सभी हिन्दीतर भाषी थे। मद्रास हाईकोर्ट ने अपने 09/04/2009 के आदेश में हिन्दी प्राध्यापकों के साथ किए जा रहे अन्याय को न्यायिक विवेक को झकझोर देने वाला बताया तथा हिन्दी प्राध्यापकों को असिस्टेंट डायरेक्टर के समान पदनाम तथा वेतनमान देने का आदेश दिया। उसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने चुनौती दी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश में किसी भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है।

Dr. Bhanu Pratap Singh