टी.जी.टी. भर्ती लिखित परीक्षा चौथी बार स्थगित, शिक्षित बेरोज़गारों में आक्रोश — नकारा चयन आयोग को भंग किया जाए

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टी.जी.टी. भर्ती लिखित परीक्षा चौथी बार स्थगित, शिक्षित बेरोज़गारों में आक्रोश — नकारा चयन आयोग को भंग किया जाए

चौथी बार परीक्षा स्थगित — धैर्य की सीमा टूट रही है

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat.

उ0प्र0 शिक्षा सेवा चयन आयोग ने अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में प्रशिक्षित स्नातक (T.G.T.) वेतनक्रम में सहायक अध्यापकों की लिखित परीक्षा 18–19 दिसम्बर 2025 को प्रस्तावित की थी। यह परीक्षा एक बार नहीं, दो बार नहीं — पूरी चार बार स्थगित की जा चुकी है। इससे युवाओं में आक्रोश है और सरकार की छवि भी प्रभावित हुई है।

तीन वर्ष, साढ़े आठ लाख युवा, और भरोसे का टूटना

टी0जी0टी0 के 3539 रिक्त पदों के लिए जुलाई 2022 में 8.69 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। तीन वर्षों के अंतराल में परीक्षा चौथी बार टल गई। युवाओं का चयन आयोग से भरोसा उठ गया है।

परीक्षा की चार प्रस्तावित तिथियाँ — और चारों निरस्त

परीक्षा क्रमशः 4–5 अप्रैल 2025, 14–15 मई 2025, 21–22 जुलाई 2025 और 18–19 दिसम्बर 2025 को होनी थी। लेकिन आयोग इनमें से एक भी परीक्षा नहीं करा सका।

डॉ. देवी सिंह नरवार — ‘युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ अस्वीकार्य’

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश के संस्थापक एवं हिन्दी साहित्य भारती के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. देवी सिंह नरवार ने कहा कि साढ़े आठ लाख बेरोज़गारों की आशाएँ टूट गई हैं। कई अभ्यर्थी ओवर-एज हो रहे हैं। यह अन्यायपूर्ण स्थिति है।

अध्यापकों की भारी कमी — शिक्षा व्यवस्था चरमराई

विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है। बेरोज़गारों की फौज बढ़ रही है। पठन-पाठन प्रभावित है। यदि तुरंत कार्रवाई नहीं हुई तो युवाओं का आक्रोश सड़कों पर दिखेगा।

आयोग को भंग करने की मांग

डॉ. नरवार ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि अक्षम चयन आयोग को तुरंत भंग किया जाए और भर्ती का अधिकार विद्यालय प्रबन्धतंत्र को लौटाया जाए। वही व्यवस्था पहले सफल थी।

भर्ती प्रणाली का इतिहास — और वर्तमान अव्यवस्था

पहले उच्च, माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा के लिए अलग-अलग चयन संस्थाएँ थीं। बाद में सबको मिलाकर एक आयोग बना दिया गया। यह केंद्रीकरण सफल नहीं हुआ। आज आयोग भर्ती करा पाने में अक्षम है।

जनप्रतिनिधियों और शिक्षकों का आक्रोश

सुरेंद्र सिंह चाहर, जय सिंह कुशवाहा, श्याम सिंह, मनोज कुमार, डॉ. संगीता बघेल, बृजेश चौहान, महेश चंद शर्मा, किशन लाल गुप्ता, निरंजन प्रसाद शर्मा, डॉ. कविता सिंह, डॉ. प्रियंका चौधरी, ओम प्रकाश गौड़, जगदीश प्रसाद आदि ने गहरा रोष व्यक्त किया है।


संपादकीय

डॉ. देवी सिंह नरवार की मांग बिल्कुल वाजिब है। एक आयोग जो तीन साल में एक भी परीक्षा न करा सके — उसकी उपयोगिता शून्य है। युवाओं को तारीखें नहीं, नौकरी चाहिए। शिक्षा व्यवस्था को कागज़ी घोषणाएँ नहीं, शिक्षक चाहिए।

अब ढीली व्यवस्था नहीं, ठोस कार्रवाई की जरूरत है। भर्ती का अधिकार वापस विद्यालय प्रबन्धतंत्र को लौटाना ही व्यवहारिक समाधान है। प्रक्रिया तेज़ होगी, भ्रष्टाचार घटेगा, और युवाओं को न्याय मिलेगा।

डॉ भानु प्रताप सिंह, संपादक

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Dr. Bhanu Pratap Singh