डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में ‘कुलपति के वकील’ का अद्भुत विदाई समारोह, प्रो. आशुरानी ने कहा, “जग्गी जैसा कोई नहीं”

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डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में ‘कुलपति के वकील’ का अद्भुत विदाई समारोह, प्रो. आशुरानी ने कहा, “जग्गी जैसा कोई नहीं”

22 कुलपतियों के साथ कार्य करने वाले टीबी जग्गी को मिला मेंटोर के रूप में विश्वविद्यालय से जुड़ने का आमंत्रण

सेल्फ फाइनेंस एसोसिएशन ने लीगल सैल का प्रभारी और संरक्षक पद देकर मान बढ़ाया

“छत्तीस वर्षों की सेवा का गौरव, समारोह में चाँदी के मुकुट से लेकर पुष्पवर्षा तक, सम्मान की झड़ी ने भाव-विभोर किया”

 

(डॉ. भानु प्रताप सिंह)
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Agra,  Uttar Pradesh, India,  Bharat

आगरा। सरल, सहज, संवेदनशील, कुलपति के वकील। हर काम में होशियार और यारों के यार। कॉलेजों के एनसाइक्लोपीडिया। सदाचारी और सद्व्यवहारी। कोई शत्रु नहीं पाला, सबको हमजोली बना डाला। शिक्षक हो या कर्मचारी, सबसे यारी। ऊर्जा से भरपूर, मुखमंडल पर नूर। तभी तो 60 साल की उम्र में 26 का बता रहे, गुणों की खान बता रहे। आप सोच रहे होंगे ऐसा लिखना तो चममचागीरी है, विज्ञापन है तो गलत सोच है। जो देखा है, वही लिखा है और कम लिखा है। कम इसलिए ताकि लोगों के पेट में दर्द कम हो। हम बात कर रहे हैं डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय (आगरा विश्वविद्यालय) के कार्यालय धीक्षक पद से सेवानिवृत्त टीबी जग्गी के नाम से मशहूर तेग बहादुर जग्गी की। जग्गी की आन-बान-शान दिखाई दी उनके सेवानिवृत्त समारोह में। तभी तो कुलपति प्रो. आशुरानी ने पूछा, जग्गी जैसा कोई नहीं है, कौन बनेगा जग्गी?

खचाखच भर गया हॉल

टीबी जग्गी का सेवानिवृत्ति समारोह 29 नवम्बर, 2025 को विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में हुआ। तीन बजे का समय निश्चित था। मेरी आदत खराब है समय पर पहुंचने की। यह सोचकर कि इस तरह के कार्यक्रम विलंब से ही शुरू होते हैं, इसलिए 3.16 बजे पहुंचा। देखा कि हॉल भरने की ओर है। कुछ ही देर में हॉल खचाखच भर गया। कुलपति प्रोफेसर आशुरानी की प्रतीक्षा की जाने लगी। माइक संभाल रखा था कर्मचारी नेता अरविंद गुप्ता ने। कुलपति के आते ही हलचल सी मच गई। सभी ने कुर्सियां संभाल लीं। कई दर्जन लोग खड़े हुए थे क्योंकि कुर्सियां खाली नहीं थीं।

कुलपति ने किया स्वागत

सबसे पहले कुलपति प्रो. आशु रानी ने टीबी जग्गी का स्वागत किया। फिर परीक्षा नियंत्रक डॉ. ओम प्रकाश, सेल्फ फाइनेंस एसोएशन के अध्यक्ष डॉ. कृपाल सिंह आर्य, आगरा कॉलेज प्राचार्य प्रो. सीके गौतम, प्रोफेसर ब्रजेश रावत, प्रो. बिंदु शेखर शर्मा, प्रो. संतोष बिहारी शर्मा, डॉ. अनिल गुप्ता, विश्वविद्यालय की जनसंपर्क अधिकारी पूजा सक्सेना, छात्र नेता शिव सिंह, अनूप चौधरी, श्याम चौधरी, राजेश लवानिया, निर्वेश शर्मा आदि ने माला पहनाई।

स्वागत के लि लिए लाइन

स्वागत करने वालों की लाइन

इसके बाद तो स्वागत करने वालों की लाइन लग गई। चांदी के मुकुट, घड़ी, शॉल, पटका, और साफा पहनाए, पुष्प बरसाए। पुष्पहार तो इतने पहनाए कि चेहरा बार-बार ढक जाता था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई विधायक मंत्री बनकर पहली बार अपने क्षेत्र में आया हो। हर्षोल्लास इतना कि पूछो ही मत। जग्गी के परिजन भी समारोह में आए थे। उनके चेहर पर खुशी देखते ही बनती थी। उन्हें आज पता चला कि घर का मुखिया कितना लोकप्रिय है। विभाग की ओर से उपहार दिए गए। कुलपति ने प्रमाणपत्र दिया।

