Agra News: चार दशक बाद बेड़ियों से मुक्ति, हाईकोर्ट के फैसले ने निर्दोष को दिलाया इंसाफ

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आगरा। न्याय भले ही देर से मिले, लेकिन जब मिलता है तो टूटती उम्मीदों में भी नई जान डाल देता है। ऐसा ही एक मानवीय और संवेदनशील उदाहरण सामने आया, जब पैरवी के अभाव में बीते दो माह से जिला जेल में बंद एक निर्दोष व्यक्ति को सामाजिक संस्था की पहल पर हाईकोर्ट से न्याय मिला और उसकी रिहाई सुनिश्चित हो सकी।

हाईकोर्ट ने पलटा निचली अदालत का फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के निर्णय को त्रुटिपूर्ण मानते हुए वर्ष 1984 के डकैती प्रकरण और 1987 में दी गई दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया। अदालत ने लाखन सिंह को पूर्णतः निर्दोष घोषित करते हुए बरी करने का आदेश दिया, जिससे 41 साल पुराने मामले का पटाक्षेप हुआ।

1984 से शुरू हुआ संघर्ष, 1987 में हुई सजा

लाखन सिंह को वर्ष 1984 में एक लूट की घटना में आरोपी बनाया गया था। 1987 में दोषसिद्ध होने के बाद उसे जेल जाना पड़ा। बाद में उसे हाईकोर्ट से जमानत तो मिल गई, लेकिन परिवार के अभाव और आर्थिक तंगी के चलते वह आगे की कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सका। वर्षों पुराने एक आदेश के अनुपालन में उसे दो माह पूर्व फिर से जेल भेज दिया गया, जबकि वह स्वयं को लगातार निर्दोष बताता रहा।

सत्यमेव जयते ट्रस्ट बना सहारा

मामला सामने आने पर सत्यमेव जयते ट्रस्ट ने इसे केवल कानूनी नहीं, बल्कि मानवीय विषय मानते हुए हस्तक्षेप किया। ट्रस्ट के ट्रस्टी एवं युवा अधिवक्ता रोहित अग्रवाल, दुर्गेश शर्मा तथा हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक सिंह ने पूरे समर्पण और तथ्यात्मक आधार पर मामले की पैरवी की।

कैंसर से पीड़ित, जीवन के अंतिम चरण में

लाखन सिंह के प्रति संवेदनशीलता का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि वह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार वह जीवन के अंतिम चरण में है। परिवार और सहारे के बिना यदि उसे न्याय न मिलता, तो यह व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न बन जाता।

जेल प्रशासन का सहयोग भी सराहनीय

इस पूरे प्रकरण में जेलर नागेश सिंह एवं जिला कारागार प्रशासन ने भी मानवीय दृष्टिकोण अपनाया। ट्रस्ट के महामंत्री गौतम सेठ की उपस्थिति में 20 दिसंबर को सभी औपचारिकताएं पूरी कर लाखन सिंह की जिला जेल से रिहाई कराई गई।

निस्वार्थ सेवा को मिला सम्मान

सत्यमेव जयते ट्रस्ट के अध्यक्ष मुकेश जैन, अशोक गोयल, अनिल कुमार (एडवोकेट) और नंदकिशोर गोयल ने इस मामले में निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक निस्वार्थ भाव से सेवा देने वाले अधिवक्ताओं के प्रति आभार जताया।
यह मामला न केवल न्याय व्यवस्था में मानवीय हस्तक्षेप की ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि यदि कोई साथ खड़ा हो जाए, तो वर्षों बाद भी न्याय संभव है।

Dr. Bhanu Pratap Singh