प्रकृति की मौन चेतावनी: जहाँ विज्ञान चूक जाता है, वहाँ टिटहरी पहले चेताती है

डॉ सत्यवान सौरभ टिटहरी कोई साधारण पक्षी नहीं, बल्कि प्रकृति का मौन प्रहरी है। किसान उसके अंडों की संख्या, स्थान और समय देखकर बारिश, बाढ़ या अकाल का अनुमान लगाते रहे हैं। विज्ञान भी मानता है कि ऐसे पक्षी “इकोसिस्टम इंडिकेटर” होते हैं, जो पर्यावरणीय बदलावों का पहले से संकेत दे देते हैं। आज शहरीकरण […]

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लोकतंत्र की अदालत में पत्रकारों पर अब रात का फैसला?

क्या आपने कभी सोचा था कि एक रात को आपके घर के दरवाज़े पर कोई दस्तक दे और कहे कि अब से आपके बोलने की आज़ादी नहीं रही? क्या आपने सोचा था कि देश की अदालतें अब रात के अँधेरे में भी फैसला सुना सकती हैं? क्या अदालत में बिना आपके सुने, बिना नोटिस दिए, […]

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गेमिंग और सोशल मीडिया की गिरफ्त में बचपन—कहाँ चूक रहे हैं माता-पिता?

बदलते समय के साथ समाज में लोगों का रहन-सहन भी बदल रहा है। आज लोग बातचीत से लेकर मनोरंजन और अन्य जरूरतों की पूर्ति तक फोन पर ही निर्भर होते जा रहे हैं। लेकिन इसका सबसे गहरा और चिंताजनक असर बच्चों पर पड़ रहा है। बाहरी गतिविधियों से दूर होकर बच्चे फोन पर अधिक समय […]

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पानी से नहीं, नीतियों से हारी ज़िंदगी…बार-बार दोहराई गई त्रासदी, बाढ़ प्रबंधन क्यों है अधूरा सपना?

डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा और उत्तर भारत के कई राज्य बार-बार बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं, लेकिन हर बार नुकसान झेलने के बावजूद स्थायी समाधान की दिशा में ठोस पहल नज़र नहीं आती। 2023 की बाढ़ के बाद भी करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद नदियों की सफाई, नालों की निकासी और जल प्रबंधन की […]

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हरियाणा की ड्रीम पॉलिसी: शिक्षक तबादलों के अधूरे सपनों की हकीकत?

डॉ सत्यवान सौरभ सरकार ने घोषणा की थी कि इस वर्ष तबादले अप्रैल में होंगे, किंतु सितंबर तक भी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। यह देरी न केवल शिक्षकों के साथ वादाख़िलाफ़ी है, बल्कि छात्रों की पढ़ाई और विद्यालयों के संचालन पर भी सीधा आघात है। हरियाणा सरकार की “ड्रीम पॉलिसी” का उद्देश्य था शिक्षक तबादलों […]

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एक पुलिसिया फरमान और लाखों की रोजी-रोटी का सवाल: क्या ये अमृत काल का ‘विकास’ है?

उत्तर प्रदेश में एक नई व्यवस्था शुरू हुई थी, जिसका नाम है पुलिस कमिश्नरी व्यवस्था। कहने को तो यह ब्रिटिशकाल की व्यवस्था है, लेकिन लगता है इसे आधुनिक भारत के ‘अमृत काल’ में कुछ ज्यादा ही शक्तियाँ दे दी गई हैं। अब पुलिस खुद ही आरोपी को पकड़ती है, और कुछ मामलों में तो खुद […]

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खाना वही, बिल दोगुना: ऑनलाइन फूड डिलीवरी का काला सच

आजकल ज़िंदगी की रफ़्तार इतनी तेज़ हो गई है कि हमें हर चीज़ दरवाज़े पर चाहिए। घर बैठे खाना मंगाना अब एक आदत बन गई है, जिसमें स्विगी और जोमैटो जैसे ऐप्स का अहम रोल है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इस ‘सुविधा’ की असली कीमत क्या है? हाल ही में एक ग्राहक […]

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आगरा शहर की ‘रईसी’ का असली चेहरा: जहाँ पैदल चलना है एक अपराध

आगरा। ताज का शहर। और अब… बड़ी-बड़ी गाड़ियों और उनके बड़े-बड़े अहंकार का शहर। शहर की महानता का पैमाना अब उसकी विरासत नहीं, बल्कि यह तय करता है कि उस शहर में बिना कार वाला इंसान, यानि दूसरे दर्जे का नागरिक, सड़क पर चलने के लिए कितनी जगह पाता है। या नहीं पाता है। ज़रा […]

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भारत की चिप क्रांति : सपनों से साकार होती हकीकत

उम्मीदों की चिप ने दिए आत्मगौरव और नवाचार को पंख डॉ सत्यवान सौरभ भारत आज उस ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक प्रगति का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और वैश्विक नेतृत्व की दिशा भी बन गई है। दशकों तक चिप और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में केवल उपभोक्ता के रूप में पहचाने […]

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पंजाब में बाढ़ आखिर क्यों: प्रकृति की चेतावनी या इंसानी लापरवाही का नतीजा?

“प्रकृति चेतावनी देती है, रुष्ट नहीं होती – असली वजह इंसानी लापरवाही और असंतुलित विकास” प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार पंजाब में बाढ़ को केवल प्राकृतिक आपदा कहना सही नहीं होगा। नदियों का स्वरूप, असामान्य बारिश और जलवायु परिवर्तन तो कारण हैं ही, लेकिन असली दोषी अनियोजित निर्माण, अवैध खनन, ड्रेनेज की उपेक्षा […]

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