आगरा। थाना मलपुरा क्षेत्र के विनायक गार्डन से सामने आया मामला केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि रिश्तों के बिखरने और तथाकथित सामाजिक दबाव में की गई क्रूरता की भयावह दास्तान बन गया है। पुलिस के अनुसार रिटायर्ड दरोगा रणवीर सिंह यादव ने अपने बेटे गौरव यादव और रिश्तेदार सतीश कुमार यादव के साथ मिलकर अपनी ही 33 वर्षीय बेटी अंशु यादव की गला दबाकर हत्या कर दी। कारण बताया जा रहा है कि अंशु का प्रेम प्रसंग और उसी युवक से शादी की जिद परिवार को स्वीकार नहीं थी, जिसे वे ‘इज्जत’ पर धब्बा मान रहे थे।
हत्या के बाद पूरे मामले को छिपाने के लिए परिवार ने साजिश रची। आरोप है कि शव को कार में रखकर इटावा के जसवंतनगर स्थित ससुराल ले जाया गया और वहां से पत्नी व साले के बेटे की मदद से यमुना नदी में फेंक दिया गया। हालांकि शव नदी में बहने के बजाय झाड़ियों में फंस गया, जिससे बाद में सच्चाई सामने आने का रास्ता खुल गया।
डीसीपी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार घटना को छुपाने के उद्देश्य से आरोपी पिता ने 30 अक्टूबर को स्वयं ही थाने में बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस कई दिनों तक युवती की तलाश करती रही। इसी दौरान एक अहम सुराग पुलिस के हाथ लगा—अंशु द्वारा घटना से पहले बनाया गया वीडियो, जिसमें उसने अपने माता-पिता से जान का खतरा होने की बात कही थी। वीडियो, सर्विलांस इनपुट और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर पुलिस का शक और गहराता चला गया।
एसीपी सुकन्या के निर्देशन में गठित पुलिस टीम ने जब सख्ती से पूछताछ की, तो रिटायर्ड दरोगा ने अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसकी निशानदेही पर रविवार शाम इटावा के इकदिल थाना क्षेत्र में यमुना नदी किनारे झाड़ियों से युवती का कंकाल बरामद किया गया। इस कार्रवाई में एसडीआरएफ, इटावा के तीन थानों की पुलिस और आगरा पुलिस की संयुक्त टीम शामिल रही। बरामद अवशेषों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और डीएनए जांच कराई जा रही है, जिससे मृतका की पहचान की औपचारिक पुष्टि हो सके।
पुलिस के अनुसार अंशु का अपने ही रिश्ते में लगने वाले भतीजे से प्रेम संबंध था। परिवार को डर था कि यह रिश्ता अन्य छोटे भाई-बहनों की शादियों में बाधा बनेगा और समाज में बदनामी होगी। इसी सामाजिक दबाव और भय ने माता-पिता व भाई को इस अमानवीय निर्णय तक पहुंचा दिया। गौरतलब है कि 14 दिसंबर को युवती के प्रेमी अनुराग यादव ने भी सीधे तौर पर माता-पिता पर हत्या का आरोप लगाया था, जिसके बाद जांच ने निर्णायक मोड़ ले लिया।
यह मामला समाज के उस कड़वे सच को उजागर करता है, जहां संवाद और समझ की जगह हिंसा को चुन लिया जाता है। कानून ने भले ही आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया हो, लेकिन यह घटना एक बड़ा सवाल छोड़ जाती है—क्या आज भी रिश्तों की तथाकथित ‘इज्जत’ इंसानियत से बड़ी मानी जाती है?
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