bhanu pratap singh chauhan

वर्ण व्यवस्था को जाति बताकर हिन्दुओं को विभाजित करने का षड्यंत्रः भानु प्रताप सिंह चौहान

लेख

श्री भानु प्रताप सिंह चौहान यूं तो भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं लेकिन वे मौलिक विचारक भी हैं। आगरा में रहते हैं। व्यवसायी होने के साथ-साथ धार्मिक प्रवृत्ति के भी हैं, तमाम लोगों की विद्याध्ययन में मदद करते हैं। उन्होंने भारतीय सेना में भी सेवा  की है। समाज के दरिद्रजनों ही नहीं, सबकी सेवा में अग्रणी रहते हैं। उनका ध्येय वाक्य है- सेवा में सदैव तत्पर। इस तरह उनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी वर्णों के गुण हैं। मैंने वर्ण व्यवस्था को लेकर फेसबुक पर उनकी टिप्पणी देखी तो लगा कि यह समाचार के रूप में भी प्रकाशित होनी चाहिए। उन्होंने गीता के उस श्लोक की सही व्याख्या की है, जिसके आधार पर सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था को लेकर प्रहार किया जाता है। अज्ञानता में अपने लोग ही समस्या खड़ी कर रहे हैं। श्री भानु प्रताप सिंह चौहान के ये विचार सर्वपठनीय हैं। (संपादक)

 

 

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।

तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।

श्रीमद् भगवद्गीता।।

अर्थात मनुष्य में विद्यमान गुणों की प्रधानता के अनुसार उनको वर्णीकृत किया गया है। सतोगुण की प्रधानतयुक्त मनुष्य शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करें (ब्राह्मण) सतोगुण युक्त रजोगुण की प्रधानतायुक्त व्यक्ति समाज रक्षण के क्षेत्र में जाएं (क्षत्रिय) रजोगुण और तमोगुण युक्त परंतु तमोगुण की प्रधानता युक्त व्यक्ति समाज के पालन पोषण हेतु धनोपार्जन की शिक्षा ग्रहण करें अर्थात( वैश्य) और जो केवल तमोगुणी हैं जिन्हें शिक्षा ग्रहण करने में कोई रुचि ही न हो, ऐसे व्यक्ति शूद्र हैं जो केवल समाज की हर प्रकार से सेवा करें। यही मनुस्मृति की सर्वोत्तम व्यवस्था भी है।

जन्म के उपरांत जिस व्यक्ति का द्विजन्म अर्थात जिसने शिक्षा हेतु ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य रूपी डिग्री प्राप्त करने के लिए प्रवेश नहीं लिया है वो सभी शूद्र हैं और जिसने इस शिक्षा को पाकर शिक्षा के अनुरूप आचरण नहीं किया है अर्थात या अशिक्षित की तरह व्यवहार किया तो वो भी शूद्र है या उसने प्राप्त शिक्षा से निम्न आचरण किया तो वो निम्न वर्ण का है। अर्थात कुल मिलाकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये शिक्षा की डिग्रियां हैं न कि जातीय व्यवस्था के अंग। शूद्र वो है जिसने विद्याध्यन का प्रयास या प्रवेश न किया।

जैसे: बैचलर ऑफ एजुकेशन (ब्राह्मण), बैचलर ऑफ मिलिट्री साइंस (क्षत्रिय), बैचलर ऑफ इकोनॉमिक्स (वैश्य), जिन्होंने शिक्षा ग्रहण करने हेतु प्रवेश ही न लिया वो सभी शूद्र (अशिक्षित) हैं।

आजकल के तथाकथित सेकुलर वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था बताकर सनातन हिन्दुओं को विभाजित कर रहे हैं जबकि हमारे यहां जाति व्यवस्था थी ही नहीं।

-भानु प्रताप सिंह चौहान

सिंह ट्रैक्टर्स, भाग्य नगर, सिकंदरा, आगरा

 

 

 

Dr. Bhanu Pratap Singh