नई दिल्ली। अमेरिका ने रूस को सामान बेचने वाली दुनियाभर की 400 से ज्यादा कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है है। इनमें 19 भारतीय कंपनियां भी शामिल हैं। लेकिन ज्यादातर भारतीय कंपनियां कोई खास रक्षा उपकरण नहीं बनाती हैं, इसलिए भारत पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा। इनमें से सिर्फ एक कंपनी ही डीआरडीओ सेना के साथ काम करती है।
अमेरिका को शक है कि ये कंपनियां रूस को ऐसे उपकरण बेच रही हैं, जिनका इस्तेमाल आम लोगों और सेना दोनों के लिए किया जा सकता है। कई भारतीय कंपनियां तो बस पश्चिमी देशों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदकर रूस को बेच रही हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों ने रूस पर कई पाबंदियां लगा रखी हैं।
अंग्रेजी अखबार इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ कंपनियों में तो रजिस्टर्ड डायरेक्टर और शेयरधारक रूसी नागरिक भी हैं। उदाहरण के लिए, डेन्वास सर्विसेज मुख्य रूप से अलग-अलग सेवाओं के लिए डिजिटल कियोस्क सप्लाई करती है। इस कंपनी में रूसी नागरिकों की हिस्सेदारी है।
भारतीय कानून के मुताबिक, भारतीय कंपनियों में विदेशी नागरिकों का डायरेक्टर होना कानूनी है और रूसी संस्थाओं के साथ काम करने पर कोई रोक नहीं है। इस कंपनी पर आरोप है कि यह अमेरिका में बने माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण रूस को उसके आधुनिक हथियारों में इस्तेमाल करने के लिए दे रही थी।
इन 19 कंपनियों में से सिर्फ आरआरजी इंजीनियरिंग ही ऐसी कंपनी है, जो भारतीय रक्षा क्षेत्र के साथ थोड़ा-बहुत काम करती है। इसने डीआरडीओ के साथ काम किया है और कुछ सैन्य यूनिट को जरूरी सामान सप्लाई किए हैं। इस कंपनी पर आरोप है कि इसने अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित रूसी कंपनी आर्टेक्स लिमिटेड कंपनी को माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स की 100 से ज्यादा खेप भेजी हैं।
रिकॉर्ड के मुताबिक, आरआरजी ने पहले डीआरडीओ की कुछ प्रयोगशालाओं में डेटा सेंटर और आईटी नेटवर्क बनाने के लिए कर्मचारी भी मुहैया कराए थे। इसने अलग-अलग सैन्य यूनिट को सीमित संख्या में परमाणु, जैविक और रासायनिक हमले का पता लगाने वाले उपकरण भी सप्लाई किए हैं। कंपनी का दावा है कि इसने सैटकॉम स्टेशन बनाने में भी काम किया है। उद्योग के जानकारों का कहना है कि ऐसे उपकरण भारत में आसानी से मिल जाते हैं और जरूरत पड़ने पर इन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है।
-एजेंसी
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