Agra, Pradesh, India. राष्ट्र संत नेपाल केसरी जैन मुनि मणिभद्र महाराज ने कहा है कि लक्ष्मी भी वहीं ठहरती है, जहां उसका मान-सम्मान होता है। उसका व्यय उचित कार्यों में होता है। लक्ष्मी को यदि अपने घर में रोकना चाहते हो तो घर में प्रेम, सद्भाव और धर्म को प्राथमिकता दो।
जैन स्थानक, न्यू राजामंडी में इन दिनों भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जा रहा है। रविवार को धनतेरस व नरक चतुर्दशी की व्याख्या जैन मुनि ने की। उन्होंने कहा कि एक श्रावक आरुषि नंदन धर्म में लीन रहते थे। उनकी धार्मिक भावना की खुशबू आसपास के शहरों में भी फैल चुकी थी। उनकी भक्ति भावना से लोग प्रेरणा लेते थे। इससे पाप सिमटता जा रहा था।
जैन मुनि ने बताया कि एक दिन पाप को दुखी देख कर उसकी पत्नी कुलक्षिणी ने उसका कारण पूछा। उसने बताया कि आरुषि नंदन की वजह से मैं सिमटता जा रहा हूं। इस पर कुलक्षिणी ने योजना बनाई। जिसके आधार पर पाप आरुषि नंदन के यहां गया। बोला कि मैं विदेश जा रहा हूं, कुछ समय तक मेरी पत्नी कुलक्षिणी को अपने यहां शरण दे दो। आरुषि नंदन बहुत सहृदयी था। उसने मना नहीं किया और उसने शरण दे दी। एक दिन आरुषि नंदन ध्यान कर रहा था। उसने एक शक्ति को आसमान से आते देखा। वह उसके पास आई और बोली कि मैं धन लक्ष्मी हूं। आपने अपने घर में कुलक्षिणी को शरण दे दी है, इसलिए मैं जा रही हूं। इस प्रकार सौभाग्य लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी भी चली गईं। इससे उसके व्यापार में हानि होने लगी। लोग उससे बच कर चलने लगे। यानि उसके बुरे दिन आ गये, लेकिन वह बिलकुल भी विचलित नहीं हुआ। धर्म का पालन करता रहा।
एक दिन आरुषि नंदन ने देखा आसमान से एक शक्ति आ रही है। उसके पास आई तो पता चला कि धर्मदेव हैं। वे भी बोले कि जब तीनों लक्ष्मी चली गईं तो मैं भी जा रहा हूं। इस पर आरुषि नंदन ने कहा कि तीनों लक्ष्मी चली गईं, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा, मैंने कोई चिंता नहीं की। उन्हें रोका भी नहीं। लेकिन आपको नहीं जाने दुंगा। उसने यह कह कर पैर पकड़ लिए। धर्मदेव को वहां से नहीं जाना दिया। धर्म देव के उस घर में रहने से कुलक्षिणी अपने आप चली गई और फिर तीनों लक्ष्मी वापस आ गईं ।
जैन मुनि ने कहा कि लक्ष्मी का हमेशा सम्मान करना चाहिए। तभी उनका वास होता है। वरना कभी भी चली जाएंगी। पूर्व जन्म के कारण शराब, जुए आदि में धन का उपयोग करने वाले के यहां मजबूरी में रहती हैं, लेकिन दुखी रहती है। जैसे ही मौका लगता है लक्ष्मी दुर्जनों के यहां से रवाना हो जाती है। इसलिए हमें महालक्ष्मी का सम्मान करना चाहिए। तभी सुख, शांति, समृद्धि हमारे जीवन में रहेगी।
रविवार की धर्मसभा में नेपाल एवम ओरंगाबाद महाराष्ट्र से श्रद्धालु उपस्थित थे ,जिनका संघ की तरफ से नरेश चप्लावत ने सम्मान किया।आदेश बुरड़, विवेक कुमार जैन,राजीव चपलावत, संजीव जैन, नरेंद्र सिंह जैन, तेज बहादुर गादिया, सचिन जैन, अतिन जैन आदि उपस्थित थे।
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