जाति की जंजीरें: आज़ादी के बाद भी मानसिक गुलामी

आस्था पेशाब तक पिला देती है, जाति पानी तक नहीं पीने देती। प्रियंका सौरभ कैसे लोग अंधभक्ति में बाबा की पेशाब को “प्रसाद” मानकर पी सकते हैं, लेकिन जाति के नाम पर दलित व्यक्ति के छूने मात्र से पानी अपवित्र मान लिया जाता है। इन समस्याओं की जड़ें धर्म, राजनीति, शिक्षा और मीडिया की भूमिका […]

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मीडिया, स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं?

“धोखे की खबरें बिकती हैं, लेकिन विश्वास की कहानियाँ दबा दी जाती हैं — क्या हम संतुलन भूल गए हैं?” डॉo सत्यवान सौरभ,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट मीडिया में स्त्रियों की छवि और उससे जुड़ी सनसनीखेज रिपोर्टिंग ने आज गंभीर सवाल पैदा कर दिये है। कुछ घटनाओं में स्त्रियों द्वारा किए गए […]

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कोचिंग इंडस्ट्री की मनमानी: अभिभावकों और छात्रों के भविष्य से खिलवाड़

ALLEN Career Institute, हिसार प्रकरण पर एक सख्त सवाल प्रियंका सौरभ हिसार स्थित ALLEN Career Institute पर अभिभावकों ने आरोप लगाए हैं कि संस्थान ने उनके बच्चों का एक शैक्षणिक वर्ष बर्बाद कर दिया और अब जबरन फीस वसूली कर रहा है। यह घटना कोचिंग इंडस्ट्री की अनियंत्रित और मुनाफाखोर प्रवृत्ति को उजागर करती है। […]

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किसी को उजाड़ कर बसे तो क्या बसे: हैदराबाद के जंगलों की चीख

डॉo सत्यवान सौरभ,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट खजागुड़ा जैसे जंगलों को शहरीकरण के नाम पर नष्ट किया जा रहा है, जिससे न केवल पेड़, बल्कि वन्यजीव और स्थानीय समुदाय भी प्रभावित हो रहे हैं। यह विनाश पर्यावरणीय असंतुलन, जलवायु संकट और सामाजिक अन्याय को बढ़ावा देता है। आज न्याय के दोहरे मापदंड […]

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जंगल उजड़ते रहें और हिरण मरते रहें, पर मुक़दमा किस पर चले?

प्रियंका सौरभ भारत में पर्यावरणीय न्याय के दोहरे मापदंड है। एक ओर, अभिनेता सलमान खान पर एक हिरण के शिकार का वर्षों तक मुक़दमा चलता है, जबकि दूसरी ओर, हैदराबाद में एक पूरे जंगल को उजाड़ दिया जाता है—जिसमें दर्जनों हिरण मारे जाते हैं—लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। क्यों व्यक्तिगत अपराधियों को कठघरे में खड़ा […]

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विश्व टैरिफ युद्ध : क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

ट्रंप के सत्ता में आने के बाद विश्व टैरिफ युद्ध शुरू हो चुका है। इस टैरिफ युद्ध ने भारत सहित दुनिया भर के शेयर बाजारों को हिलाकर रख दिया है। खुद अमेरिका इससे अछूता नहीं है। मंदी और बेरोजगारी पसर रही है और ट्रंप की सनक के खिलाफ बड़े बड़े प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। […]

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जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

प्रियंका सौरभ हाल ही में एक प्रमुख अखबार की हेडलाइन ने ध्यान खींचा—“शहर में बंदरों और कुत्तों का आतंक।” यह वाक्य पढ़ते ही एक गहरी असहजता महसूस हुई। शायद इसलिए नहीं कि खबर गलत थी, बल्कि इसलिए कि वह अधूरी थी। सवाल यह नहीं है कि जानवर शहरों में क्यों आ गए, बल्कि यह है […]

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टैरिफ और वैश्विक व्यापार में परिवर्तन: क्या होगा भारत पर असर?

प्रियंका सौरभ टैरिफ, यानी व्यापार शुल्क, वैश्विक व्यापार को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण आर्थिक उपकरण है। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से ट्रम्प प्रशासन के दौरान, अमेरिका और कई अन्य देशों के बीच टैरिफ युद्ध छिड़ गया, जिससे वैश्विक व्यापार संतुलन अस्थिर हो गया। टैरिफ नीतियाँ वैश्विक व्यापार को गहराई से प्रभावित करती […]

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नया शैक्षणिक सत्र या अभिभावकों के लिए एक सोचा-समझा लूट का सीजन?

बृज खंडेलवाल नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही आगरा और दूसरे शहरों में निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों के शोषण का दौर शुरू हो गया है। आगरा में स्थानीय पेरेंट्स के संगठनों ने आवाज जरूर उठाई है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। साथ में ये धौंस, सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ाते। “जिन दिनों हम सेंट […]

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वक्फ संशोधन बिल 2024: पारदर्शिता और जवाबदेही की ओर एक क्रांतिकारी कदम

प्रियंका सौरभ वक्फ संशोधन बिल 2024 लोकसभा में पारित हुआ, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है। भारत में वक्फ बोर्ड के अंतर्गत लाखों एकड़ भूमि आती है, लेकिन वर्षों से इसके दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और मनमानी के आरोप लगते रहे हैं। यह बिल वक्फ बोर्डों की मनमानी पर रोक लगाने, […]

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