 

विश्वविद्यालय की आशा के रूप में जग्गी

इस मौके पर कुलपति प्रो. आशुरानी ने कहा, “मैं जब विश्वविद्यालय के बारे में किसी से जानकारी करती थी तो हर कोई कहता था जग्गी से पूछो। मुझे बड़ा आश्चर्य होता था। मैंने  जग्गी से चर्चा की। इसके बाद पूरे विश्वविद्यालय की आशा के रूप में जग्गी निकला। हर चीज को संभाला। जग्गी जैसा कोई नहीं। इंटेलीजेंट कम इनसाइक्लोपीडिया है जग्गी। 165 कॉलेजों की स्थिति कंठस्थ है। इतनी महारत हासिल करने वाला सफल होता ही है।”

 

मेंटोर के रूप में विवि से जुड़े रहें

कुलपति ने कहा, “जग्गी को आधा परीक्षा नियंत्रक बोला जाता है। कानून पता है। हर विभाग में संपर्क है। जितनी भी शिकायत हुई, उन सबके निस्तारण में सहयोग किया। विवि में अभूतपूर्व योगदान दिया है। जग्गी को मेंटोर के रूप में विवि से जुड़े रहना चाहिए। उम्मीद है कि जहां भी रहेंगे अच्छी तरह काम करेंगे।”

“मुझे दिन में दो बार जग्गी से बात करने की आदत है, पता नहीं कब बदलेगी। अपने शौक पूरे कीजिए।”

 

मेरे कार्यकाल की सफलता में भी जग्गी का योगदान

उन्होंने जग्गी की ओर मुखातिब होकर कहा, “ये आपका विवि है, सदैव स्वागत है। एग्जाम पूरे होने तक आपको छोड़ा नहीं जाएगा। मेरे कार्यकाल की सफलता में भी जग्गी का योगदान है। राजभवन में भी आपका नाम जानते है। यह भी कहा कि हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना है। नए बच्चे काम सीखें। मेरी तरह जग्गी का भी दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ है।”

ऐसा दृश्य कई बार दिखाई दिया।

कोई है ऐसा जो दूसरा जग्गी बन सके?

परीक्षा नियंत्रक डॉ. ओमप्रकाश ने कहा, “टीबी जग्गी मेरे निकट सर्वाधिक रहे हैं। अन्य कर्मचारी जग्गी का अनुसरण करें तो वे भी लोकप्रिय हो सकते हैं। इतने लोग तो घेराव में नहीं आते हैं, जितने यहां आए हैं। अधिकारी सदैव कार्यकुशल कर्मचारी चाहता है। कोई है ऐसा जो दूसरा जग्गी बन सके? विवि की छवि को और सुधारें। जग्गी में लिखने की कला है। जग्गी विवि से जुड़े रहें तो लाभ होगा।  इनके गुण हैं- मोस्ट कॉम्पिटेंट,  समाधान गुरु, ऑल राउंडर, लोकप्रिय, फैमिली काउंसलर।”

 

यूपी का प्रथम दीक्षांत समारोह कराने में प्रमुख भूमिका

प्रो. संतोष बिहारी शर्मा ने कहा, “आगरा विश्वविद्यालय ने उत्तर प्रदेश में पहला दीक्षांत समारोह करके रिकॉर्ड बनाया, जिसमें प्रमुख भूमिका जग्गी की रही। जग्गी जी किसी को नाराज नहीं करते।”

सेल्फ फाइनेंस एसोसिएशन में दो पद मिले

सेल्फ फाइनेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. कृपाल सिंह आर्य ने कहा, “जग्गी में धैर्य बहुत है। सभी को उनके जैसा सरल व्यवहार करना चाहिए। कोई असंतुष्ट नहीं गया। काम नहीं हुआ तो व्यवहार से संतुष्ट किया। विवि को जग्गी की आवश्यकता है।” उन्होंने जग्गी को सेल्फ फाइनेंस एसोसियेशन का लीगल सेल का प्रभारी और संरक्षक बनाने की घोषणा की।

कुलपति के वकील

सेल्फ फाइनेंस एसोसिएशन के मीडिया प्रभारी ब्रजेश शर्मा ने कहा, “जग्गी जी को कुलपति वकील साहब कहती हैं। विवि को नैक ग्रेड दिलाने में जग्गी का योगदान है। छात्र आंदोलन में मदद की। हमारा इतना पक्ष रखा कि बुराई तक ले ली।”

