उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के छठे और सातवें चरण के मतदान से पहले भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष रणनीतिकार अमित शाह ने लीडरशिप पर भरोसे की बात करके अपनी रणनीति को सामने कर दिया है। यूपी चुनाव के बचे दोनों चरणों में उम्मीदवारों के खिलाफ गुस्से का मामला सामने आ रहा है। ऐसे में पार्टी पूरी तरह से शीर्ष नेतृत्व के चेहरों पर चुनावी लड़ाई को लड़ने की योजना पर काम करता दिख रहा है। छठे चरण में गोरखपुर और आसपास के इलाकों में सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रभाव की परीक्षा होगी। सातवां चरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और आसपास के इलाकों में होना है।
इन दोनों शीर्ष नेताओं के प्रभाव की परीक्षा इसमें होगी। ऐसे में एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में अमित शाह ने नेतृत्व के मुद्दे को काफी अलग तरीके से उठा दिया है। उन्होंने एंटी इनकंबैंसी और लोगों के गुस्से से संबंधित एक सवाल के जवाब में कहा कि लोगों का गुस्सा तब निकलता है, जब लोगों को नेतृत्व पर भरोसा नहीं होता है। लेकिन आप देख लें, लोगों को पीएम नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा है। इस इंटरव्यू के दौरान शाह ने यूपी में फिर से जीत, केंद्र-राज्य संबंध, पार्टी छोड़ने वाले नेताओं और नौकरियों से संबंधित मुद्दों की चर्चा की। यहां पढ़िए अमित शाह का पूरा इंटरव्यू।
2017 में जब आपने उत्तर प्रदेश में भाजपा के अभियान का नेतृत्व किया था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मौजूदा अखिलेश यादव के खिलाफ संदेश दिया था। आज योगी आदित्यनाथ के पांच साल हो गए हैं जबकि अखिलेश यादव चुनौती दे रहे हैं। यह आपके लिए कितना अलग है?
अमित शाह: इस बार हमारी ताकत में सुधार हुआ है। मोदी जी अभी भी हैं। उनके साथ-साथ हमारे पास वह कार्य है, जो योगी सरकार ने पिछले पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश के लिए किया है। भाजपा के लिए और भी कई फायदे हैं इसलिए मैं खुद को मजबूत मानता हूं।
अक्टूबर 2021 में अपने पहले यूपी चुनावी अभियान के भाषण में कहा था कि अगर लोग चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी 2024 में प्रधान मंत्री के रूप में वापस आएं तो उन्हें 2022 में योगी आदित्यनाथ की जीत सुनिश्चित करनी चाहिए। इन दोनों चुनावों में क्या संबंध है?
अमित शाह: मैंने ऐसा नहीं कहा। मैंने यह कहा था कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। चूंकि, उत्तर प्रदेश में लोकसभा में 80 सीटें हैं इसलिए 2024 में सत्ता में लौटने के लिए उत्तर प्रदेश में भाजपा का सत्ता में होना बहुत जरूरी है। अगर कोई केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाना चाहता है तो वह उत्तर के बिना नहीं हो सकता। प्रदेश का जनादेश इस मामले में महत्वपूर्ण है।
जमीन पर हमने यूपी में सरकार और पार्टी संगठन के बीच मतभेद बारे में सुना। नौकरशाहों के बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली होने की शिकायतें भी हैं। जब आपने अभियान की कमान संभाली तो क्या चुनौतियां थीं?
अमित शाह: बिल्कुल भी कोई चुनौती नहीं थी। जिसे आप मतभेद कहते हैं, उसे मैं भ्रम कहता हूं। वास्तव में कोई कठिनाई नहीं थी। जब पार्टी के वरिष्ठ नेता आते हैं तो ऐसे भ्रम दूर हो जाते हैं। हमारा लक्ष्य था उत्तर प्रदेश में अपराधीकरण रजनीति को रोकना। उत्तर प्रदेश में प्रशासन का राजनीतिकरण को रोकना। जब यह हमारा लक्ष्य होता है, तो ब्यूरोक्रेट ड्रिवेन क्या होता है? अगर कुछ कमियां हैं तो हम एक साथ बैठकर उन्हें दूर कर सकते हैं।
ऐसे विधायक हैं जो सरकार और कार्यकर्ताओं के बीच की खाई की बात करते हैं?
अमित शाह: यह बिल्कुल स्वाभाविक है। हमारी पार्टी अलोकतांत्रिक नहीं है और हमें अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन हमारी पार्टी अनुशासित पार्टी है। चुनाव शुरू होते ही सब अनुशासन के दायरे में आ गए। आज पश्चिमी यूपी से लेकर गाजियाबाद होते हुए सोनभद्र तक आप देखेंगे कि बीजेपी का पूरा कैडर जीत की दिशा में काम कर रहा है। एक चरण में चुनाव समाप्त होने के बाद वे अगले चरण में चले जाते हैं।
भाजपा के अभियान की लाइन है ‘जाति धर्म से उठ कर बड़ा है सम्मान, सबसे पहले गरीब कल्याण’। क्या ऐसा इसलिए क्योंकि समेकित ओबीसी वोट में दरार आई हैं?
अमित शाह: 2014 से मोदी जी का यह नारा है- सबका साथ, सबका विश्वास। हम अभी भी एक ही नारे के साथ चलते हैं, भाषा अलग हो सकती है। कोई भी जाति समूह हमसे दूर नहीं गया है। कुछ नेता चले गए हैं। उत्तर प्रदेश में कोई भी किसी विशेष समुदाय के वोटों के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है। प्रत्येक मतदाता व्यक्तिगत रूप से निर्णय लेता है।
क्या आपको आश्चर्य हुआ, जब जनवरी में कुछ वरिष्ठ नेता चले गए?
अमित शाह: आप कोई भी चुनाव को देखें, यह असामान्य नहीं है। कुछ नेता एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। मेरे लिए यह आश्चर्यजनक नहीं है। अगर कोई पार्टी के भीतर खुश नहीं है तो उसे छोड़कर फिर से जनादेश मांगने से पहले दूसरे में शामिल होना लोकतांत्रिक है।
क्या उनके बाहर निकलने से आपने कोई रणनीति बदली?
अमित शाह: बिलकुल नहीं। हां, कुछ निर्वाचन क्षेत्रों से बाहर होने के बाद उम्मीदवार बदले जा सकते थे। लेकिन यह भी हो सकता है कि प्रत्याशी रहते हुए भी बदल दिए जाते। शायद यही वजह थी कि वे चले गए।
-एजेंसियां
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