आगरा। नारी सशक्तिकरण के नाम पर बेलगाम हालातों पर आगरा से आवाज उठी है। आगरा की महिला शांति सेना ने इसके लिए आवाज उठाई है।
संस्था के बैनर तले हुई एक संगोष्ठी में इस बात पर जोर दिया गया कि हालातों के मद्देनजर कानून में बदलाव भी होने चाहिए।
महिला शांति सेना की अध्यक्ष वत्सला प्रभाकर ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि सशक्तिकरण का अर्थ सुदृढ़ होना है। यानि मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से मजबूत होना ना कि बेलगाम हो जाना। हम सभ्य समाज में रहते हैं। हमें गलत को गलत और सही को सही कहना चाहिए। सिर्फ बेचारी है, यह कहकर महिलाओं का गलत बात पर भी पक्ष न लें। इसके लिए जरूरी है कि कुछ कानूनों में बदलाव हो। इसके लिए महिला शांति सेना देशव्यापी अभियान चलाकर कानून में बदलाव की मांग उठाएगी।
संजय प्लेस स्थित यूथ हॉस्टल में क्या महिला सशक्तिकरण का अर्थ ‘बेलगाम’ होना है, विषय पर हुई इस संगोष्ठी समाजसेवियों और अन्य गणमान्य लोगों बेबाकी से अपनी राय रखी।
अध्यक्ष वत्सला प्रभाकर ने कहा कि आज स्थिति यह है कि लड़के शादी नहीं करना चाहते। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि लड़कियां सबसे पहले जो मांग रखती हैं, वह है अकेले रहने की मांग। सास ससुर के साथ या फिर संयुक्त परिवार में रहना आज की लड़कियों को पसंद नहीं है। लड़कियों का दूसरा मुद्दा होता है कि लड़का अपनी आय किसके हाथ में रखता है। यदि मां के हाथ में रखता है तो वह उस पर अपना अधिकार जताना चाहती हैं।
उन्होंने कहा कि लड़कियों की इन्हीं स्थितियों की वजह से पशोपेश में लड़के शादी करने से बच रहे हैं। आवश्यकता है कानून में कुछ बदलाव हों। एक दौर था जब महिलाएं अबला समझी जाती थीं जबकि आज लड़के स्वयं को अबला महसूस करने लगे हैं। जल्द ही उनकी संस्था स्कूल कॉलेज और कार्यालयों में अभियान चलाकर कानूनों में बदलाव की मांग उठाएगी।
ब्रिगेडियर विनोद दत्ता का भी यही मानना था कि समाज के बदलते स्वरूप में पुरुषों का शोषण हो रहा है। हमारे सनातन शास्त्र और कानून महिलाओं को सबल बनाते हैं, लेकिन मेरठ में हुए मुस्कान कांड के बाद से आज पुरुष वर्ग डरा हुआ है।
डॉ. अशोक विज ने कहा कि आज हर कार्यक्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के बराबर हैं। उन्हें पूर्ण रूप से अधिकार मिले हुए हैं किंतु विडंबना है कि अपनी रक्षा के लिए बनाए गए कानून का वे दुरुपयोग कर रही हैं।
रागिनी श्रीवास्तव ने कहा कि परिवार सही का साथ दें। कौरव गलत थे और उनका साथ भीष्म पितामह ने दिया। नतीजा महाभारत हुआ। इसी तरह परिवारों में होने वाली महाभारत परिवार के वरिष्ठ सदस्य ही रोक सकते हैं।
नरेश पारस ने कहा कि आज नैतिक मूल्य का पतन लगातार हो रहा है। उम्र का बंधन नहीं रह गया है। बड़े स्कूलों में पढ़ाने वाली शिक्षिकाएं उसी स्कूल के बच्चों के साथ डेट पर जा रही हैं। जो महिलाएं लिव इन में रहती हैं, उसी पुरुष के ऊपर बाद में मुकदमा दर्ज करवा देती हैं। आवश्यकता है कि सजग रहें और अपने आसपास नजर रखें।
विधु दत्ता ने कहा कि माता-पिता बच्चों को समान रूप से संस्कार दें। बेटियों को सशक्त बनाने के साथ बेटों को भी कमजोर ना बनाएं। संतोष मित्तल ने कहा कि षड्यंत्र के तहत पुरुषों को आज फंसाया जा रहा है। इससे पहले कि ड्रम में मारकर डाल दिया जाए, उससे पहले समाज पुरुषों के अधिकारों के प्रति भी जाग जाए।
नूतन त्रिवेदी ने कहा कि कानून में बदलाव की बहुत जरूरत है। जरा सी बात पर आज महिलाएं जेल भेजने की धमकी देने लगती हैं। पूर्व पार्षद दीपक खरे ने कहा कि ताली दोनों हाथों से बजती है। यदि महिला का उत्पीड़न हो रहा है तो दोष पूरी तरह से सिर्फ पुरुष का ही नहीं होता। वहीं पुरुष का अगर उत्पीड़न हो रहा है तो दोष पूरी तरीके से महिला का नहीं होता।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए श्रुति सिन्हा ने कहा की समस्या का कोई एक पहलू नहीं होता। समस्याएं अनेक होती हैं बस उसे विवेक से और धैर्य से सुलझाना चाहिए।
संगोष्ठी के समापन पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सचिव शीला बहल ने कहा कि पहले के जमाने में मां बेटियों को यह कहकर विदा करती थी कि बेटा वापस न आना। रिश्ता निभाना। आज मां कहती हैं कि बेटा चिंता मत कर, जरा भी कोई बात हो तुरंत फोन कर। यह सोच बदलनी चाहिए। बेटियों को विवेक सिखाएं, परिवार में रहना सिखाएं।
संगोष्ठी में आदर्श नंदन गुप्त, शरद गुप्त, शमी अगाई, आकांक्षा शर्मा, आनंद राय, एडवोकेट मंजू द्विवेदी, चंद्रा मल्होत्रा, रीता भट्टाचार्य, रीता कपूर, अदिति, नीलम गुप्ता, एडवोकेट, लक्ष्मी लवानिया, रूबी, सुनील क्षेत्रपाल, अनिल जैन, गौरव गुप्ता, ज्योति खंडेलवाल, रागिनी श्रीवास्तव, ज्योति जादौन, विजय तिवारी, राहुल वर्मा, वंदना तिवारी, सुमन उपाध्याय, प्रीति मिश्रा, शहतोष गौतम, अर्जित शुक्ला, आभा चतुर्वेदी आदि ने भी अपने विचार रखें।