हिंदुस्तान जिंक में सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज इससे जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस कंपनी में सरकार की 29.54% हिस्सेदारी है जिसका मूल्य करीब 37,000 करोड़ रुपये है। सरकार ने इस कंपनी में अपनी 26 फीसदी हिस्सेदारी 2002 में वेदांत ग्रुप को बेच दी थी। बाद में कंपनी ने ग्रुप में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 64.92 फीसदी पहुंचा दी। हिंदुस्तान जिंक में सरकार की पूरी हिस्सेदारी बेचने के फैसले से जुड़ी खबर से कंपनी के शेयरों को पंख लग गए। बीएसई पर कंपनी का शेयर करीब सात फीसदी की तेजी के साथ 317.30 रुपये पहुंच गया।
इस कीमत पर कंपनी में सरकारी हिस्सेदारी की कीमत Rs 39,385.66 करोड़ रुपये पहुंच गई। सरकार ने इस वित्त वर्ष में 65,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य तय किया है और उसे हासिल करने के लिए हिंदुस्तान जिंक में हिस्सेदारी बिक्री को अहम माना जा रहा है। सरकार ने हाल में एलआईसी के आईपीओ से 20,560 करोड़ रुपये जुटाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में सरकार को हिंदुस्तान जिंक में अपनी बाकी हिस्सेदारी बेचने की अनुमति दे दी थी। केंद्र ने सबसे पहले 1991-92 में हिंदुस्तान जिंक में 24.08 फीसदी हिस्सेदारी बेची थी जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे।
क्या है मामला
अप्रैल 2002 में सरकार ने कंपनी में 26 फीसदी हिस्सेदारी 445 करोड़ रुपये में स्टलाइट को बेच दी थी। आरोप है कि इसकी असल कीमत 39,000 करोड़ रुपये थी। उस समय देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। स्टरलाइट ने 20 फीसदी हिस्सेदारी ओपन मार्केट से खरीदकर अपनी हिस्सेदारी 46 फीसदी पहुंचा दी थी। फिर उसने दो कॉल ऑप्शंस का इस्तेमाल कर हिंदुस्तान जिंक में 64.92 फीसदी हिस्सेदारी ले ली। साल 2012 में केंद्र सरकार ने कंपनी में अपनी 29.54 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया। लेकिन नवंबर 2013 में सीबीआई ने इस मामले में संदिग्ध वित्तीय अनियमितताओं के आधार पर प्रांरभिक जांच शुरू की। लेकिन इसे बाद में बंद कर दिया गया।
साल 2014 में सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (CPSE) ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की थी। इसमें दावा किया गया था कि 2002 में जब हिंदुस्तान जिंक का विनिवेश किया गया था, तब इसके शेयर को कम (अंडरवैल्यू) आंका गया था। साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हिंदुस्तान जिंक में हिस्सेदारी बेचने पर रोक लगा दी थी। साल 2006 में सीएजी (CAG) की रिपोर्ट में संकेत दिए गए थे कि एसेट वैल्यूअर और ग्लोबल एडवाइजर ने एसेट्स का सही मूल्यांकन नहीं किया था।
-एजेंसियां
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