रिटायर होने के बाद भी 26 साल के

मुरारीलाल छौंकर ने कहा, “जग्गी ने 36 साल सेवा की। चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है। नाराज नहीं होते हैं। नोटिंग और ड्राफ्टिंग शानदार है। भले ही रिटायर हो गए लेकिन 26 साल के हैं। सभी साथियों का साथ दिया। जब विवि का हाल खराब था, एसआईटी की जांच चल रही थी, तब भी सबका साथ दिया। ”

विदाई समारोह में उपस्थित महानुभाव

एक ही मंत्र, विवि के प्रति सकारात्मक सोच रखो

स्वागत से अभिभूत  टीबी जग्गी ने कहा, “36 वर्ष की सेवा में भूल हुई तो माफी चाहता हूँ। मेरी आन, बान, शान और सम्मान विश्वविद्यालय से है। मेरा एक ही मंत्र है कि संस्था के प्रति सकारात्मक सोच रखो। विवि हित में जो हो सके वो करें। मैंने कुलपति को लगातार 18 घंटे काम करते देखा है। वे हम कर्मचारियों के लिए रात 11 बजे घर से खाना बनवाकर लाती थीं।”

 

प्रो. आशुरानी के साथ काम करना सौभाग्य

“मैं भाग्यशाली हूँ कि 22 कुलपतियों के साथ काम किया है और सौभाग्यशाली हूँ कि ऐसी कुलपति प्रोफेसर आशुरानी के साथ काम करने का मौका मिला, जिन्होंने किसी कर्मचारी के खिलाफ कर्रवाई नहीं की। मेरी प्रतिबद्धता हमेशा विवि के प्रति रहेगी। अगर आप विश्वविद्यालय का परिवार मानेंगे तो आगे बढ़ेगा। इसी में आपका सम्मान है।”

अरविंद गुप्ता ने सफल संचालन के साथ आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा, कुलपति जी की सरलता का दुरुपयोग न करें।

 

जग्गी: समर्पण, सादगी और संस्थागत स्मृति का प्रतिमान

डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा में टी.बी. जग्गी के सेवानिवृत्ति समारोह ने न केवल एक कर्मचारी के कार्यानुभव का उत्सव मनाया, बल्कि यह भी प्रमाणित किया कि किसी संस्थान की रीढ़ हमेशा उच्च पदस्थ अधिकारी नहीं होते; कई बार वे लोग होते हैं जो पर्दे के पीछे से व्यवस्था को जीवित रखते हैं। जुबली हॉल में उमड़े अभूतपूर्व जनसमूह ने यह स्पष्ट कर दिया कि जग्गी जैसा कर्मयोगी किसी भी संस्था को विशिष्ट पहचान देने में कितना सक्षम हो सकता है।

जिस व्यक्ति के लिए कुलपति स्वयं मंच से यह प्रश्न उठाएँ—“जग्गी जैसा कोई नहीं, दूसरा जग्गी कौन बनेगा?”—वह केवल एक कर्मचारी नहीं, संस्थागत संस्कृति का आधार-स्तंभ होता है। जग्गी का विदाई समारोह इसी विरल सम्मान का द्योतक था।

विदाई समारोह में उपस्थित महानुभाव

संस्थान की जीवंत स्मृति—एक दुर्लभ धरोहर

165 महाविद्यालयों की स्थिति कंठस्थ होना, विश्वविद्यालय की आंतरिक संरचना और नियमावली पर अद्भुत पकड़ रखना, और वर्षों तक शिकायतों के समाधान में निर्णायक भूमिका निभाना—ये क्षमताएँ किसी प्रशिक्षण का परिणाम भर नहीं होतीं। इसके लिए इच्छाशक्ति, लगन और संगठन के प्रति आत्मीयता आवश्यक है।

जग्गी को ‘चलता-फिरता इनसाइक्लोपीडिया’ कहकर कुलपति ने वस्तुतः उस संस्थागत स्मृति का सम्मान किया है जो किसी भी विश्वविद्यालय के लिए अमूल्य संपत्ति होती है। आज अधिकांश संस्थान इस अभाव से जूझ रहे हैं कि अनुभवधारी कर्मचारी या तो नकारात्मक मानसिकता में डूब जाते हैं या निष्क्रिय हो जाते हैं। इसके विपरीत, जग्गी ने अपनी सेवा के अंतिम दिन तक ऊर्जा और सकारात्मकता को जीवित रखा।

