1981 में हुए नाथुआपुर कांड की पुनरावृति है कानपुर का बिकरू पुलिस हत्याकांड
डकैत छविराम के साथ 7 अगस्त 1981 में हुई मुठभेड़ में नौ पुलिसकर्मी शहीद हुए थे
Etah (Uttar Pradesh, India)। कानपुर के बिकरू गाँव में विकास दुबे ने नौ पुलिस वालों की हत्या कर दी। हत्याकांड से उत्तर प्रदेश थर्रा गया। ये घटना उत्तर प्रदेश में पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले चार दशक पूर्व ऐसी ही घटना सात अगस्त, 1981 को जनपद एटा के अलीगंज थाना क्षेत्र के नाथुआपुर गांव में घटित हो चुकी है। दस्यु सरगना छविराम की दिनदहाड़े पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई। इसमें नौ पुलिस के जवानों सहित तीन ग्रामीण शहादत को प्राप्त हुए थे। तीन बदमाश भी मारे गए थे। कानपुर के बिकरू गांव में हुई घटना ने नाथुआपुर कांड की याद ताजा कर दी है। हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे द्वारा किये गए जघन्य अपराध नें डकैत छविराम की याद दिला दी। मुठभेड़ में जगदीश मिश्रा का बेटा मारा गया था। हमें प्रत्यक्षदर्शी जगदीश मिश्रा ने आंखों देखा हाल बताया। पढ़िए एटा से नंद कुमार की स्पेशल रिपोर्ट।
7 अगस्त, 1991 की घटना
सात अगस्त सन 1981 को नाथुआपुर गांव में डकैत छविराम के साथ पुलिस हुई मुठभेड़ में नौ पुलिसकर्मियों और तीन ग्रामीणों को शहादत प्राप्त हुई थी। तब प्रदेश में वीपी सिंह की सरकार थी। समूचे प्रदेश में डकैत छविराम आतंक का पर्याय बना हुआ था। जनपद एटा दस्यु छविराम की शरण स्थली मानी जाती थी। छविराम को पकड़ने के लिए अलीगंज इलाके में जगह -जगह पुलिस बल कैम्प किये हुए थे।
दिनदहाड़े हुई थी मुठभेड़
7 अगस्त 1981 का दिन उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए खास है। इस दिन का अलीगंज तत्कालीन थाना इंचार्ज राजपाल सिंह को बेसब्री से इंतजार था। बताया जा रहा है कि दिवंगत शहीद इंस्पेक्टर राजपाल सिंह ने दस्यु सरगना छविराम को मारने की कसम खाते हुए डकैत छविराम के इर्द-गिर्द मुखबिरों का जाल बिछा दिया था। मुखबिर की सूचना पर इंस्पेक्टर राजपाल सिंह अपने साथियों के साथ नाथुआपुर गांव पहुंचे, जहां साठ से सत्तर बदमाशों के गिरोह के साथ भिड़ गए। घंटों चली इस मुठभेड़ में पुलिस के पास गोलियां कम पड़ गई। इसके बाद डकैत छविराम ने चारों तरफ से घेराबंदी कर इंस्पेक्टर राजपाल सिंह सहित नौ पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी। तीन ग्रामीण भी मारे गए थे।
दो साल बाद पुलिस ने मार गिराया था छविराम
तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने 1981 में हुई इस घटना को चुनैती मानते हुए डकैत छविराम के खात्मे की योजना बनाई। दो वर्ष के अंतराल में उत्तर प्रदेश पुलिस ने डकैत छविराम का एनकाउंटर कर प्रदेश को भयमुक्त कराया। विकास दुबे कुछ ही दिन में मारा गया।
पुलिस की भूमिका संदिग्ध
कानपुर में घटित हुई घटना में भी स्थानीय पुलिसकर्मियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई। 1981 में हुई घटना में भी अलीगंज थाना पुलिस के चंद पुलिसकर्मियों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई थी। बताया जा रहा है कि इंस्पेक्टर राजपाल सिंह की टीम के पास जब गोलियां खत्म होने लगीं, तब उन्होंने दो पुलिसकर्मियों को पास के गांव में कैम्प किये हुए पीएसी के जवानों तक सूचना करने को कहा। इन पुलिस कर्मियों ने अपनी कर्तव्य का निर्वहन न करते हुए सूचना पीएसी के जवानों तक नहीं पहुंचाई। इसके चलते डकैत छविराम को पता चल चुका था कि पुलिस के पास गोलियां खत्म हो गई है। उसने चारों तरफ से घेराबंदी करते हुए नौ पुलिसकर्मियों सहित तीन ग्रामीणों की दिनदहाड़े नृशंस हत्या कर दी। तीन तीन बदमाश भी मारे गए। इस घटना की गूंज दिल्ली तक पहुंची।
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