नेतृत्व के लिए संदेश

सेवानिवृत्ति समारोह में उपस्थित भीड़ केवल सम्मान का प्रतीक नहीं, बल्कि एक संदेश भी है—नेतृत्व की प्रभावशीलता तभी सिद्ध होती है जब वह अपने कनिष्ठों के मन में विश्वास, सुरक्षा और आत्मीयता उत्पन्न करे।

प्रो. आशु रानी के वक्तव्य—“मुझे दिन में दो बार जग्गी से बात करने की आदत है”—इस सहक्रियात्मक संबंध का प्रमाण देते हैं। यह संबंध आदेशों पर नहीं, बल्कि पारदर्शिता, कार्यकुशलता और मानवता पर आधारित था।

आज भारत के विश्वविद्यालय जिन चुनौतियों से जूझ रहे हैं—नैक मूल्यांकन, डिजिटल संक्रमण, छात्र असंतोष, प्रशासनिक अव्यवस्था—उनसे पार पाने के लिए ऐसे ही कर्मचारी-नेतृत्व संबंध और ऐसी ही सहभागिता मॉडल की आवश्यकता है।

कार्यसंस्कृति की वह मिसाल, जिसकी आज सबसे अधिक जरूरत

जग्गी ने कहा—“मेरी आन-बान-शान और सम्मान विश्वविद्यालय से है। मेरा मंत्र है—संस्था के प्रति सकारात्मक सोच रखो।”
यह सरल वाक्य वस्तुतः किसी भी कर्मचारी की आदर्श कार्यसंस्कृति का सार है।

आज सेवा क्षेत्र में अक्सर शिकायतें सुनने को मिलती हैं—कार्यस्थल तनावपूर्ण है, नेतृत्व असंवेदनशील है, सहकर्मी सहयोग नहीं करते। ऐसे समय में जग्गी की 36 वर्ष की सेवा यह बताती है कि यदि व्यक्ति स्वयं सकारात्मक दृष्टिकोण रखे, अपने दायित्वों को प्राथमिकता दे, और संस्था को परिवार की तरह माने, तो वातावरण चाहे जैसा भी हो—वह अपनी पहचान गढ़ ही लेता है।

क्या दूसरा जग्गी बन सकता है?

यह प्रश्न केवल आगरा विश्वविद्यालय के लिए नहीं, हर संस्था के लिए महत्वपूर्ण है।
दूसरा जग्गी बनने के लिए केवल पद, अनुभव या दायित्व पर्याप्त नहीं।
इसके लिए चाहिए—

  • कार्यकुशलता और धैर्य
  • संगठन के प्रति निष्ठा
  • मानव व्यवहार की समझ
  • शिकायतों को समाधान में बदलने की क्षमता
  • और सबसे बढ़कर—सकारात्मक सोच

यह वे गुण हैं जो धीरे-धीरे बनते हैं, प्रशिक्षण से नहीं, बल्कि चरित्र और कार्यधर्म से उत्पन्न होते हैं।

जग्गी का मंत्र

“संस्था के प्रति सकारात्मक सोच रखो।”

36 वर्षों की सेवा में जग्गी ने निष्ठा, ऊर्जा और समाधान-केंद्रित दृष्टिकोण से आदर्श प्रस्तुत किया।

 

उपसंहार: एक युग का अवसान, एक आदर्श का उदय

टी.बी. जग्गी का सेवानिवृत्ति समारोह किसी व्यक्ति की विदाई भर नहीं था; यह एक युग की पूर्णाहुति था। उनका योगदान केवल प्रशासनिक तंत्र तक सीमित नहीं रहा; उन्होंने विश्वविद्यालय को एक जीवंत, मानवीय और व्यवस्थित इकाई बनाए रखने में अद्भुत भूमिका निभाई।

उनकी विदाई से एक खालीपन अवश्य उत्पन्न होगा, पर साथ ही उनके आदर्शों से एक नया अध्याय भी शुरू होगा—जहाँ नई पीढ़ी यह समझ सकेगी कि किसी भी संस्था में ‘सबसे महत्वपूर्ण पद’ वह नहीं होता जो कागज़ों में लिखा हो, बल्कि वह होता है जो विश्वास, कर्म और व्यक्तित्व से अर्जित किया जाता है।

आगरा विश्वविद्यालय और उसके कर्मचारी यदि जग्गी के इस आदर्श को अपनाएँ, तो निश्चय ही संस्था का भविष्य उज्ज्वल होगा।

 

 

Dr. Bhanu Pratap Singh